गुम हुए को

गुम हुए को

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बचपन के दिनों में बहुत सारे
खिलौनों में गुम गया था एक खिलौना
बहुतेरी कोशिश की उसे ढूंढने की
लेकिन वह मिला नहीं
समय गुज़रते उस खिलौने की याद रह गई
जिसके सहारे बिंब बनता रहा मस्तिष्क में

अब खिलौनों की जीवन में
कोई उपयोगिता रही नहीं
बस याद रह गई जो टीसती है अक्सर

उस ग़ुम हुए खिलौने को ढूंढने की इच्छा जगती है
तब उस बिंब के सहारे खोजती हूं गुमे हुए को
इस खोज़ में स्वाभाविक तौर पर मिलता है बिंब
गुमे हुए के आसपास वह बिल्कुल भी नहीं ठहरता

बचपन में कितने ही खिलौने गुमा देते हैं हम
जीवन भर जिन की याद बनी रहती है
कभी-कभी जीवन में भी खो देते हैं बहुत कुछ
और जीवन भर अपने ज़ेहन में बनाते रहते हैं बिंब!

(शुचि मिश्रा)

 

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