जनपद की रामलीला अर्द्धशतक से भी अधिक का समय पार कर आज भी मंचन के लिये पूर्ण रूप से तैयार
जयेश बादल ललितपुर। किसी ने सच ही कहा है कि यदि व्यक्ति मन में कुछ भी ठान ले तो कोई चीज असंभव नहीं है, या फिर दूसरे शब्दों में यह कहे कि जहां चाह वहां राह। इसीलिए आज भी शहर के तालाबपुरा की रामलीला का भीष्म पितामह पंडित जगदीश प्रसाद सुडेले को कहा जाता है और डाकू बब्बू राजा को रामलीला का महर्षि बाल्मीकि कहा जाता है। यह कहानी करीब 55 वर्ष पूर्व सन 1968 में शुरू हुई थी, जो आज तक चल रही है और जनपद की रामलीला अर्ध शतक से भी अधिक का समय पार कर चुकी है जो आज भी मंचन के लिए पूर्णरूप से तैयार है। सिर्फ कमी है तो बाल्मीकि के रूप में संस्थापक बब्बू राजा की, जिन्होंने हृदय परिवर्तन के बाद रामलीला का मंचन शुरू करवाया था और उनका स्वर्गवास भी हो चुका है।
ऐसे शुरू हुआ था रामलीला का मंचन रामलीला मंचन के भीष्म पितामह के रूप में जाने जाने वाले पंडित जगदीश प्रसाद सुडेले बताते हैं कि जनपद के शहरी क्षेत्र के तालाब पुरा में करीब 55 वर्ष पूर्व रामलीला का मंचन उस समय शुरू किया गया था, जब लोगों के पास मनोरंजन का कोई साधन नहीं था और धर्म का ज्ञान भी बहुत ही कम लोगों को था। करीब 55 वर्ष पूर्व सन 1968 में समीपवर्ती ग्राम रोड़ा निवासी बब्बू राजा बुंदेला ने डाकू की बंदूक छोड़कर धर्म की राह पर चलने का संकल्प लिया था और उन्हीं ने 1968 में पहली बार रामलीला का मंचन शुरू करवाया था। पंडित जी बताते है कि बब्बूराजा 1968 के पहले डाकू पूजा बाबा के समय डाकू थे जो लूटपाट और डकैतियां डाला करते थे। लेकिन पूजा बाबा के आत्मसमर्पण के बाद 1968 में इनका भी डाकू बाल्मीकि की तरह ह्रदय परिवर्तन हुआ और उन्होंने आत्मसमर्पण करने के बाद धर्म की राह पर चलने का फैसला किया और शहरी क्षेत्र में रामलीला का मंचन कराने में अहम सहियोग दिया। जनपद की रामलीला में बब्बूराजा बुंदेला को महर्षि बाल्मीकि के रूप में जाना जाता है जो इस रामलीला की संस्थापक भी रहे हैं। संस्थापक बब्बूराजा रोड़ा रामलीला के शुरुआती दौर में रावण और दशरथ का किरदार निभाते थे, जिन्होंने किरदार निभाते हुए 2008 में स्वर्ग सिधार गए। पहले रामलीला के मंचन में 10,000 दर्शक रामलीला देख कर धर्म लाभ लेते थे।
पंडित जगदीश प्रसाद सुडेले बताते हैं कि उन्होंने शुरुआती दौर में भगवान श्री राम के बचपन का किरदार करीब 5 वर्ष तक निभाया और बाद में उन्होंने कई किरदार निभाने के बाद सालों राजा दशरथ का किरदार निभाया और अभी तक किरदार निभा रहे है। करीब 48 बर्ष के इस सफर में सभी किरदार निभाए। रामायण के मंचन में बाहर से बुलाए गए लोगों को पहले 11 रुपये से 250 रुपये ही विदाई दिए जाते थे। रामलीला के मंचन में जनपद झांसी से कई गायक और डांसर किराए पर लाये जाते थे। एक ढोलक वाला मुरारी शहर का निवासी भी पहले से काम कर रहा है। अब एक डांसर 30 हजार और तीन डांसर तालबेहट आते है, हास्य कलाकार इस बर्ष ग्राम मसौरा का है पहले टहरौली से आते है। नगाड़े बजाने बाले आज भी टहरौली से आते है। आज पूरी रामलीला में करीब 6 लाख से अधिक का खर्च आता है।
यह हुए बदलाव रामलीला के मंचन में समय अनुसार बदलाव होते हुए पहले की अपेक्षा दर्शकों की संख्या कम हो गई पहले रामलीला का मैदान काफी विस्तृत था लेकिन समय चलता गया और लोगों के मकान बनते गए जिस कारण रामलीला मैदान छोटा हो गया। आस पास मकानों के निर्माण हो गया है। शुरुआती दौर में मैदान में ही रामलीला का मंचन होता था कोई मंच नहीं था लेकिन अब सभी साधन हैं लेकिन दर्शकों की कमी है।
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