गरीब सामान्य वर्ग को आरक्षण 10% मगर गरीब पिछड़े, दलित आदिवासी को आरक्षण क्यों नहीं?

गरीब सामान्य वर्ग को आरक्षण 10% मगर गरीब पिछड़े, दलित आदिवासी को आरक्षण क्यों नहीं?

केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि ईडब्ल्यूएस सिर्फ सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित किया गया है आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग ईडब्ल्यूएस 10%फिसदी है। आरक्षण के मामले में पिछड़ी, अनुसूचित, अनुसूचित-जनजातियों के लिए पहले से आरक्षण मिल रहा है। कोर्ट में अटांर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मंगलवार को कहा सामान्य वर्ग के गरीब लोगों इस कानून के तहत लाभ मिलेगा जो क्रांतिकारी साबित होगा। स्मरण रहे कि सन् 2019 मे 103 वें संविधान संशोधन में सामान्य वर्ग के लिए केन्द्र सरकार ने बिल आनन-फानन में पास करा लिया और औपचारिक भी पुरी कर लिया और (ईडब्ल्यूएस) 10% सामान्य गरीब के लिए लागू भी हो गया। इस कानून को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी गई है।

पांच जजों की बेंच सुनवाई कर रही है। याचिका में कहा गया है कि एससी, एसटी, ओबीसी में भी गरीब लोग हैं सिर्फ सामान्य वर्ग के लिए (ईडब्ल्यूएस) 10% प्रतिशत आरक्षण क्यों दिया जा रहा है। गरीब पिछड़े दलित आदिवासी को आरक्षण क्यों नहीं दिया जा रहा है। संविधान में आरक्षण ग़रीबी के आधार पर नहीं सामाजिक परिस्थितियों के आधार पर दिया गया है।

एससी, एसटी, ओबीसी को ग़रीबी के आधार पर आरक्षण नहीं मिल रहा है। सामाजिक स्थितियों के आधार पर मिल रहा है। वर्तमान में केन्द्र सरकार की आरक्षण नीति के कुछ उदाहरण देखें। केन्द्र सरकार पिछड़ों को आधा रोटी, दलितों आदिवासियों को एक-एक रोटी एवं सामान्य वर्ग को दो रोटी खिला रही है। दुसरा उदाहरण केन्द्र सरकार 200 आईएएस अधिकारी की नियुक्ति कर रही है जिसमें पिछड़े आईएएस 54 बनायेंगे। एससी/एसटी 45 आईएएस बनायेंगे और सामान्य वर्ग से 101 आईएएस बनायेंगे यानि दुना से भी अधिक हैं। सन् 1931 के जनगणना अनुसार ओबीसी 52प्रतिशत, एससी, एसटी 22.5 प्रतिशत है। कुल योग 74.5 प्रतिशत है। अब सामान्य वर्ग 25.5 प्रतिशत है और लाभ ले रहे हैं दो गुना जबकि आज की स्थिति में ओबीसी एससी एसटी में अनेक जातियां को तीनो वर्ग में शामिल किया गया है। वर्तमान में लगभग 85 प्रतिशत से अधिक है किन्तु आरक्षण सिर्फ 49.5 प्रतिशत ही मिल रही है। इसके बावजूद केन्द्र सरकार (ईडब्ल्यूएस) के माध्यम से सामान्य वर्ग को लाभ देने के लिए 10 प्रतिशत गरीब वर्ग के नाम पर आरक्षण दे रही है किन्तु केन्द्र सरकार की नजरों में गरीब पिछड़े दलित आदिवासी नहीं दिखाई दे रहे हैं।

भाजपा सवर्णों की पार्टी है। ‍कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण देना नितान्त आवश्यक है सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार के हलफनामे में यह कहना कि ईडब्ल्यूएस गरीब सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है। 10 प्रतिशत आरक्षण है जो क्रांतिकारी साबित होगा तथा केन्द्र व राज्य सरकार में एक पूर्व मंत्री एवं वर्तमान में सांसद ने पत्रकारों से बात की और कहा कि सामान्य वर्ग का ध्यान भाजपा ही रखतीं है। सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण दिया है जो कोई दूसरी पार्टी नहीं कर सकी अखबारों में प्रकाशित हुआ है। इससे भाजपा की मंशा साफ दिखाई दे रही है। समय आने पर कई और प्रकरण प्रकाश में आयेगा।

बिहार सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं विपक्षी पार्टी के नेता तेजस्वी यादव (उस समय विपक्ष के नेता थे) एवं सभी पार्टियों के विधायकों ने सर्वसम्मति से जाति-आधारित जनगणना के लिए विधानसभा एवं विधानपरिषद में पास कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात करके जाति-आधारित जनगणना कराने की मांग किया था किन्तु प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने जाति-आधारित जनगणना कराने की मांग को नकार दिया भाजपा से गठबंधन तोड़ने का एक प्रमुख कारण जाति-आधारित जनगणना भी है। नीतीश कुमार एवं तेजस्वी यादव ने देश के ओबीसी एससी एसटी के लोगों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया अपने हक़ के लिए लामबंद कर दिया है।

जाति आधारित जनगणना को आने वाली सरकार करवायेंगी।
पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों को मिल रही आरक्षण केन्द्र सरकार को हज़म नहीं हो पा रही है कभी क्रीमीलेयर के नाम पर पिछड़ों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है। उत्तराखंड सरकार ने कुछ पिछड़ों को इस आधार पर नौकरी देने से मना कर दिया कि आप लोगों की जाति ओबीसी नहीं है, इसलिए नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया। मामला न्यायालय में गया बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी की लिस्ट केन्द्र सरकार से सूची मंगाया तब जाकर पिछड़ों की नियुक्ति की गई कुछ अखबारों में प्रकाशित हुई कभी-कभी संविधान द्वारा दी गई। आरक्षण की धज्जियां उड़ाई जाती है। उजागर होने पर चुप्पी साध लेते हैं या भूल हो गई आदि कुछ महत्वपूर्ण विभागों में पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों की संख्या नगण्य है। कुछ विभाग में पिछड़ों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति ही नहीं की गई है। इन सभी समस्याओं का निदान एक ही है जाति-आधारित जनगणना जिसकी जितनी संख्या उतनी उसकी हिस्सेदारी का फार्मूला लागू होने से अनेक बाधाएं दूर हो जायेगी किन्तु केन्द्र सरकार क्यों नहीं चाहती है, इसका भी जल्द ही खुलासा हो जायेगा।
ध्रुवचन्द जायसवाल
सामाजिक कार्यकर्ता एवं
अध्यक्ष अखिल भारतीय जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा उत्तर प्रदेश

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