लोस चुनाव जीतने का केन्द्रीय मंत्री का दावा जिला नेतृत्व पूरा कर पायेगा?

लोस चुनाव जीतने का केन्द्रीय मंत्री का दावा जिला नेतृत्व पूरा कर पायेगा?

पूर्व के चुनाव से आगामी चुनाव के परिणाम का आकलन किया जा सकता है?
संदीप पाण्डेय
रायबरेली। लोकसभा चुनाव 2024 सर पर है। ऐसे में सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस के कब्जे से रायबरेली को छीनने के लिए सारे दांव आजमा रही है लेकिन आखिर जिले के किस नेतृत्व के दम पर शीर्ष नेतृत्व रायबरेली लोकसभा चुनाव जीतने का दावा कर रही है?

राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभारी मंत्री प्रतिभा शुक्ला, जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, राज्य मंत्री दिनेश प्रताप सिंह, अवध क्षेत्र के प्रभारी अमरपाल और सदर से विधायक अदिति सिंह मंच पर सजे थे और सामने बैठे थे। उनके कार्यकर्ता और कुछ जनता के लोग। भले ही बहाना सरकार के नौ साल पूरा होने पर सरकार की नीतियों से जनता को अवगत कराना रहा हो लेकिन मुख्य उद्देश्य 2024 का चुनाव रहा जिसे जीतने का दावा प्रवास पर आए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कर रहे हैं।

अगर हम विधानसभा की बात करें तो जिले में बछरावां, हरचंदपुर, ऊंचाहार और सरेनी हारने के बाद नगर पालिका और नगर पंचायत में कई सीटें भाजपा हारी हैं। महाराजगंज सीट हर बार प्रभात साहू के खाते में जाती है, वह उनका व्यक्तिगत श्रम का नतीजा है न कि भाजपा का उसमें कोई योगदान है। ऊंचाहार की नगर पंचायत की सीट जीतने में राजा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन परिणामों को देखने के बाद भी अगर भाजपा के शीर्ष नेता लोकसभा चुनाव को जीतने का दावा करते हैं तो इसे उनकी अति महत्वकांक्षी ही कहा जाएगा, क्योंकि पूर्व में हुए चुनाव से आगामी चुनाव के परिणाम का आकलन किया जा सकता है।

रायबरेली नगर पालिका के चुनाव में स्थानीय नेतृत्व के साथ शीर्ष नेतृत्व ने पूरी ताकत झोंक दी लेकिन सीट नहीं निकली। ऐसे में शेष नेतृत्व को यह विचार करना होगा कि जिले का नेतृत्व उनकी पार्टी के लिए जनता को स्वीकार है या नहीं है। कहीं न कहीं इसमें सत्ताधारी दल के छोटे कार्यकर्ता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो मठाधीशों से नाराज छोटे कार्यकर्ता अब घर बैठ चुके हैं।
बगल का जिला अमेठी में भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। सलोन विधानसभा में परशदेपुर, नसीराबाद व सलोन यह तीनों नगर पंचायत सत्ताधारी दल हार चुकी है। वह बात अलग है कि जीतने वाले उनके ही अपने पूर्व कार्यकर्ता रहे हैं। जिनका पात्र होने के बाद भी टिकट काट दिया गया था और कार्यकर्ताओं को नाखुश करके दूसरों को टिकट दे दिया गया था जिसके चलते यहां पर भी छोटे कार्यकर्ताओं ने बागी प्रत्याशियों को समर्थन दिया।

क्या जनता की नब्ज को पकड़ नहीं पा रही भाजपा?
कहते हैं कि अच्छा नेतृत्व वही है जो जनता की नब्ज को सही समय पर सही जगह पर पकड़े। भाजपा में क्या अब ऐसे पारखी विद्वान और बौद्धिक देने वाले लोगों की कमी हो गई है? क्योंकि जिस तरह से विधानसभा और नगर पालिका के चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन टिकट बांटने से लेकर परिणाम तक रहा है वह यह प्रश्न जरूर उठाने के लिए पर्याप्त है कि अब भाजपा में शीर्ष नेतृत्व के अंदर जनता की नब्ज पकड़ने की कमी आ गई है या फिर यह सभी खुद को सत्ता सुख भोगने वाले राजाओं के समान समझने लगे।

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