दुख उन्हीं को होता है जो प्रभु से विमुख होते हैं: राजन जी महाराज
दुख उन्हीं को होता है जो प्रभु से विमुख होते हैं: राजन जी महाराज
प्रभु राम को समझ उपरान्त बिना पाव पखारे नहीं बैठाया नाव पर
जितेन्द्र सिंह चौधरी/अतुल राय
वाराणसी। चोलापुर क्षेत्र के अंतर्गत महावीर मन्दिर के पास कथा के सातवें दिन कथा वाचक राजन जी महाराज ने प्रभु शिव देवाधिदेव के पुनीत नगरी में अपने भक्तों बताया कि हम लोगो को। उस लोक को जाने के लिये कर्म करना चाहिये।प्रभु राम जी उत्तर काण्ड में कहते हैं जीव प्राणी को पर लोक को सुधारना चाहिये अगर इस लोक में सुख चाहते हैं तो 84 लाख योनियों में सबसे श्रेष्ठ मनुष्य योनि होती है। मनुष्य की सीढ़ी तीन जगह जाती है। अच्छा कर्म स्वर्ग लोक, बुरा कर्म नरक लोक और तीसरी सीढ़ी भक्ति के भाग की सीढ़ी भक्ति लोक को जाती है। प्रभु के पास पहुचने का अनेक मार्ग है। जैसे भजन, जप, कथा श्रवण आदि सभी मार्ग प्रभु के पास पहुचने का सीढ़ी है। दुख उन्हीं को होता है जो प्रभु से विमुख होते हैं। जैसे सूर्य के पीछे खड़ा होने पर आप की परछाई आगे आ जाती है। उसी तरह से बुरे कर्म करने पर उसका भुक्तभोगी पीछे भोगना ही पड़ता है। आगे अयोध्या में युवराज बनने को गुरु जी से प्रभु राम के पास भेजा। गुरु जी ने प्रभु राम जी से कहा कि कल महाराज युवराज बनने को अपने कक्ष में बुलाया। आप निराहार का पालन करते हुये कल महाराज के पास चलना है। गुरु जिनमें ही मन सोचा कि ब्रह्मा जी आज की रात सकुशल बीत जाय, क्योंकि गुरु जी जानते थे कि राम को युवराज न बन वनवास को जाना है। इधर देवता गण माता सरस्वती की बन्दना करने पहुंचे और वंदना किया मन्थरा की बुध्दि बदल दे मा। प्रभु राम युवराज न बने। वन को जाय जिससे समाज का कार्य हो सके। रामजी माता कैकेयी द्वारा दिये गये वरदान का पालन करने के लिये 14 वर्ष के वनवास को। पूर्ण करने के लिये प्रभु राम माता सीता, लक्ष्मण वन को चल दिये। वनवास सुन पूरी अयोध्या की जनता रामजी के पीछे चल दिया। जनता को कष्ट न देने को अपनी माया को फैलाकर रात्रि विश्राम में पड़ी जनता को सुलाकर भोर में तीनों लोग वन को चल दिये। वन में निषाराज से मिलन, केवट द्वारा उस पार नाव में बैठ पार किया। आज के कथा में विशिष्ट जनों में आमंत्रित सदस्य कैविनेट मंत्री अनिल राजभर, श्रवण मिश्र, अर्चना मिश्र, प्रेम यादव, प्रियंका यादव, प्रिंस चौबे आदि लोगों के साथ साथ हजारो भक्त लोग उपस्थित रहे।
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