मर्यादा
अनावश्यक आलोचनाओं में भी कुछ बात है,
क्योंकि जीवन का एक कारण हम सभी में व्याप्त है।
मर्यादाओं कि डोर भी कितनी कमाल है,
हर एक पहलु में इसका यक्तित्व बेमिसाल हैं।।गुजरते उम्रों में दर्ज ना जाने कितने अनगिनत सवाल है।
बंधनों कि सीढ़ीओं से बंधे आज,
मेरे भी ना जाने कितने हिस्से फिलहाल है,
क्योंकि बचपन के जैसे ना होते आज खुशहाल है।।अंधेरी रातों में ढूंढकर लाते सुकून के लम्हें आज है,
क्योंकि सवेरे में तो हर एक चेहरे पहनते नकाब आज है।
कुछ बातों में एक बात होती समान है,
जिसने उसे पहचान लिया उसे ही कलयुग का ज्ञान है।।आँचल में भी छुपे कई प्रतिबिम्ब सबके समान आज है,
मर्यादाओं में रहकर उसको भी स्वयं में करती व्याप्त आज है।
क्योंकि इस जिन्दगी की डोर मेरे मातृ के हाथ है,
जिसके आगे सैकड़ों आँचल कि कुर्बानीयाँ ही तैयार है।।