केएमयू में मेडिको लीगल कान्फ्रेंस का हुआ आयोजन

केएमयू में मेडिको लीगल कान्फ्रेंस का हुआ आयोजन

इलाज में ठीक होने का भरोसा जगा सकती है जीने की इच्छा: किशन चौधरी
आरके धनगर
मथुरा। मेडिको-लीगल प्रैक्टिस में उभरते रुझान विषय पर एक दिवसीय मेडिको-लीगल कॉन्फ्रेंस का आयोजन केएम विवि के एलटी 3 में किया गया। जिसमें मेडीकल कालेज एवं हास्पिटल के सभी पीजी व यूजी डाक्टर्स तथा मेडीकल छात्र-छात्राएं उपस्थित रहीं। डीन एकाडमिक्स एवं वरिष्ठ एसोसिएट प्रोफेसर एफएमटी डा. एसटी वाली ने कार्यक्रम की प्रस्तुति एवं संचालन किया तथा कम्युनिटी मेडिसिन विभाग की डा. अंजलि भारद्वाज द्वारा के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत विवि के कुलाधिपति एवं जिला पंचायत अध्यक्ष किशन चौधरी ने सरस्वती देवी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन करके की। मेडीकल छात्र-छात्राओं एवं पीजी और यूजी डाक्टर्स को संबोधित करते हुए कहा मेडीकल कॉलेज अस्पताल में पुलिस सूचना तंत्र मुख्य हिस्सा होती है। इसके अभाव में मेडिकोलीगल मामलों में मरीज को सीधे भर्ती नहीं कर सकते। भगवान के बाद दूसरा नाम डाक्टर का आता है मरीज को शांति-धैर्य देकर इलाज करेंगे तो मरीज ठीक होने की उम्मीद पर बच जाए, जन्म और मृत्यु तो ईश्वर के हाथ होती है लेकिन डाक्टर अगर मरीज को ठीक होने का भरोसा दिलाते है तो उसमें जीने की इच्छा जाग सकती है। मरीज का मन, विश्वास और मनोबल को मजबूती देकर इलाज किया जाए तो परिणाम अच्छे आते है।
विवि के वाइस चांसलर डा. डीडी गुप्ता ने कहा मेडिको-लीगल मामला वह है जहां चिकित्सा उपचार के अलावा; रोगी की वर्तमान स्थिति/स्थिति के संबंध में जिम्मेदारी तय करने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा जांच आवश्यक है इसलिए मामले में चिकित्सीय और कानूनी दोनों निहितार्थ हैं। वहीं प्रो. वाइस चांसलर डा. शरद कुमार अग्रवाल ने डॉक्यूमेंटेशन की इम्पोर्टेंस पर पीजी व यूजी मेडिकल छात्र-छात्राओं को एमएलसी पंजीकृत कराना क्यों आवश्यक है पर प्रकाश डालते हुए कहा कि एमएलसी के पंजीकरण के संबंध में रिश्तेदारों, स्वयं रोगी या उसके सहयोगियों के अनुरोध/दबाव को मानने की कोई गुंजाइश नहीं है। भले ही घटना (जैसे आघात) कई दिन पहले हुई हो, यदि शिकायतें एमएलसी के योग्य हैं, तो एमएलसी पंजीकृत किया जाना चाहिए। फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला में बाद की जांच के लिए आवश्यक नमूनों को संरक्षित करने में विफलता या किसी आपराधिक मामले में मरीज के शव को बिना पूछताछ और पोस्टमार्टम (पीएम) के जारी करने पर डॉक्टर पर कानूनी कार्यवाही भी हो सकती है।

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