Jaunpur News : जरा याद करो कुर्बानी…
उपेक्षा का दंश झेल रहा नार्मल मैदान पर स्थित शहीद स्तम्भ
उपजिलाधिकारी करते हैं ध्वजारोहण
अतिक्रमण व जीर्ण-शीर्ण अवस्था को किया जा रहा नजरअंदाज
विनोद कुमार
केराकत, जौनपुर। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल बजते ही देश की जनता नई क्रांति की इबादत लिखने को बेताब हो उठी। क्रांति की इस लड़ाई में स्थानीय क्षेत्र के शूरवीरों ने भी भारत माँ को आजाद कराने के लिए भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े। अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों और संघर्ष से केराकत के शूरवीरों ने अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त हमला किया और अंग्रेजी हुकूमत को नाकों चने चबाने को मजबूर कर दिए। अंग्रेजी हुकूमत की दमनकारी नीति क्रांतिकारियों का यह आंदोलन नागवार गुजरा। क्रांतिकारियों के लगातार हमले से खफा अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी।
इस गोलीकांड में जौनपुर के विभिन्न क्षेत्रों के ग्यारह वीर योद्धाओं ने अपनी आहुति दी और शहीद होकर इतिहास के पन्नों में अपना नाम अमर कर गये। इन अमर शहीदों की याद में केराकत नगर के नार्मल मैदान में शहीद स्मारक की स्थापना की गई है जिस पर लगे शिलापट्ट पर जनोहर सिंह हैदरपुर बक्सा (धनियामऊ गोली कांड), राम अघोर सिंह, राम महिपाल सिंह, राम निहोर कहार, नंदलाल (अधौरा गोली कांड) महावीर सिंह, विजेंद्र सिंह व माता प्रसाद शुक्ल (मछलीशहर गोली कांड), राम दुलार सिंह, रामानन्द (अमरौरा गोली कांड) व राधुराई (बक्सा) शहीदों के नाम अंकित हैं।
भारत छोड़ो आंदोलन में अपना बलिदान देने वाले इन शूरवीरों की याद में बना शहीद स्तम्भ आज की तारीख में जीर्ण-शीर्ण हो चुका हैं। जिन क्रान्तिकारियों ने देश के लिए खुद को समर्पित किया, आज उनके बलिदान को जीर्ण-शीर्ण होकर अपमानित होना पड़ रहा है। शहीद स्तम्भ की स्थिति को देखकर मन-मस्तिष्क में एक ही प्रश्न बार-बार कौंधता है कि देश के लिए शहीद होने वाले वीर सपूतों को आजाद देश द्वारा इसी तरह का सम्मान और स्थान मिलता है?
प्रतिवर्ष आयोजित स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान शहीद स्तम्भ उपजिलाधिकारी द्वारा ध्वजारोहण अन्य अधिकारियों व कर्मचारियों की मौजूदगी में किया जाता है। नार्मल मैदान पर केराकत के उपजिलाधिकारी प्रतिवर्ष दो बार ध्वजारोहण कर अपनी देशभक्ति का छद्दम प्रमाण पत्र प्रस्तुत करते हैं लेकिन शहीदों के अपमान पर उनका कर्तव्य दिशाहीन हो जाता है। उपजिलाधिकारी की निगाहें तिरंगा फहराने के लिए तो उठती हैं लेकिन जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़े शहीद स्मारक और उस पर मिट चुके शहीदों के नाम की तरफ उनका ध्यान आकृष्ट नहीं होता। यह संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के लिए बेहद शर्मनाक है। स्थानीय प्रशासन को यह सोचना चाहिए कि आखिर ऐतिहासिक धरोहरों को संजोकर रखने का उत्तरदायित्व किसका है?
यहां एक महत्त्वपूर्ण बात का उल्लेख करना अत्यंत आवश्यक है। इसी मैदान पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की याद में प्रति वर्ष जनवरी माह में राज्यस्तरीय फुटबाल प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। जिले से लेकर प्रदेश स्तर के मेहमानों की शिरकत होती है परंतु किसी का ध्यान जीर्ण-शीर्ण हो चुके शहीद सतम्भ की ओर आकर्षित नहीं होता। जिम्मेदार अधिकारी व जनप्रतिनिधि भी अतिक्रमण व शहीद स्तम्भ के जीर्ण शीर्ण अवस्था को करते है नजरअंदाज। आखिर कब तक अपने ही देश में शहीद के परिजनों को अपने शहीद पिता, भाई, पति और बेटे की शहादत के लिए अपमान सहना पड़ेगा? का दंश झेलना पड़ेगा? सामाजिक संगठनों द्वारा इस संवेदनशील मामले पर जन आंदोलन कर सरकार और स्थानीय प्रशासन पर दबाव बनाने की आवश्यकता है। नार्मल मैदान पर स्थित शहीद स्मारक का जीर्णोद्धार कर उसका कायाकल्प करना ही शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।