Jaunpur News : साहित्यकार एकलव्य की मनायी गयी 5वीं पुण्यतिथि
Jaunpur News : साहित्यकार एकलव्य की मनायी गयी 5वीं पुण्यतिथि
एकलव्य फाउण्डेशन हाल में आयोजित हुआ कार्यक्रम
जौनपुर। हिन्दी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर वरिष्ठ साहित्यकार, हास्य व्यंग्य की दुनिया में अलग पहचान रखने वाले कृष्णकान्त एकलव्य की पंचम पुण्यतिथि सादगी और कोरोना गाइडलाइन को मद्देनजर रखते हुए रूहट्टा स्थित एकलव्य फाउण्डेशन हाल में हुई। कार्यक्रम का शुभारम्भ एकलव्य की प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलित करके मुख्य अतिथि अशोक सिंह समाजसेवी ने किया। समारोह की अध्यक्षता कर रहे पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष दिनेश टण्डन ने एकलव्य जी के चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी। साथ ही डा. पीसी विश्वकर्मा, प्रो. आरएन सिंह, राकेश श्रीवास्तव, आयोजक सरोज श्रीवास्तव ने भी पुष्प अर्पित कर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी।
जौनपुर के एक पिछड़े गांव कसनहीं में 27 फरवरी 1940 में साधारण परिवार में जन्मे कृष्णकान्त एकलव्य ने अपनी साहित्य साधना के दम पर हास्य व्यंग्य जगत में अपनी एक अलग पहचान समूचे देश में बनाया। ‘वाह रे विज्ञापनों की आंधी, शराब के कैलेण्डरों पर महात्मा गांधी’ रचना ने तो एकलव्य को देश के व्यग्य शिरोमणि में शुमार कर दिया। उक्त बातें मुख्य अशोक सिंह ने कही। अध्यक्षता कर रहे दिनेश टण्डन ने एकलव्य को महान साहित्यकार बनाते हुए कहा कि उन्होंने अपने जनपद का नाम पूरे देश में साहित्य सेवा करते हुए किया। एकलव्य फाण्उडेशन परिवार की ओर से राकेश श्रीवास्तव ने कहा कि उन्होंने सादैव मुझे अपने पुत्र समान समझा, प्यार दिया। उनकी कमी हम सभी को सदैव अखरती रहेगी। वह साहित्य और व्यंग्य जगत के पुरोधा रहे। उन्हें याद करना ही हम सभी की सच्ची श्रद्धांजलि होगी। समारोह के द्वितीय सोपान में काव्य गोष्ठी की गई। सबसे पहले गीतकार जनार्दन प्रसाद अस्थाना द्वारा मां सरस्वती वंदना की गई। राजेश पाण्डेय- इस जहां में तू चाहे जहां जाओगे इक जमी एक ही आसमां पाओगे। रूपेश साथी- प्यार में जिंदगी सदा तो खिला, दो दिलों को देता ये तो मिला। डा. संजय सिंह सागर- भारत की इस जन्मभूमि के, प्राण बने हैं अपने राम। सुशील दुबे- जागा भोर भई बोलति चिरैया, भजन काटा राम जी का भइया। कल्लू सनेही- है भरता पेट भरता उनसे जो करते किसानी हैं, मिली आजादी तो मुझको शहीदों की निशानी है। तिरंगे के लिए गर्दन कटे तो गम नहीं स्नेही, हमारा धर्म हो कोई, मगर हिन्दुस्तानी है। डा. अजय विक्रम सिंह- रंग से रंग मिलाकर देखो, थोड़ा प्यार लुटा के देखो, प्यार में कितना रस ठहरा है दुश्मन गले लगाकर देखो। सभाजीत मिश्र- पाले जो सपोले उसे पस्ताना पड़ेगा, सांपों को क्या पता कि किसका आस्तीन है। अनिल उपाध्याय- पिता के प्रति आदर है मेरे रोम-रोम में, इसलिए हर हफ्ते उनसे मिलता हूं ओल्ड एज होम में। अशोक मिश्र- बिन बोले सब बात समझ ले ऐसी होती है बेटी, कभी न डर की गठरी खाले ऐसी होती है बेटी। गिरीश श्रीवास्तव- फिसलती पांव के नीचे जमीन महसूस होती है, अभी सूखे नहीं आंसू नमी महसूस होती है। जहां भी हो चले आओ हमारे दिल की महफिल में, मुझे पल-पल तुम्हारी ही कमी महसूस होती है। जनार्दन प्रसाद अस्थाना- चली है कैसी अजब हवा यह, नागिन की विषदंत लिए। डा. पीसी विश्वकर्मा- आदमी को चाहिए वो हौसला पैदा करे, मौत के आने का हर दम रास्ता देखा करे। प्रो. आरएन सिंह- तिक्ष्ण दृष्टि का हो धनी, साहस अगर अदम्य, ऐसा ही व्यक्तित्व जगत में कहलाता एकलव्य। रामप्यारे सिंह- ऊॅ पिपरा के छहियां ऊॅ दीदी क बहिया, ऊॅ अंगुरी पकरि के चलब लरिकइयां, ऊॅ दादी के अचरा में बचपन लुकाइल हमै गांव आपन बहुत याद आइल। विनय शर्मा दीप- जानता हूं आपको तविस्तार करना चाहता हूं, हर घड़ी हर पग तुम्हे स्वीकार करना चाहता हूं। श्रीधर मिश्र- तमाम खुशियां तमाम गम किन-किन को याद रखेंगे हम, चलो भूल कर उन बीते दिनों को सिर्फ आज में जीने की खायें कसम। बाबा धर्मपुत्र अशोक- हे भारत मां बन्दन तेरा हम करते अभिनन्दन तेरा, सुनाकर श्रोताओं की सभी कवियों ने वाहवाही बटोरी। अन्त में सभी अतिथियों और श्रोताओं का आयोजक सरोज श्रीवास्तव ने आभार प्रकट किया। कार्यक्रम का संचालन गिरीश श्रीवास्तव गिरीश ने किया। समारोह में मुख्य रूप से आनंद मोहन श्रीवास्तव, सोमेश्वर केसरवानी, जय आनन्द, डा. इन्द्रसेन मुन्ना, इन्द्रजीत मौर्या, एससी लाल, श्याम रतन श्रीवास्तव, दयाशंकर निगम, प्रमोद दादा, अतुल मिश्रा, सिपिन रघुवंशी, दिलीप श्रीवास्तव एडवोकेट, रामसेवक यादव, डा. विजय चंद्र पटेल, केके दुबे फौजी, राजकुमार वेनवंशी, सलवंता यादव, अजय सिंह, आनन्द शंकर श्रीवास्तव एडवोकेट, विनय श्रीवास्तव, रवि श्रीवास्तव एडवोकेट, प्रदीप अस्थाना, सुनील अस्थाना एडवोकेट, जितेन्द्र सिंह वैद्य, कृष्ण कुमार श्रीवास्तव, जितेन्द्र सरदार, रामचन्द्र नेता, सुरेश सोनकर, लालजी भारती सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।
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