4 वर्ष से कोमा में, सरकारी तौर पर नहीं मिल रहा उपचार
आयुष्मान कार्ड बनवाने के लिये मुख्यमंत्री से लगायी गुहार
दीपक कुमार
झिंझाना, शामली। 4 वर्ष 3 माह से जिंदगी की जंग लड़ रहे पिताजी के लिए स्वजनों ने मुख्यमंत्री को लिखित सूचना भेजकर आयुष्मान कार्ड बनवाने की अपील की है। मोटर मैकेनिक राजेश मोटरसाइकिल से सड़क दुर्घटना में घायल हो गया था। तब से लेकर वह आज भी चारपाई पर ही कोमा अवस्था में जिंदगी की जंग लड़ रहा है। छोटी किसानी के अलावा घर में कोई रोजगार नहीं है। कहते हैं कि वक्त कभी कहकर नहीं आता। वक्त अच्छा या बुरा सबके लिए रहता है। वक्त खराब होना या अच्छा होना सब हमारे कर्म का ही फल कहलाता हैं परन्तु हां जीवन में बरती गई लापरवाही के कारण वक्त खराब बन जाना एक सबक जरूर छोड़ता है या यूं कहें कि नियमों की अन देखी कभी-कभी संकट का कारण या खराब वक्त का कारण भी बन सकती है। दुपहिया वाहन हर व्यक्ति की जीवन शैली को सरल बनाने का मुख्य साधन है। इसके संचालन में बरती गई लापरवाही कब कितना बड़ा संकट पैदा कर सकती है। यह बात हम सब जानते हैं। न जाने कितने जीवन इसकी भेंट चढ़ चुके हैं तो कभी-कभी अनेक जन जिंदगी और मौत के बीच लंबी जंग लड़ना मजबूरी बन जाता है। सफलता विधाता के हाथ है जिसके लिए परिजनो को सेवा और सहयोग के साथ-साथ धन जुटाने के लिए भी कितना संघर्ष करना पड़ता है यह तो भुक्त भोगी ही जानते हैं।
मालूम हो कि कस्बे के निकट गूगनपूरा में रहने वाले मोटर मैकेनिक 42 वर्षीय राजेश जो बीते 4 साल 3 माह से आज भी केवल एक चारपाई पर लेटे हुए जिन्दगी की जंग लड़ रहा हैं। न वह बोल सकता है। न खा सकता है। न चल सकता है। न सांसारिक सुख दुःख का उसे कोई भान ही हैं। संवाद दाता प्रेमचन्द वर्मा ने स्वजनों से बातचीत की। तो सच सामने आया। राजेश के दो बेटे एक बेटी और पत्नी के अलावा मां और भाइयों का संयुक्त परिवार है। देखा कि सड़क दुर्घटना का शिकार हुआ राजेश चारपाई पर आज भी कोमा में पड़ा है। बड़ा बेटा विकास और बेटी अपने पिताजी खिलाने पिलाने और बाकी नित्य क्रिया जैसी तमाम सेवा में लगे हुऐ हैं। बताया गया कि पास के गांव लक्ष्मणपुरा में राजेश मोटर मेकेनिक का निजी कार्यकर्ता था। 29 अक्टूबर 2019 भैया दूज के दिन वह अपनी मोटर साइकल से घर लौट रहा था। सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया। आनन—फानन में चिकित्सा दिलाई गई। तब से लेकर आज तक राजेश का खाना पीना, बोलना चलना आदि बंद है। मतलब वह न तो अपने पैरों खड़ा होकर चल सकता है। ना खा सकता है। ना बोल सकता है। केवल आवाज लगाने पर आंखों की पुतली हिलती है। नाक और गले में पाइप लगी है जिससे श्वास के साथ-साथ द्रव्य रूप से खानपान देकर शरीर को चलायमान रखा जा रहा है।
स्वजन बता रहे हैं कि लगभग 3 वर्ष तक कोमा में रहने के बाद अब 10-20 प्रतिशत स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। शरीर चेतना में है। चिकित्सकों का कहना है कि पूर्णतया सुधार कब होगा यह तो कहा नहीं जा सकता। प्रभु की लीला है स्वतः ही पूर्ण चेतना वापस आएंगी। इसी भरोसे परिजन सेवा में लगे हैं। स्वजनों का कहना है कि 12 बीघा जमीन हैं। अन्यत्र कोई रोजगार का साधन नहीं है। किसी तरह परिवार का भरण पोषण कर निजी तौर पर इलाज करवा रहे हैं। कर्ज भी हो रहा है। आयुष्मान कार्ड बनवाने के लिए बहुत प्रयास किया गया। लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। तीनों भाई बहनों की शिक्षण व्यवस्था भी प्रभावित हो रही है। परिजनों ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि उनका आयुष्मान कार्ड बन जाएं तो बहुत अच्छा रहेगा। सहयोग मिल जाएगा।
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