कश्मीरी पंडितो पर सिनेमा ‘The Kashmir Files’ मनोरंजन या एक अपेक्षा की नींव?

कश्मीरी पंडितो पर सिनेमा ‘The Kashmir Files’ मनोरंजन या एक अपेक्षा की नींव?

(ई.आर.के.जाससवाल)
हाल ही में रिलीज हुई विवेक रंजन अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ देश‌ में एक बेहद चर्चा का विषय बना हुआ है। कश्मीरी पंडितों के दर्द को उजागर करती ‘द कश्मीर फाइल्स’ की कहानी हर किसी के दिल को छू रही है। इसलिये सिनेमा हाल में फिल्म देखने के लिये लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा है। यह फिल्म आतंकवाद के कारण कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के बाद वहां से भगाये जाने पर आधारित है। 19 जनवरी 1990 के दिन कश्‍मीर के इतिहास का सबसे काला अध्‍याय लिखा गया। अपने ही घर से कश्‍मीरी पंडितों को बेदखल कर दिया। बता दें कि कश्मीर में साल 1990 में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद से अब तक लाखों कश्मीरी पंडित अपना घर-बार छोड़ कर चले गए थे, 19 जनवरी 1990 रात के दस बजे मस्जिद से लाउडस्पीकर पर अपने घर सम्पत्ति व‌ महिलाओं को छोड़कर जाने का ऐलान होने के बाद नरसंहार में सैकड़ों पंडितों का कत्लेआम हुआ था।


अब सवाल यह उठता है कि क्या यह सिनेमा कश्मीरी पंडितो का हकीकत है या राजनैतिक प्रोपगंडा या देशवासियों के लिए सिर्फ मनोरंजन ?‌ इसमें कोई दो राय नहीं कि वर्तमान सरकार ने 5 अगस्त 2019 को बड़ा फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर से धारा-370 और अनुच्छेद 35ए को खत्म कर दिया गया। इसे वर्तमान सरकार के सबसे बड़े फैसलों में शामिल किया जाता है। इसकी मांग पिछले करीब 70 साल से थी । सरकार ने जम्मू कश्मीर से राज्य का दर्जा वापस लेकर उसे केंद्र शासित प्रदेश बना कर भारतीय संविधान भी लागू हो गया। इस फैसले के बाद कश्मीरी पंडितो द्वारा ‌अपेक्षा की पहली नींव रखने जाने के बराबर थी और अब कश्मीरी पंडितो के दर्द को लगभग तीस साल बाद सिनेमा के जरिए हम सभी के सामने आ गई।
गौरतलब हो कि जब पंडितों पर हमले हो रहे थे, तब फारूक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे, जब घाटी से पंडितों का पलायन हुआ, तब मुफ्ती मोहम्मद सईद देश के गृहमंत्री थे। आखिर इन सभी ने या हम सब इसपर कोई कार्रवाई तो दूर कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दी, ऐसा क्यों क्या कारण था यह विचारणीय है। अब एक हिन्दी सिनेमा के निर्देशक इतने सालों बाद हिम्मत करके अपने भारतीय भाई की दर्द भरी सच्चाई हम सब के सामने रखी है, इस पर सहानुभूति के बजाय एक राजनैतिक प्रोपगेंडा कुछ विशेष लोगों द्वारा खरी कर दिया है, अब इतने सालों बाद ही सही सहानुभूति नहीं अब अपने कश्मीरी पंडितों को इंसाफ दिलाने में हम सभी कि भागीदारी सुनिश्चित करने कि जरूरत है और अविलंब आधारभूत जांच कर इस जघन्य अपराध में शामिल सभी को कठोर ‌सबक की जरूरत है चाहे वह‌ राजनैतिक, गैर राजनैतिक या किसी भी समूदाय से हो और साथ ही उनके अपने घर वापसी भी सुनिश्चित करनी होगी।

 

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