पुस्तकें समाज की थरथराहट होती है, बदलाव यहीं से शुरु होता है: डॉ. सत्यकेतु सांकृत्य

पुस्तकें समाज की थरथराहट होती है, बदलाव यहीं से शुरु होता है: डॉ. सत्यकेतु सांकृत्य

पुस्तक मेला के तीसरे दिन प्रकाशकों ने रखी अपने दिल की बात

मुकेश तिवारी
झांसी। बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में चल रहे राष्ट्रीय पुस्तक मेला और अखिल भारतीय लेखक शिविर के लेखक से मिलिए सत्र में दिल्ली के भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य डॉ. सत्यकेतु सांकृत्य ने कहा कि पुस्तकें समाज की थरथराहट होती हैं। आधुनिक युग में हम किताबों से दूर होते जा रहे हैं। आप पुस्तकों के बीच जाकर बैठेंगे तो वह स्वयं ही आपको आकर्षित करेंगी, सोशल मीडिया पर लेखकों की बाढ़ सी आ गई है। अधिकतर रचनाएं तो कूड़ा की तरह होती हैं लेकिन उसी कूड़े में से कुछ अच्छा भी निकल जाता है। सिनेमा और ओटीटी पर आधारित पुस्तकें भी अवश्य पढ़नी चाहिए। दतिया से आए प्रो निलय गोस्वामी ने कहा कि किताबें आपकी बहुत अच्छी मित्र और मार्गदर्शक होती हैं। पुस्तकें आपकी जीवन की बहुत सारी समस्याएं समाप्त कर सकती हैं। पुस्तक जरूर खरीदें और पढ़ें। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कला संकाय और हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो मुन्ना तिवारी ने कहा कि पुस्तक मेला लगवाने का हमारे उद्देश्य यही है कि युवाओं का किताब से लगाव बढ़े। सत्र का संचालन डॉ बिपिन प्रसाद और आभार डॉ श्रीहरि त्रिपाठी ने व्यक्त किया। इससे पूर्व मुद्दों पर चर्चा सत्र में लेखक और पाठक के बीच सेतु है प्रकाशक मुद्दे पर चर्चा हुई। सत्र में प्रकाशकों ने अपने मुद्दे और चुनौतियां साझा किया। सत्र की अध्यक्षता करते हुए सत्यम पब्लिकेशन के आरडी पांडेय ने कहा कि पुस्तकों की जरूरत हमेशा थी, है और रहेगी। उनकी जरुरत कभी खत्म नहीं हो सकती है। शोधार्थियों के लिए तो पुस्तकें सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। पाठकों की सुविधा के लिए हमने किताबों की होम डिलीवरी भी शुरू कर दी है। राज कमल पब्लिकेशन के मनीष धुरिया ने कहा कि प्रकाशक का उद्देश्य हमेशा पाठकों के लिए अच्छी किताब लाना होता है। इस सत्र में जे नारायन पब्लिकेशन के जय नारायण झा, नव शीला प्रकाशन के नंद कुमार श्रीवास्तव, शिल्पायन पब्लिकेशन के उमेश शर्मा, वर्मा बुक कंपनी के आदित्य वर्मा, साहित्य भूमि पब्लिशर्स के धर्मेंद्र कुमार सिंह, एआर पब्लिकेशंस अनुराग पांडे ने भी अपनी विचार रखे। सत्र का संचालन डॉ. बिपिन प्रसाद ने किया। अतिथियों का स्वागत प्रो. मुन्ना तिवारी और आभार डॉ. श्रीहरि त्रिपाठी ने व्यक्त किया। मुद्दों पर चर्चा सत्र के दूसरे भाग में वर्तमान समाज की दशा और दिशा पर चर्चा करते हुए समाज कल्याण विभाग के एसएन त्रिपाठी ने कहा कि पुस्तकें इसलिए जरूरी हैं क्योंकि वह हमे अच्छे और बुरे का बोध कराती हैं। श्रीमद्भगवद्गीता और रामायण का जिक्र करते हुए कहा कि सबको यह पुस्तके जरूर पढ़नी चाहिए और उनसे सीख लेनी चाहिए। उन्होंने युवाओं से संकल्प लिया कि वह इस मेला से एक पुस्तक अवश्य खरीदेंगे। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के सह आचार्य डॉ. शंभूनाथ सिंह ने कहा कि पुस्तकें गुरु और शिष्य को जोड़ने वाली कड़ी हैं। सफल होने के लिए पुस्तकों का महत्व पहले भी था आज भी है और कल भी रहेगा, मोबाइल पर भी ई-बुक पढ़ सकते हैं। मोबाइल का उचित उपयोग करें। सत्र की अध्यक्षता करते हुए हिंदी विभाग की शिक्षक डॉ. अचला पाण्डेय ने कहा कि व्यक्ति को कभी संघर्ष से पीछे नहीं हटना चाहिए। साहित्य और समाज एक दूसरे के दर्पण हैं। जितना हम पुस्तकों से सीखते हैं उतना ही हम अनुभव से भी सीखते हैं। जब हम पुस्तकों का अध्ययन करते हैं तो बहुत कुछ सीखते हैं। इस सत्र का संचालन नवीन चंद्र पटेल ने किया। आभार डॉ. सुधा दीक्षित ने व्यक्त किया। इस अवसर पर प्रो. पुनीत बिसरिया, डॉ. सुनीता वर्मा, डॉ. शुभांगी निगम, डॉ. प्रशांत मिश्रा, डॉ. अजय गुप्ता, डॉ. पुनीत श्रीवास्तव, आकांक्षा सिंह, अजय तिवारी, मनीष मंडल आदि मौजूद रहे।

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