क्या केरल सीरिया की राह पर है?
क्या केरल सीरिया की राह पर है?
अजय पाण्डेय
ऐसा कैम्ब्रीज शब्दकोश के अनुसार वर्षगांठ का अर्थ है- दिन जब पिछले वर्ष इसी दिन कोई महत्त्वपूर्ण घटना घटी। जन्म, मृत्यु और विवाह आदि की वर्षगांठ इसलिए मनाई जाती है, ताकि किसी विशेष घटना की यादें हमारे दिमाग में जिन्दा रहें।
बहरहाल अगर इन यादों (स्मृतियों) से पूरे देश की सांप्रदायिक सद्भावना बिगड़ती है, इसमें किसी समुदाय को पीछे धकेलने व लोगों में डर पैदा करने की क्षमता हो तो ऐसी वर्षगांठ को कोई समझदार व्यक्ति नहीं याद करेगा/मनाएगा। पीएफआई जैसे कहरवादी संगठन, जिनका इतिहास हिंसा से भरा पड़ा है, से सदा ही समझदारी, सांप्रदायिक सद्भावना, भाईचारा आदि जैसे शब्दों से बचने की कोशिश की है। इसकी जगह वे खुद की पहचान प्रभावपूर्ण ढंग से सांप्रदायिक हिंसा, चरमपंथ, आतंकवाद व इस्लामिक स्टेट जैसे शब्दों से बताते हैं।
हाल ही में पीएफआई की युवा शाखा कैम्पस फ्रंट आफ इण्डिया (सीएफआई) के नेताओं ने पूरे देश को सकते में डाल दिया जब उन्होंने 6 दिसंबर 2021 को केरल के पथानामथिट्टा जिले में स्थित कोट्टंगल नामक स्थान में सेंट जार्ज स्कूल में पढ़ने वाले ज्यादातर गैर-मुस्लिम बच्चों की स्कूल यूनिफार्म के ऊपर ‘मैं बाबरी हूँ’ संदेश के स्टिकर चिपका दिए। यह पीएफआई ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की वर्षगांठ को मनाने के लिए चलाए गए अपने एक अभियान के अन्तर्गत किया था।
सीएफआई के जिला सचिव ने बड़े शर्मनाक ढंग से खुद की एक फोटो फैला दी जिसमें वे ‘मैं बाबरी हूँ’ लिखे बिल्ले स्कूल जाते हुए मासूम और निरीह बच्चों की स्कूल यूनिफागों पर लगाते दिख रहे थे। इस पूरे प्रकरण के दौरान तीन गुलत बातें हुई जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पहली, जब पूरा राष्ट्र आगे बढ़ रहा है तो पीएफआई जैसे संगठन सस्ता राजनैतिक लाभ लेने के लिए बेगुनाह मुसलमानों की भावना से खिलवाड़ करते हुए वातावरण को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी पीएफआई के कार्यकताओं ने अपने घृणापूर्ण-एजेण्डे को बढ़ाने के लिए स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे मासूम बच्चों को भी नहीं बख्शा जो पीएफआई की कार्यप्रणाली के लिए अपनाए गए रास्ते और उद्देश्यों पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। आखिरी गलत बात यह हुई कि पीएफआई द्वारा किया गया यह घृणित कार्य दर्शाता है कि पीएफआई के कार्यकर्ताओं में, जिनमें केरल के कार्यकर्ता खास तौर पर शामिल हैं, एक प्रकार की निडरता/अभयदान की भावना घर कर गई है जो इनके द्वारा राज्य में की गई हिंसक घटनाओं के इतिहास और पीएफआई कार्यकर्ताओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही न होने से भी साबित होती है।
पद्म के जंगलों में पीएफआई द्वारा की गई हथियारों के प्रशिक्षण की का खुलासा होने, एक प्रोफेसर के हाथों को काटने, इसके तथा एक्यूआईएस जैसे संगठनों में भर्ती होने, अपने घटना कार्यकर्ताओं द्वारा आईएसआईएस राजनैतिक प्रतिद्वंदियों की हत्या करने और दुश्मनी के चलते हत्याएं करने की घटनाओं से यह साबित होता है कि पीएफआई के कार्यकर्ता दिन-रात कार्य करके, केरल को एक और सीरिया में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। बाबरी मस्जिद से संबंधित बिल्लों को बच्चों की यूनिफार्म पर लगाना एक बहुत ही ऐतिहासिक क्षण है। आने वाली नस्लें अपने चुने हुए विधायकों, प्रशासकों और कानून लागू करवाने वाली एजेंसियों से पीएफआई के विरुद्ध कार्यवाही न करने के बारे में सवाल करेंगी। यद्यपि अपराध करने वालों के खिलाफ कई केस रजिस्टर किए गए हैं, फिर भी इतिहास यह दर्शाता है कि हमारी आपराधिक न्यायिक व्यवस्था में विद्यमान कमजोरियों का फायदा उठाते हुए पीएफआई के कार्यकर्ताओं ने पैसा, जल और स्थिति का इस्तेमाल करते हुए सदा अपना बचाव किया है। यह दर्शाता है कि सिर्फ और सर्फ पीएफआई के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी रोक लगाकर ही चिरस्थायी हल निकाला जा सकता है।
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