नहर कटने से पचासों बीघा फसल डूबी, किसानों के सिर पर मंडरा रहे संकट के बादल
नहर विभाग के जिम्मेदारों की लचर कार्यशैली से किसान पीड़ित किठांवा सहित कई गांवों में गया नहर का पानी, जनजीवन अस्त-व्यस्त
अनुभव शुक्ला
सलोन, रायबरेली। स्थानीय तहसील क्षेत्र के किठांवा गांव जिम्मेदारों की लचर कार्यशैली के चलते किसानों के सिर पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। गेहूं व आलू के फसलों में जलभराव से फसलें चौपट होने के कगार पर हैं। बताते चलें कि ज़िम्मेदारों की लचर कार्यशैली के चलते नहर कटने से किसानों की लगभग 50 बीघा फसल जलमग्न हो गयी जिसको देखकर किसानों की माथे पर चिंता की लकीरें छा गई, क्योंकि वहां पर बोई गई फसल डूब गई है।
अगर समय रहते सिंचाई विभाग की तरफ से नहर पर बांध लगाकर पानी न रोका गया तो आलू गेहूं की फसल नष्ट हो जाएगी और किसानों को लाखों रुपए का नुकसान हो जाएगा। बताते चलें कि सलोन तहसील क्षेत्र के किठावा गांव के पास नहर कटने से किसानों की 50 बीघा आलू और गेहूं की फसल जलमग्न हो गई है। समय रहते अगर खेतों से पानी नहीं निकाला गया तो उस पानी में खड़ी हुई फसल डूब कर खराब हो जाएगी।
जिसकी वजह से किसानों को लाखों रुपए का नुकसान होगा, क्योंकि देश के अन्नदाता की कमाई का एक बड़ा जरिया खेतों में उपजे जाने वाली फसल होती है। सरकार भी किसानों की आय दुगनी करने की बात करती है, क्योंकि जब किसान खुशहाल होगा तो देश भी खुशहाल होगा। प्रधानमंत्री के द्वारा हर पटल पर किसानों की हित की बात की जाती है। वहीं समय रहते अगर सिंचाई विभाग के कर्मचारियों के द्वारा अपनी जिम्मेदारियों का सही से निर्वहन किया गया होता तो आज यह माइनर न कटता और किसानों की 50 बीघा उगी हुई फसल जलमग्न न होती।
क्षेत्रीय लोग जल विभाग पर आरोप लगाते हैं कि जब नहर में पानी छोड़ा जाता है तो इसकी मॉनिटरिंग भी की जानी चाहिए, मगर जिम्मेदार पानी छोड़ने के बाद नहर की पटरियों को चेक करना मुनासिब नहीं समझते जिसका खामियाजा किसानों को उठाना पड़ता है। एक तो आवश्यकता पड़ने पर पानी नहीं उपलब्ध कराया जाता और जब आवश्यकता नहीं होती है तब पानी उपलब्ध कराया जाता है। किसी तरह हम लोग फसल को उगाते हैं और जब पानी की आवश्यकता नहीं होती है उस समय हमारी फसल जलमग्न हो जाती है जिससे हमें काफी नुकसान होता है, हमारी खड़ी हुई फसल बर्बाद हो जाती है।
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