कहां उड़बू ये चिरई…
पँखिया पसार कहाँ उड़बू ये चिरई,
खोंतवा बनईबू किस डार हो।
गलती तो नाहीं कुछ कइलू ये चिरई,
नइया डूबत मंझधार हो।
पुरखन कै पेड़वा लगावल न बचनै हो,
रोइहैं पकड़ ई कपार हो।
गलती तो नाहीं कुछ कइलू ये चिरई,
नइया डूबत मंझधार हो।
पँखिया पसार कहाँ उड़बू ये चिरई,
खोंतवा बनईबू किस डार हो।
गढ़ई-तालाब मिली-जुल लोग पटनै हो,
सून कइनै अँगना तोहार हो।
गलती तो नाहीं कुछ कइलू ये चिरई,
नइया डूबत मंझधार हो।
पँखिया पसार कहाँ उड़बू ये चिरई,
खोंतवा बनईबू किस डार हो।
माटी कै देहियाँ एकदिन माटी में मिलिहैं हो,
कउनों न ओपर अख्तियार हो।
गलती तो नाहीं कुछ कइलू ये चिरई,
नइया डूबत मंझधार हो।
पँखिया पसार कहाँ उड़बू ये चिरई,
खोंतवा बनईबू किस डार हो।
टोलवा-मोहलवा जुटी अँसुवा बहईहैं हो,
दुई दिन कै बाटे ई बाजार हो।
गलती तो नाहीं कुछ कइलू ये चिरई,
नइया डूबत मंझधार हो।
पँखिया पसार कहाँ उड़बू ये चिरई,
खोंतवा बनईबू किस डार हो।
बदलल न सूरज-तरई, बदलल न चँनवाँ हो,
भयल विनाश धुँआधार हो।
गलती तो नाहीं कुछ कइलू ये चिरई,
नइया डूबत मंझधार हो।
पँखिया पसार कहाँ उड़बू ये चिरई,
खोंतवा बनईबू किस डार हो।
बम-एटम-बम पर सूतलै दुनिया हो,
एकर के बाटे जिम्मेदार हो।
गलती तो नाहीं कुछ कइलू ये चिरई,
नइया डूबत मंझधार हो।
पँखिया पसार कहाँ उड़बू ये चिरई,
खोंतवा बनईबू किस डार हो।
रामकेश एम. यादव, मुम्बई
(कवि व लेखक)
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