गांधी परिवार के सामने क्या बड़ी सियासी लाइन खींचना चाहते हैं रॉबर्ट वाड्रा?
गांधी परिवार के सामने क्या बड़ी सियासी लाइन खींचना चाहते हैं रॉबर्ट वाड्रा?
अजय कुमार लखनऊ
कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा के पति और राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा ने अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाता कर अमेठी की राजनीति में सनसनी फैला दी है। रॉबर्ट वाड्रा का नाम कहीं और से चर्चा में नहीं आया।वाड्रा ने स्वयं अमेठी से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है लेकिन संभवता गांधी परिवार के लिये यह फैसला लेना मुश्किल होगा कि रॉबर्ट को अमेठी से चुनाव लड़ाया जाय। इसके पीछे ठोस आधार भी है। रॉबर्ट को लड़ाने में सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनकी छवि काफी खराब यानी एक भ्रष्टाचारी के रूप में बनी हुई है। रॉबर्ट को अमेठी से चुनाव लड़ाया गया तो बीजेपी के लिये कांग्रेस और गांधी परिवार पर भ्रष्टाचार को लेकर हमला तेज करने का और भी मौका मिल जायेगा। फिर रॉबर्ट की कोई सियासी पहचान भी नहीं है। रॉबर्ट को चुनाव लड़ने पर यदि गांधी परिवार के भीतर सहमति बनी हुई होती तो कांग्रेसियों की एक बड़ी फौज रॉबर्ट को चुनाव लड़ाने के लिये हो हल्ला मचाने लगती लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। इस मतलब साफ है कि रॉबर्ट वाड्रा अपनी ससुराल से अलग लाइन पर चल रहे हैं। दरअसल रॉबर्ट चुनाव लड़कर कांग्रेस में अपना रूतबा बढ़ाना चाहते हैं। ऐसे में वह राहुल गांधी के समानांतर खड़े नजर आ सकते हैं। कुल मिलाकर रॉबर्ट वाड्रा गांधी परिवार के सामने एक बड़ी लाइन खींचना चाहते हैं। वह गांधी परिवार को चुनौती देते दिख सकते हैं, इसलिये राबर्ट का अमेठी से चुनाव लड़ने का सपना पूरा होता नहीं दिख रहा है।
खैर! रॉबर्ट वाड्रा के अमेठी से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर करने के बाद इतना जरूर हुआ है कि अब कांग्रेस का ध्यान इस ओर लगा हुआ है कि अमेठी की चुनावी रणभूमि में जल्द से जल्द अपना योद्धा उतारकर कमजोर हो रहे कार्यकर्ताओं को मजबूती देने का है। माना जा रहा है कि पार्टी अब कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता प्रतापगढ़ से रामपुर खास से विधायक आराधना मिश्रा मोना पर दांव खेल सकती है। अब सभी को कांग्रेस राहुल गांधी की हां और न का ही इंतजार है। राहुल गांधी की ओर से तस्वीर साफ होते ही किसी एक प्रत्याशी का नाम उजागर हो जायेगा। वहीं कांग्रेस के अमेठी के जिलाध्यक्ष प्रदीप सिंघल ने एक बार फिर अपनी बात दोहराते हुए कहा कि हमारे हिसाब से तो राहुल भइया ही अमेठी से चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे। गौरतलब हो कि रॉबर्ट वाड्रा ने एक समाचार एजेंसी से बातचीत करते हुए कहा कि अमेठी के लोग चाहते हैं कि उनके निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करूं। वर्षों तक गांधी परिवार ने रायबरेली व अमेठी में कड़ी मेहनत की। अमेठी के लोग वास्तव में वर्तमान सांसद (स्मृति ईरानी) से परेशान हैं, मतदाताओं को लगता है कि उन्होंने स्मृति ईरानी को चुनकर गलती की है।
बहरहाल कांग्रेस उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर अखिलेश यादव के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस को अमेठी और रायबरेली समेत 17 सीटें लड़ने के लिए मिली हैं। अमेठी और रायबरेली सीट पर कांग्रेस ने अभी तक अपने उम्मीदवारों का ऐलान नहीं किया है। इन दोनों ही सीटों पर संशय बना हुआ है। ये दोनों सीटें अहम हैं, क्योंकि ये सीटें हमेशा गांधी परिवार का गढ़ रही हैं। हालांकि 2019 में राहुल गांधी अमेठी सीट हार गए थे। दशकों तक जिस अमेठी में गांधी-नेहरु परिवार का डंका बजता था। आज उसी अमेठी में भाजपा की स्मृति का जादू चल रहा है। दस साल पहले आम चुनाव 2014 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुकाबला करने अमेठी आई स्मृति ईरानी ने मात्र 23 दिनों में ही यहां के लोगों से कुछ ऐसा नाता जोड़ा कि उन्हें 3 लाख से अधिक मत प्राप्त हुए।
मोदी सरकार में स्मृति ईरानी को हार के बाद भी मंत्री बनाया गया। इसी के साथ स्मृति ने अमेठी में अपनी सक्रियता बढ़ा दी। स्मृति की सक्रियता का लाभ भाजपा को मिलने लगा और एक के बाद एक चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आने लगे। गांव-गांव, घर-घर स्मृति अपनी नई पहचान बनाने में पूरी तरह सफल रही। आम चुनाव 2019 में स्मृति अमेठी में भाजपा का कमल खिलाने में कामयाब हुई। इसी के साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की जीत का सिलसिला भी चौथी बार थम गया। इससे पहले राहुल गांधी ने 2004, 2009 व 2014 में अमेठी हैट्रिक लगा चुके थे। अमेठी के चुनावी रणभूमि में भले ही अभी तक केंद्रीय मंत्री व सांसद स्मृति ईरानी अकेली घोषित योद्धा हों परंतु उनकी सक्रियता चुनाव को लेकर काफी बढ़ गई है। पिछले 4 दिन वह अमेठी में रहकर बूथवार चुनावी लड़ाई में बड़ी जीत के लिए रणनीति बनाने में जुटी रही।
वर्ष 1967 में अस्तित्व में आई अमेठी संसदीय सीट में कुल 5 विधानसभाएं हैं। इनमें अमेठी, जगदीशपुर, गौरीगंज व तिलोई अमेठी जिले की हैं जबकि सलोन विधानसभा रायबरेली जिले की है। बीते 3 चुनावों की बात करें तो अमेठी की जनता का मूड बदला-बदला नजर आया। वर्ष 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुनावी समर में उतरे राहुल गांधी ने 57.24 फीसदी मतों के अंतर से जीत दर्ज की लेकिन 2014 के चुनाव में परिणाम कुछ अलग दिखा। इस बार भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरीं स्मृति जूबिन ईरानी मजबूती से लड़ीं। यह बात अलग है कि राहुल गांधी ने जीत दर्ज की लेकिन मतों का प्रतिशत 25.07 फीसदी घटने के साथ ही जीत के अंतर में 32.83 फीसदी कमी आई। फिर वर्ष 2019 के चुनाव में स्मृति ने गांधी परिवार के गढ़ को ध्वस्त कर जीत दर्ज कर ली। संसदीय सीट की 5 विधानसभाओं में से चार पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। ऐसे में इस बार गैरकांग्रेसी सांसद के दोबारा जीतने, जीत का अंतर बढ़ाने, सभी पांचों विधानसभा सीटों से जीत हासिल करने की एक बड़ी चुनौती स्मृति ईरानी के सामने है।आधुनिक तकनीक से करायें प्रचार, बिजनेस बढ़ाने पर करें विचार
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