शादी वाला घर!

शादी वाला घर!

शादी वाला घर कुछ ज्‍यादा ही चमकदार हो जाता है
मकानों की कतार में
मोहल्ले में नज़र आता है बिल्कुल अलग
पहना दिए जाते हैं नए कपड़े रंगों के
चौखट पर सरगम छेड़ती है पगध्‍वनि
बजने लगती है साँकलें
शादी वाले घर को टेरता है आगंतुक आते ही
उठती है एक आत्‍मीय सुगंध रसोई से
शादी वाले घर में जीवंत हो उठते हैं
जीजी-जीजा, बुआ-फूफा, नानी-नाना जैसे सम्‍बोधन
बैठाते हैं आनुपातिक साम्‍य
भैया-भाभी, चाचा-चाची, दादा-दादी से
एक लाज और उत्‍साह से आ पैठते हैं
समधी-समधन जीवन में और
रिश्‍तों के धागे बुनते हैंं अपनेपन की चादर
एक नया सदस्य जुड़ता है शादीवाले घर से
इस तरह मंदिर से अधिक सार्थक हो जाता है शादीवाला घर।
-शुचि मिश्रा

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