प्रभु कथा अनुपम विविध विधि कवि संत सुनि सब गावहीं।
हरि चरित दुर्लभ अगम अति मुनि वृन्द पार न पावहीं।
माया प्रभुहिं प्रेरित जबै सुर मनुज मुनि मन मोहहीं।
अस जानि मायापतिहिं भजु जेहिं शिव निरन्तर ध्यावहीं।।
जागबलिक मुनि कहेउ पुनि कारन प्रभु अवतार।
राम कथा कल्मष नसै मंगल दायक चार।।
स्वायंभुव मनु दंपतिहिं सकल सृष्टि विस्तार।
धर्म आचरण रत सदा गावहिं जस श्रुति चार।।
चौथेपन मनु उर भगति विचारि करि
प्रभु भक्ति बिना तीनि पन बीति जात है।
राग अनुराग विषयादिक प्रपंच जग
लागि रहे प्रेम पुनि मन पछितात है।
राजपाट सुत दीन्हे हिय प्रभु नेह बस्यो
शतरूपा संग नृप बन चले जात हैं।
सिद्ध मुनि पंथ मिलि धीर मति दोउ सोहैं
भगति सहित मानो ज्ञान धरे गात है।
पुनि जाइ पावन धेनुमति स्नान जाया संग कियो।
नृप धर्म रूपहिं निरखि ग्यानी सिद्ध मुनि तिन सो मिल्यो।
मुनि संग पुनि नृप सकल तीरथ जाइ करि दर्शन हियो।
तन खीन अति परिधान वल्कल सुनत गुण श्रुति नित नयो।।
द्वादस अक्षर मन्त्र हिय करन लगे नित ध्यान।
श्री हरि पद राजीव मन करइ भ्रमर इव पान।।
प्रभु दर्शन उर लालसा, सुमिरत श्री भगवान।
त्यागि मूल फल अम्बु लगि लगे करन तप ध्यान।।
रचनाकार—— डाॅ. प्रदीप दूबे
(साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार
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