आदिवासी महिला बनी भारत की प्रथम महिला
भारत सरकार ने आदिवासी समुदाय की 10 करोड़ की आबादी में अपनी पहचान छिपाकर रखने वाली ऐतिहासिक धरोहर को अंततः समाज के सामने उनके सम्मान को दिलाकर जो जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा को लेकर हमेशा सजग और सतर्क रहें विश्व समुदाय में एक पहचान भी बना दी। अब इसी कड़ी में उड़ीसा राज्य के मयूरभंज जिले में 20 जून 1958 में जन्मी द्रोपदी मुर्मू संथाल परिवार से संबंध रखती हैं। वह अपनी उच्च शिक्षा भुनेश्वर से प्राप्त की। वहीं पर उनके साथ पढ़ने वाले लड़के से प्रेम हो गया लेकिन वहां की यह परंपरा है कि लड़के वाले ही लड़की के घर पर जाकर रिश्ते को मजबूत करते हैं। पहले तो परिवार के लोग मानने के लिए तैयार नहीं थे लेकिन धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया।
वैवाहिक बंधन में बंधने के बाद द्रोपदी मुर्मू शिक्षक के रूप में कार्य करने लगी वह दो बेटों, एक बेटी की मां भी बन गयीं लेकिन वक्त और हालात कब, कहां, किस मोड़ पर किसको ले आकर कहां खड़ा कर देगा, इसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। एक दशक के अंदर में दो बेटे और पति भी साथ छोड़ दिये। ऐसी विकट परिस्थिति में मात्र एक बेटी जो जीवन का आधार बनकर वक्त और परिस्थिति से लड़कर पहाड़ की तरह खड़ी रही है। जब स्थिति सामान्य हुई तब मयूरभंज से पौर पद के लिए चुन ली गईं। इनकी लोकप्रियता और ईमानदारी की चर्चा चारों तरफ जोर-शोर से चलने लगी। दो बार विधायक भी चुनी गईं। एक बार इनको मंत्री भी बनाया गया। इसी बीच इनको झारखंड का राज्यपाल (2015-2021 तक) बनाया गया। इसके बाद राष्ट्रपति चुनाव के खबर की आहट दूर-दूर तक सुनाई देने लगी। इसी बीच देर तक भाजपा के लिए कोई अच्छा राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार नहीं मिल रहा था।
बड़े-बड़े नामी-गिरामी लोगों के नामों की चर्चा जोर-शोर से चल रही थी। किसके नाम पर राष्ट्रपति का चुनाव भाजपा के लोग लड़े, विपक्षी के निशाने पर भाजपा आ गई थी। एक स्वच्छ छवि की उम्मीदवार की तलाश जोर-शोर से होने लगी। उड़ीसा राज्य में भाजपा का जनाधार मजबूत नहीं दिख रहा था। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साथ कई विषय विशेषज्ञों की बोलती ही बंद कर दी जबकि विपक्ष इस विषय को लेकर खूब चुटकी ले रहा था। अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्रोपदी मुर्मू के नाम का ऐलान जब किया तो चारों तरफ राजनीतिक विशेषज्ञों को भी यह मानना पड़ा कि यह एक ऐसा नाम था जो विपक्षियों के राजनीति के पहियों की हवा का रुख ही बदल दिया। यही कारण था कि द्रोपदी मुर्मू के नाम पर विपक्ष के लोगों ने भी उनका समर्थन कर राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार को 3 लाख से ज्यादा मतों से भारत की प्रथम महिला का चुनाव में विजय श्री मिलने के बाद संपन्न हो गया।
भले ही इनके सामने यशवंत सिन्हा के अपने कर्तव्य एवं जीवनशैली लोगों के सामने मजबूत हो लेकिन इनके ऊपर कोई उनका असर नहीं पड़ा। प्रधानमंत्री से लेकर अन्य विरोधी दलों ने भी इनकी लोकप्रियता से प्रभावित होकर स्वच्छ छवि की आदिवासी क्षेत्र से संबंध रखने वाली द्रोपदी मुर्मू को रायसीना की गद्दी पर आसीन कर विश्व स्तर की राजनीति को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उच्च राजनीति का लोहा मनवा दिया। अब इंतजार लोगों को 25 जुलाई का है। जब वह राष्ट्रपति पद की शपथ लेकर विश्व समुदाय में भारत के आदिवासी समुदाय की प्रथम महिला होने का गौरव भी प्राप्त कर लेंगी।
आधुनिक तकनीक से करायें प्रचार, बिजनेस बढ़ाने पर करें विचार
हमारे न्यूज पोर्टल पर करायें सस्ते दर पर प्रचार प्रसार।