सिस्टम की कमजोर कड़ी है विष्णु तिवारी जैसे लाचार

सिस्टम की कमजोर कड़ी है विष्णु तिवारी जैसे लाचार

अजय कुमार, लखनऊ
दुष्कर्म के आरोप में 19 साल तक जेल की सजा काटने वाले विष्णु अकेले ऐसे शख्स नहीं हैं जिन्हें यह अभिशाप झेलना पड़ा। हमारे सिस्टम की खामियों का शिकार विष्णु जैसे अनगिनत लोग मौजूद हैं। किसी को न्याय पालिका से इंसाफ नहीं मिलता है तो कोई सरकार और सरकारी महकमो की लालफीताशाही और नाइंसाफी का शिकार हो जाता है। यह समाज का वह तबका है जिसकी आवाज सुनने के लिए न कोई नेता सामने आता है, न अपवाद को छोड़कर मानवाधिकार के नाम पर हो-हल्ला मचाने वाले लोगों की। ऐसे लोगों को इंसाफ दिलाने में कोई रूचि रहती है।

राजा चौधरी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व बिहार प्रदेश प्रभारी मनोनीत

वर्ना आांतकवादियों, देशद्रोहियों, भ्रष्टाचारियों, एनकांउटर में मारे गए बदमाशों के पक्ष में अदालत से लेकर मीडिया और चौक-चौपालों तक में ’संग्राम’ छेड़ देने वाले ऐसे लोगों के साथ भी जरूर नजर आते जो आर्थिक रूप से संपन्न नहीं होने कारण कोर्ट-कचहरी का खर्चा वहन करने की हैसियत नहीं रखते हैं। बड़े-बड़े वकीलों को खड़ा करके न्याय हासिल कर लेने वालों के नाम पर अगर कोई ’व्यवस्था’ यह ढिंढोरा पीटती है कि उसके दरवाजे सभी को न्याय देने के लिए खुले रहते हैं तो फिर ऐसी व्यवस्था के दरवाजे पर विष्णु की आवाज क्यों नहीं पहुंची। क्यों विष्णु के दर्द को हमारे नेताओं ने नहीं समझा। विष्णु की कहानी बताती है कि हमारी न्याय पालिका के दो चेहरे हैं। एक चेहरा आर्थिक रूप से संपन्न लोगों के लिए जो पैसे के बल पर न्याय हासिल कर लेते हैं तो दूसरी तरफ विष्णु तिवारी जैसे लोगों की जमात हैं जो आर्थिक अभाव के चलते ना वकील कर पाते हैं न कोर्ट कचहरी का खर्चा उठाने की उनके पास ताकत होती है। ऐसे लोग जेल में सड़ने हो मजबूर रहते हैं। भले ही इनका अपराध जितना भी छोटा क्यों न हो? इन पर लगाए गए आरोप बेबुनियाद नजर आते हो? यह कैसे हो सकता है कि विष्णु तिवारी जैसे लोगों का दर्द किसी को क्यों नही दिखता है, जिस देश में सरकारेें आंतकवादी घटनाओं को अंजाम देने का मुकदमा वापस करने लेने में नहीं हिचकती हो वहॉ बेगुनाह विष्णु का 19 वर्षो तक जेल में रहना दुखद ही नहीं शर्मनाक भी है। इस पर न कभी कोर्ट का ध्यान जाता है और न ही संविधान के नाम पर हो हल्ला मचाने वाले अपना मुंह खोलते हैं।

शायद ऐसे लोगों की यही नियति है कि वह नेताओं के वोटबैंक का हिस्सा नहीं लगते होंगे।ं वर्ना इनके प्रति भी हमारी ’व्यवस्था का रवैया अलग नहीं होता। जिस देश में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश की आन-बान-शान से खिलवाड़ करने वालों का कोई सिस्टम बाल भी बांका नहीं कर पाता है। जहां बड़े-बड़े देशद्रोहियों की आवाज को सियासत के पैरो तलें कुचल दिया जाता हो, वहां विष्णु तिवारी के साथ हुई नाइंसाफी को कोई मुददा बनाएगा, इसकी उम्मीद किसी से नहीं की जा सकती है। इस नाइंसाफी पर न सीएए के विरोध के नाम पर देश में अराजकता फैलाने वालों, दिल्ली के दंगाइयों और किसान आंदोलन के नाम पर लाल किले पर उपद्रव करने वालों के साथ खड़े होने वाले राहुल गांधी, प्रियंका, अखिलेश यादव जैसे लोग कोई मुहिम चलाएंगे और न ही अनुराग कश्यप, उमर खालिद कन्हैया कुमार आदि टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोग कुछ बोलेंगे। जो मोदी सरकार के हर फैसले पर लोगों को भड़काने की साजिश रचते रहते हैं। यह सरकार को घेरकर अपने ऊपर लगे आरोपों को राजनैतिक जामा पहनाने मैं सक्षम रहते हैं।

बहरहाल, एक झूठे केस ने एक आदमी की पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी। रेप और एससी/एसटी के झूठे केस में फंसाए गए यूपी के ललितपुर के रहने वाले विष्णु तिवारी के 20 साल जेल में गुजरे। इन 20 सालों में विष्णु ने अपना सब कुछ खो दिया। मां-बाप और दो भाईयों की मौत हो गई। तब भी इनको पैरोल नहीं मिल पाई होगी या फिर विष्णु को किसी ने बताया नहीं होगा कि ऐसे समय में उसे पैरौल मिल सकती थी। इसी वजह से उसे अपने घर के लोगों का आखिरी बार चेहरा देखना तक नसीब नहीं हुआ। 20 साल बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा विष्णु तिवारी को रेप और एससी/एसटी एक्ट के मामले में मिली आजीवन कारावास की सजा में निर्दोष साबित करते हुए रिहाई का आदेश दिया गया। विष्णु तिवारी आगरा जेल से रिहा होकर अपने घर ललतिपुर पहुंच जरूर गए हैं लेकिन उनकी जिंदगी में बचा कुछ नहीं है। लाचार विष्णु ने सरकार से मदद मांगी है। उनका कहना है कि अगर सरकार ने मदद नहीं की तो उन्घ्हें मजबूरन आत्महत्या करनी पड़ेगी। विष्णु तिवारी अपनी दर्द भरी दांस्ता सुनाते हुए कह रहे हैं कि पशुओं को लेकर एक विवाद के बाद दूसरे पक्ष ने थाने में शिकायत की थी। थाने में 3 दिन प्राथमिकी नहीं हुई तो राजनीतिक दबाव डलवाकर एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया गया था। विष्णु का कहना है कि वह अपनपढ़ थे। उन्हें न ही पुलिस जांच के बारे में पता था और न ही वकील के बारे में कुछ पता था। इसी वजह से विष्णु को 20 साल तक उस जुर्म की सजा जेल में रहकर गुजारनी पड़ी जो उसने किया ही नहीं था। अब हाईकोर्ट ने विष्णु तिवारी को निर्दोष मानते हुए बरी कर दिया है परंतु इसे न्याय या फैसला नहीं कहा जा सकता है। अच्छा यह रहा कि होईकोर्ट ने इसके साथ ही ऐसे केसों में जल्द सुनवाई करने के भी कड़े निर्देश दिए हैं। विष्णु के लिए सबसे अच्छा अगर कुंछ रहा तो यह था कि वह निर्दोष साबित होकर घर लौट आए हैं। उनके माथे से कलंक का टीका हट गया है लेकिन इसकी एवज में उन्हें सब कुछ खोना पड़ गया। विष्णु के पास अब कुछ नहीं बचा है। न घर है, न जमीन है और न ही पैसे हैं। विष्णु ने सरकार से आगे का जीवन बिताने के लिए मदद की अपील की है। फिलहाल विष्णु ने किराए का एक कमरा ले लिया है। यहीं से उन्हें आगे का सफर तय करना है। वह भी अकेले।

(लेखक उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ मान्यताप्राप्त पत्रकार हैं। मो. 9335566111)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Read More

Recent