राज्य सरकार की बेरुखी से व्यथित परिजन, नौकरी समेत शासन की तमाम घोषणाएं कोरी
केराकत, जौनपुर। युद्ध जीते जाते हैं शहीद जवानों के लहू के दम पर.. कारगिल की जीत के पीछे भी सैकड़ों जवानों की कुर्बानी थी। तब पूरे देश ने शहीदों को भरसक सम्मान दिया और जनभावना से मजबूर सत्तासीनों ने तमाम घोषणाएं भी कीं ये दीगर है कि वो घोषणाएं कोरी और झूठी साबित हुईं।
कारगिल विजय दिवस की 21वीं वर्षगांठ पर अमर शहीद धीरेंद्र प्रताप की विधवा, उनके बच्चे और परिजनों का हाल लेने पहुंचे तो सामना हुआ ऐसे सच से हुई जिसके झूठ होने की चाहत हर देशभक्त और सेना को सम्मान देने वाला हर नागरिक करेगा। परिजनों से तत्कालीन राज्य सरकार ने नौकरी, पेट्रोल पंप और आर्थिक सहायता जैसे तमाम वादे किये लेकिन एक भी वादा आज तक पूरा नहीं किया गया। यहां तक कि परिवार वालों ने अपने खर्च पर शहीद के सम्मान और उनकी याद में मूर्ति बनवाया गया।
गौरतलब है कि कारगिल युद्ध में केराकत क्षेत्र के जवान धीरेंद्र प्रताप यादव की भी शहादत हुई थी। यह खबर जब उनके पैतृक निवास तेजपुर पहुंची तो परिवार समेत पूरे क्षेत्र में गम का माहौल छा गया। शहीद की एक झलक पाने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ा और “पाकिस्तान मुर्दाबाद” के नारों से पूरा केराकत गूंज उठा।
कारगिल युद्ध की पहली वर्षगांठ पर सरकारी तौर पर कुछ कार्यक्रम आयोजित करके औपचारिकता पूरी की गई और शहीदों के परिजनों एवं क्षेत्रवासियों के प्रति सम्मान व्यक्त किया गया। उस समय उपस्थित प्रशासनिक अधिकारियों को ग्रामीणों ने अपनी भावनाओं से भी अवगत कराया था, शहीदों के नाम पर शहीद स्मारक हर गांव के चौक पर लगाने की बात कही गई थी मगर आज तक कुछ भी नहीं हुआ।
इस बाबत जब शहीद के भाई त्रिभुवन यादव से बात की तो पता चला कि केंद्र सरकार द्वारा की गईं घोषणाएं तो पूरी हुईं लेकिन राज्य सरकार ने जो भी घोषणाएं की, वह सिर्फ फाइलों में दर्ज होकर रह गईं। उसी समय आश्रितों को नौकरी और पेट्रोल पंप की घोषणा की गई, जो आज तक पूरी नहीं हुई। परिजनों के मुताबिक उन लोगों ने गांव वालों के सहयोग से खुद के पैसों द्वारा हनुमान नगर मोड़ पर शहीद धीरेंद्र प्रताप यादव की प्रतिमा स्थापित करवाई।
भाई त्रिभुवन बताते हैं कि मूर्ति अनावरण कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित कैबिनेट मंत्री स्व. पारसनाथ यादव ने शहीद के बेटे इंद्रजीत यादव व पत्नी मंजू देवी को भरोसा दिलाया था कि वह हरसंभव सहयोग के लिए तैयार हैं और हनुमान नगर चौराहे से तेजपुर गांव तक के सड़क मार्ग को शहीद धीरेंद्र के नाम से करने का आश्वासन दिया था, जो आज तक अधूरा है। आलम यह है कि शहीद के घर तक पहुंचने के लिए खड़ंजा भी नहीं बना है। ऐसी न जाने कितनी योजनाएं हैं राज्य सरकार की जो फ़साना साबित हुईं।
शहीद धीरेंद्र के भाई का कहना है कि धीरेंद्र का बेटा अब बड़ा हो गया है, ऐसे में सरकार को अपना वादा पूरा करना ही चाहिए। शहीद के बेटे को नौकरी देकर सरकार अपनी इतनी पुरानी भूल को सुधारने की कोशिश भी कर सकती है इससे शहीद धीरेंद्र की आत्मा को भी संतुष्टि पहुंचेगी। बताते चलें कि अब तक केराकत तहसील क्षेत्र के लगभग 10 जवानों ने अपनी जान कुर्बान करके इतिहास के पन्नों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है लेकिन अफसोस की बात है कि केंद्र सरकार व राज्य सरकार की बेरुखी से शहीदों के परिजनों को कोई फायदा नहीं मिला है।
शहीद जावेद खान की वीरान पड़ी कब्र देखें तो दिल दहल उठता है। भौरा ग्राम निवासी शहीद संजय सिंह के परिवार का दर्द सुनते ही दिल दहल उठता है। इन शहीदों के परिजनो ने अपनी बात रखने की बहुत कोशिश भी की अपनी बात जिम्मेदारों तक पहुंचा भी पाए लेकिन उसका कोई असर नहीं दिखा।