पेशकारों के इर्द-गिर्द मौजूद रहने वाले कमाऊ पूतों से त्रस्त है आमजन
भ्रष्ट नौकरशाही के आगे बेबस है मुख्यमंत्री योगी की पारदर्शी कार्यशैली
बिना किसी निविदा व संविदा के सरकारी पत्रावलियों का रोशन करते हैं रख-रखाव
संदीप पाण्डेय
रायबरेली। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पारदर्शी कार्यशैली भ्रष्ट नौकरशाही के आगे बेबस नजर आ रही है। सदर तहसील के एसडीएम और तहसीलदार के पेशकारों के इर्द-गिर्द मौजूद रहने वाले कमाऊ पूतों से आम आदमी त्रस्त हो चुका है। उल्लेखनीय है कि तहसील में बिना चढ़ावे के कोई भी काम करा पाना असंभव है। फर्जी कामों की तो मुंहमांगी कीमत और सही काम के लिए तय रेट से अवैध वसूली होती है। एसडीएम की नाक के नीचे चल रहे इस गोरखधंधे की जानकारी के बावजूद भी कोई दखल नहीं देना खुद की संलिप्तता की ओर इशारा करता है।
अनेकों मामलों में मृतकों के परिवारों में असहमति का लाभ उठाकर पीड़ितों से जमकर वसूली की जाती है। इस काम के लिए एसडीएम और तहसीलदार के पेशकारांे ने सरकारी दफ्तर में बिना किसी निविदा और संविदा के ही अपने कमाऊ पूतों को पत्रावलियों के रख-रखाव और शिकायतों के निस्तारण की जिम्मेदारी दे रखी है। दिलचस्प है कि खबर छपने के बाद तहसीलदार के पेशकार का तथाकथित मुंशी लाला तो गायब हो गया लेकिन एसडीएम के पेशकार का तथाकथित मुंशी रोशन का इकबाल अभी कायम है। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से सदर तहसील में दर्जनों मामलों में फर्जीवाड़ो का खुलासा हुआ है। एक तरफ मुख्यमंत्री का आदेश है कि सरकारी अभिलेखों में कार्यवाही की गोपनीयता भंग नहीं होने पाये। फिलहाल देखना है कि अवैध वसूली के लिए रखे गये तथाकथित कर्मचारियों के ऊपर कब कार्यवाही का चाबुक चलेगा। विवादित जमीनों में पीड़ितों को न्यायोचित फैसला करके उनका हक दिलाये जाने के नाम पर भी खूब वसूली की जाती है। प्रबुद्ध वर्ग के दर्जनों लोगों ने डीएम से इस तरह की अवैध वसूली रोके जाने और तथाकथित कर्मचारियों के ऊपर कानूनी कार्यवाही की मांग किया है।
मुकदमों में कार्यवाही की ओट में की जा रही अवैध वसूली
रायबरेली। तहसील में नायब तहसीलदारों के न्यायालयो में प्रायः रात के अंधेरे में भी सरकारी फाइलों में काम करते हुए फर्जी लोगों को देखा जा सकता है। तेजस टूडे की पड़ताल में शनिवार की रात लगभग 8 बजे सभी अधिकारियों की गैरमौजूदगी में एक नायब तहसीलदार के न्यायालय में सरकारी फाइलों में काम किया जा रहा था। अब सवाल है कि बहुत महत्वपूर्ण काम था तो अधिकारी मौजूद क्यों नहीं थे। आखिर बाहरी व्यक्तियों के भरोसे शासन के किस निर्देश पर न्यायालय में कौन सा महत्वपूर्ण काम था जिसको निपटाना सवालों के घेरे में है। सूत्रों की मानें तो प्रायः इसी तरह मुकदमों में कार्यवाही की ओट में अवैध वसूली की भूमिका तैयार करने का सबसे मुफीद समय होता है। जब कभी कोई मामला खुलता भी है तो अधिकारी अपनी गैरमौजूदगी बताकर अपना पल्ला झाड़ मामले को जांच के हवाला देते हैं।
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