दुकान राय बहादुर की
अक्सर मिल जाते हैं…!
किसी भी विषय पर,
राय देने वाले लोग….
अमूमन…बुजुर्ग और अनुभवी…
जो अपना अनुभव बाँटते हैं,
पूरे विश्वास के साथ….
उनके लिये….
सतही ज्ञान और राय-मशविरा
नीम-हकीम खतरा-ए-जान है..
पर अब तो….इस जमाने में….
इंस्टेंट परफारमेंस का जलवा है
सोशल मीडिया से लोग…
सब बात जान जाते हैं…भले ही..
तकनीकी ज्ञान अधूरा होने से….
हरकतें सभी बचकानी करते हैं
विकास के ऐसे दौर में,
खुद की काबिलियत देखकर
सोचता हूँ मैं एक दुकान खोल लूँ
माकूल-पुख्ता और साथ में त्वरित
राय-परामर्श देने की… क्योंकि…
जमाने की आवश्यकता भी है
और पुराने दस्तूर को,
नया आयाम भी मिलेगा….
खुद की क्वालिफिकेशन पर
मुझे विश्वास है…. लेकिन….
मैं भी राय लूँगा….
किसी ज्योतिषी से और फिर
किसी मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव से
इसकी उत्तरजीविता के प्रश्न पर…
फिर एडवरटाइजिंग करूँगा….
विशेषज्ञ परामर्शदाताओं का
एक पैनल बनाऊँगा….
उनको ऑल कॉल बुलाऊँगा
दुकान के सामने….
नक्कालों से सावधान….
असली-राय मशविरे की
यही दुकान……
आपका ध्यान किधर है….
राय-मशविरे की दुकान इधर है
हमारी इस दुकान की,
कोई अन्य शाखा नहीं है….
सौ फ़ीसदी सफलता की गारण्टी
राय-मशविरा के फेल होने पर,
पचास फीसदी फीस की वापसी..
ऐसे बैनर लगाऊँगा….और…
सन्देह में व हमेशा सशंकित…
जीवन जी रहे लोगों के बीच,
शर्तिया … नाम कमाऊँगा….
यही सब सोच रहा था,
सपने में बाग-बाग हो रहा था
कि बीबी आकर जगा गई
पड़ोस में शादी है….
खरीददारी-गिफ़्ट और
ब्यूटी पार्लर के बारे में मुझसे,
मेरी राय-मशविरा माँग गई….
मैं अब खुद ही कश्मकश में था
क्या राय दूँ…क्या बनाऊँ पैनल…
किसी का कुछ मानना तो है नहीं,
बेहतर है बन्द कर लूँ….!
अपने सपनों की दुकान का चैनल
बेहतर है बन्द कर लूँ….!
अपने सपनों की दुकान का चैनल
रचनाकार——जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद-कासगंज
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