दूसरों के खेतों में मजदूरी करने वाली सीमा अब समाजसेविका के नाम से जानी जाती हैं

दूसरों के खेतों में मजदूरी करने वाली सीमा अब समाजसेविका के नाम से जानी जाती हैं

जितेन्द्र सिंह चौधरी
वाराणसी। 15 अगस्त को एक गांव में जन्म लेने वाली सीमा अपने पिता और परिवार के साथ दूसरे के खेतों में मजदूरी करती थी लेकिन पिता अशिक्षित होते हुए भी मजदूरी करके उन्हें 8वीं तक की शिक्षा ग्रहण कराया। सीमा अपने गांव की पहली ऐसी लड़की है जिन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन के साथ b.Ed की पढ़ाई काम करके खुद अपने बलबूते पर किया।

जैसे तैसे जिंदगी चल ही रही थी कि 2010 में कुछ ऐसी घटनाएं सीमा के परिवार के साथ हुआ कि उन्हें समाज में निकल कर बाहर आना पड़ा। सीमा चौधीरी ने बताया कि परिस्थितियों इतनी खराब हो चुकी थी कि हम लोगों के सामने मदद के लिए भीख मांगते गिड़गिड़ाते लेकिन किसी ने हमारी मदद नहीं कि और आखिर मेरा परिवार बिखर गया। साथ ही मेरी एक बहन जो 24 वर्षीय है और पूरी तरीके से विकलांग है जब भी हम अपनी बहन को लेकर कहीं जाते सफर करते और हमें किसी की सहायता की जरूरत पड़ती तो लोग हमें हीन भावना से देखते मेरी बहन को छूने से बचते। इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए मैंने देखा कि आज के दौर में व्यक्ति किसी की मदद करने से कतराता है। कभी-कभी इंसान जब कमजोर पड़ता है तो पैसों से ज्यादा उसे किसी कंधे की आवश्यकता होती है। वहीं कंधा हमें सही समय पर नहीं मिल पाता। मैं हमेशा सोचती थी कि कुछ तो लाइफ का मकसद होगा। शायद इन्हीं सब घटनाओं के साथ मुझे पता चला कि मेरे लाइफ का मकसद है।
लोगों की सहायता करना उनकी मदद करना और मैंने अपना जीवन समाजसेवा में समर्पित कर दिया। समाजसेवा करने लगी जिससे मुझे काफी सुकून मिलता है। जब मैं किसी के लिए कुछ ना करके सिर्फ उसके साथ खड़ी रहती हूं। जब मुझे किसी की कोई परेशानी दिखता है तो मुझे अपना वक्त याद आता है और मैं पूरी ईमानदारी के साथ उसकी सहायता करती हूं। कुछ लोग बोलते हैं कि तुम बेवकूफ हो जो इतना मेहनत करके ऐसे दूसरों के लिए भागती रहती हों तो बोलती हूं। मैं भी जॉब करती थी लेकिन मैंने देखा कि जब और लोगों के लिए भाग दौड़ करना पड़ता है तो काम और समाज सेवा करना बहुत मुश्किल हो जाता है। जिस वजह से मुझे अपना काम छोड़ना पड़ा और मुझे सुकून है। मैं बहुत खुश हूं। मेरे पॉकेट में बहुत ज्यादा पैसे नहीं है लेकिन हां तसल्ली है कि मैं किसी के काम आ रही हूं।
किसी के परेशानी में उसके साथ खड़ी रह पा रही हूं। जब एक मां का बच्चा उसे उससे बिछड़ जाता है और वह रोती है, बिलखती है। लोगों से मदद की गुहार लगाती है। मैं कोशिश करती हूं कि उसके साथ खड़ी रहूं जब एक महिला के साथ किसी भी तरह का अनहोनी होता है या कोई घटना घटती है तो मुझे लगता है कि कल मेरे साथ भी हो सकता है।
जब वाराणसी में अश्लीलता जैसे मुद्दे पर काम करने की शुरुआत की बहुत लोगों ने मुझे पीछे हट जाने का सलाह दिया लेकिन बाबा महादेव की विश्वास जी पर भरोसा रखकर मैं आगे बढ़ी। आज पूरे प्रदेश में मिशन शक्ति का चर्चा है लेकिन पूरे प्रदेश में पुलिस के साथ सबसे पहले वाराणसी से मैं ही स्कूल कॉलेज में जाकर इस तरह से बच्चियों को जागरूक करने की शुरुआत की थी जो आज प्रदेश में मिशन शक्ति का भी वही काम है। समाजसेवा करने के लिए किसी बैनर की आवश्यकता नहीं होती है। हर एक व्यक्ति के व्यवहार में समाजसेवा की भावना होती है। वह करता है। लोगों की मदद करना कोई बुरी बात नहीं है।सीमा ने बताया कि इतने कम उम्र में अपना पूरे शरीर का अंगदान भी कर दिया है। ना रहने पर भी किसी न किसी के काम मैं आ सकूं, यह मेरा सौभाग्य है। आज सीमा महिलाओं के हक़ और सम्मान के लिए समर्पित हैं।

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