विभिन्नताओं में जीने के लिये सुरक्षित समाज देता है सनातन धर्म
विभिन्नताओं में जीने के लिये सुरक्षित समाज देता है सनातन धर्म
सुशील उपाध्याय
आज समाज के सामने सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है कि एक बहुधार्मिक समाज में शांतिपूर्वक कैसे रहा जाय? धार्मिक आतंकवाद दूसरों की मान्यताओं तथा आस्थाओं को ढहाने पर तुला है|
वह हर ऐसी चीज को नष्ट कर देना चाहता है जो उनसे अलग दिखता है| ऐसे में सनातन धर्म विभिन्ताओं में जीने के लिए एक सुरक्षित तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व वाले समाज का मार्ग प्रशस्त करता है|
धर्म-व्यवस्था व्यापक रूप में दो धड़ों में बंटी है| एक तरफ सनातन धर्म है जो “सत्य एक है“ तथा उसकी प्राप्ति के सभी धर्मों के रास्ते को स्वीकार करता है| इसके अनुसार सत्य किसी एक धर्म का नहीं, बल्कि सभी धर्मों का सारतत्व है तथा इसे जानने के सभी धर्मों के अपने रास्ते हो सकते हैं| इस धार्मिक विचारधारा का लक्ष्य व्यापक एवं सर्वसमावेशी है| इसकी सूक्तियाँ वैश्विक प्रकृति की हैं|
यह एकः सद विप्राः बहुधा बदंति, सर्व धर्म समभाव, सर्वे भवन्ति सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया तथा स्वदेशो भुवन त्रयम् (तीनों लोक अपने देश है) का अलख जगाता है| वहीं दूसरी ओर सेमिटिक धर्म हैं जिनकी मान्यता है कि ‘सत्य एक है’ तथा उसे जानने का रास्ता भी एक है और यह रास्ता केवल उनके धर्म के पास है|
इस प्रकार कि सोच दूसरे धर्म के प्रति असहिष्णुता तथा घृणा और अनादर का भाव पैदा करती है जिससे एक बहुधार्मिक समाज में शांति से रहने कि संभावना क्षीण हो जाती है| इससे उलट एक सनातनधर्मी दूसरे धर्मों के साथ पारस्परिक आदर ही नहीं, बल्कि सब धर्मों को बराबर की मान्यता के आधार पर शांति एवं सदभाव के साथ रहने कि प्रेरणा देता है|
असल में ईसाइयत तथा इस्लाम का यह विश्वास कि सत्य को जानने का उनका ही रास्ता सही है, सत्य को एक नायाब खोज की तरह बना देता है, इसलिए इन धर्मों को मानने वाले अपने धर्म के विस्तार को एक अधिकार कि तरह मानते हैं| यह सोच धार्मिक उच्चता एवं लालच व जोर जबरदस्ती से धर्मान्तरण को जन्म देती है और यह एक सबसे बड़ा धार्मिक कृत्य बन जाता है|
लौकिक धरातल पर अपने धर्म का विस्तार धार्मिक साम्राज्यवाद का कारण बनता है| इस प्रकार मनुष्यों के धार्मिक कल्याण के जोश एवं ओट में यह वाद-विवाद के अशोभनीय तरीके के प्रयोग का रास्ता खोल देते है| वहीं दूसरी ओर एक सनातनधर्मी हिन्दू जो कण-कण में ईश्वर कि अवधारणा को व्याख्यायित करता है, उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कौन किस मार्ग से सत्य जानने कि चेष्टा करता है, इसलिए सनातनधर्मी हिन्दुओं में अपने ही धर्म को उच्च मानने एवम धर्मान्तरण के साथ धर्म के भौगोलिक विस्तार का पूरी तरह लोप है|
यह निश्चित ही एक यूटोपियन विचार है कि पूरा विश्व एक ही धर्म को मानने लगे, ऐसा सोचना अप्राकृतिक है क्योंकि विभिन्नता प्रकृति का गुण है| स्वामी विवेकानन्द ने एक समय कहा था कि भारत के 25 करोड़ लोग यदि 25 करोड़ धर्म ईजाद कर लें तो मैं यह समझूंगा कि धर्म और अधिक विकसित हो रहा है| अतः धर्मों के सम्बन्ध में यह विश्वास कि सत्य की खोज हो चुकी है, उसका कथन हो चुका है, वह अपने प्रतिमान को प्राप्त कर चुका है तथा इस दिशा में कुछ भी किया जाना न शेष है और न ही संभव, धर्म को जड़ता एवं कट्टरता से बांध देता है|
इस झंझट की शुरुवात ईसाई धर्म के उन व्याख्याकारों ने कि जिन्होंने विचार विमर्श को निषिद्ध करार दिया और कहा कि धर्म के विषय में जो कुछ जानने योग्य है वह जाना जा चुका है तथा उसकी जानकारी उनको ही है| इस प्रकार के विचार से धर्म अंधविश्वास कि जंजीरों में जकड़ गया| विचारों के पारस्परिक आदान-प्रदान से ही अन्य धर्मों के आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध किया जा सकता है| इसके लिये अन्य धर्म सनातन धर्म से बहुत कुछ सीख सकते है|
विश्व प्रसिद्ध ईसाई इतिहासकार अर्नाल्ड टायनबी कहते हैं “मुझे यकीन हो गया है कि सत्ता के रहस्य कि कुंजी धर्म के हाथ में है लेकिन मुझे यकीन नहीं है कि यह कुंजी केवल मेरे पूर्वजों के धर्म के हाथ में है| भारतीय धर्म अपने को एक मात्र सच्चा धर्म नहीं मानते है|
वे मानते हैं कि सत्ता के रहस्य को जानने के अन्य तरीके भी हो सकते है| मुझे यकीन है कि उनका यह दृष्टिकोण सही है और यह कि इस युग में जब हमें अपने को विनाश से बचाने के लिए एक परिवार के सदस्यों की तरह रहना है, भारतीय धर्म की उदार भावना सब धर्मों के लिए मुक्ति का तरीका है”।
आज जिस गतिरोध में हम है वह बौद्धिक से ज्यादा आध्यात्मिक गतिरोध है| वैसे भी दो महायुद्धों ने हमें दिखा दिया है कि इन्सान कैसे बौद्धिकता के शिखर पर पहुँचने के बावजूद अनैतिकता के गहरे गर्त में गिर सकता है| इसी प्रकार दुनिया उस धर्मांधता से भी परिचित है जिसने यूरोप को धर्म युद्धों में लगाकर बर्बाद किया| सनातन धर्म कि मान्यता है की विभिन्न धर्म एक ही आध्यात्मिक भाषा कि अलग–अलग बोलियाँ है| उन सबका लक्ष्य जो धार्मिक अनुभव है।
वह बोलियों के भेदों से ऊपर है| वर्णन बदल जाते है लेकिन सत्य वही रहता है| असल में प्रत्येक धर्म जड़ता से अलग उपासना, आचार एवं विचार का एक जीवंत रूप है जो युग कि आवश्यकताओं के अनुरूप बदलता रहता है| यदि धर्मों के संदेशों को इस युग की समस्याओं से जोड़ना है तो हमें यह विचार त्यागना होगा कि कोई एक धर्म अंतिम सत्य का ज्ञाता है तथा यह मानना होगा कि सत्य सभी धर्मों में व्यक्त होता है|
सनातन धर्म आधुनिक युग की दो महत्वपूर्ण विशेषताओं, विज्ञान एवं लोकतंत्र का पोषक है| हमारे धर्म ग्रन्थ आध्यात्मिक नियमों के संचित कोष है जो अलग-अलग समय पर भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा विदित किये गए है| यह सतत विकसित एवं विस्तार करने वाले है| अतः धर्म समयानुसार अपनी प्रकृति का पुनर्निर्माण, वैयक्तिक समायोजन एवं समन्वय का नाम है| इस अर्थ में सनातन धर्म विवेक सम्मत, विज्ञान कि परम्पराओं के अनुकूल तथा लोकतंत्र जो वर्ण, विश्वास, सम्प्रदाय या जाति का विचार ना करते हुए प्रत्येक मनुष्य के बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास पर जोर देता है, को मानता है|
ऐसे में यह लोकतंत्र के दो महत्वपूर्ण पहलुओं व्यक्ति का निर्माण तथा विश्व एकता का पथ-प्रदर्शक है| सेमिटिक धर्मो के धार्मिक सिद्धांतों के आधारभूत शाश्वत ढांचे के अन्दर विज्ञान सम्मत अनुकूल व्यवस्था न दे पाने का परिमाण है कि धर्म ही हमारे सामाजिक जीवन के सुख शांति में बाधक बनता जा रहा है| इसके अभाव में ही आज समाज चीजों के परस्पर सम्बंधित होने कि समझ खोता जा रहा है| आज तो भारत राष्ट्र के अर्थ को लेकर भी भ्रम फैलाया जा रहा है|
ऐसा हिन्दू एवं हिंदुत्व को धर्म मान लेने के कारण है जबकि हिन्दू, पर्सियनों के द्वारा एक ख़ास भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों को दिया गया नाम है जिसकी अपनी सांस्कृतिक पहचान है चाहे वे किसी धर्म या समुदाय के हों| हिन्दुत्व इनकी जीवन शैली का नाम है| एक भू भाग पर साझे पूर्वज तथा इतिहास वाले लोगों से मिलकर हमारे राष्ट्र का निर्माण हुआ है अतः यहाँ राष्ट्र का अर्थ है यहाँ के लोग न कि समुदाय! हिन्दुत्व प्रत्येक लिए अपने मोक्ष का विज्ञान है, इसलिए ईश्वर को न मानने वाला नास्तिक या कोई अधार्मिक व्यक्ति भी अपने को हिन्दू कह पाता है| यहाँ हर कोई अपने मोक्ष का रास्ता चुनने के लिये स्वतंत्र है|
वह लाखों देवी देवताओं की उपस्थिति को स्वीकार करने के लिए स्वतंत्र होकर भी हिन्दू है| इतना ही नहीं कण-कण में भगवान को मानते हुए एक किसान अपनी फसल, एक नाविक अपने नाव तथा एक लुहार अपने यंत्रों कि पूजा करते हुए भी हिन्दू है|
आज दुनिया छोटी हो गई है, सभी धर्म एवं राष्ट्र एक दूसरे के दरवाजे पर खड़े हैं| हम सभी अब ज्यादा दिनों तक एक दूसरे से अनभिज्ञ नहीं रह सकते| यह अनंत आशा एवं असंतोष का युग है| विज्ञान के वातावरण में धार्मिक आतंकवाद निश्चित ही आध्यात्मिक कायरता है| धार्मिक आतंकवाद से पीड़ित मानवता कि राह इसी भारत-भूमि से ही निकलेगी| सनातन धर्म कि मान्यता एवं आध्यात्मिकता ही भारत को पुनः महाशक्ति एवं विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित करेगी|
देशी-विदेशी समसामयिकों के ऊपर विचारों का प्रभाव डालने के लिए 21वीं सदी सबसे उपयुक्त है| प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में भारत इस दिशा में आगे बढ़ चुका है| आज एक ऐसी नियति भारतीयों कि प्रतीक्षा कर रही है जो किसी राष्ट्र के समक्ष नहीं है| विश्व में सार्वभौम विश्व वैकल्पिक सभ्यता का रास्ता भारत से ही निकलेगा| भूमण्डलीकरण के दौर में दुनिया को जगाकर विकृत विचारधाराओं को नई दिशा में मोड़कर भारत के विश्वगुरु बनने का समय आ गया है|
(लेखक भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य हैं)
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