कानून की मर्यादा को पीछे धकेल निर्दोषों को भी अपराधी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते सदर कोतवाल
सैनिक अस्पताल प्रकरण में महिला पत्रकार के विरुद्ध झूठा मुकदमा लिख पुलिस महकमे की करा रहे किरकिरी
संदीप पाण्डेय
रायबरेली। प्रदेश के मुखिया के कड़े निर्देशों के बाद भी पुलिस विभाग के नुमाईन्दे विवादित कार्यशैली से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। बुजुर्गों की यह कहावत अक्सर सुनने को मिलती ही रहती है कि “जब सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का”। यह कहावत पुलिस महकमे में विशेष तौर पर सदर कोतवाल के ऊपर बिल्कुल सटीक बैठती है। बताते चलें कि लम्बे अरसे से तैनात कोतवाल को पुलिस अधीक्षक के निर्देशों का भी कोई फर्क नहीं पड़ता है।
सत्तासीन योगी सरकार लगातार इस महकमे को लगातार निर्देशित करती रहती है कि कोई भी बेकसूर जेल न जाने पाए लेकिन चंद सिक्कों की खनक में ईमान बेच अपने कर्तव्यों को भूलने वाले उदासीन कर्मचारियों पर उच्च अधिकारियों की मेहरबानी आमजन की समझ से परे है। सूत्रों की माने तो सदर कोतवाल अपनी जेब भरने की फिराक में कानून की मर्यादा को पीछे धकेल निर्दोषों को भी अपराधी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। एक ऐसा ही मामला सदर कोतवाली क्षेत्र से प्रकाश में आया है जिसमें एक हिंदी दैनिक समाचार पत्र की संवाददाता पर दबाव बनाने के लिए विपक्ष से झूठी तहरीर लेकर उल्टे मुकदमा लिख करके चर्चा में बने हुए हैं।
कुछ दिन पूर्व शहर कोतवाली क्षेत्र इन्दिरा नगर पॉवर हाउस के पास स्थित सैनिक हॉस्पिटल में एक महिला पत्रकार शिकायत पर कवरेज करने गई तो उसके ऊपर कई अराजकतत्वों ने मिलकर हमला कर दिया जिसमें महिला पत्रकार ने भाग कर अपनी जान बचाई। जिसके बाद उसका मुकदमा लिखने में आनाकानी करने लगे फिर उच्च अधिकारियों के निर्देश पर पत्रकार की ओर से मुकदमा लिख दिया गया लेकिन उसके कुछ घंटो बाद ही दूसरे पक्ष का भी मुकदमा पंजीकृत कर कोतवाल ने जमकर ख्याति पा ली। सोचने वाला विषय यह है कि लगातार क्षेत्र में हो रही चोरियों का मुकदमा लिख महज खाना पूर्ति कर दिया जाता है। नगर कोतवाली क्षेत्र में ऐसे कई मामले हैं, जिसमें चोरी का मुकदमा तो पंजीकृत कर दिया जाता है लेकिन उनका खुलासा हो पाना मुश्किल लगता है।
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