आरक्षण कब-तक जब-तक शैक्षणिक क्षेत्र, कार्यपालिका, न्याय पालिका में पूर्ण भागीदारी नहीं
आरक्षण कब-तक जब-तक शैक्षणिक क्षेत्र, कार्यपालिका, न्याय पालिका में पूर्ण भागीदारी नहीं
सुप्रीम कोर्ट के 3/2 के बहुमत के आधार पर ईडब्ल्यूएस गरीब सवर्णों के पक्ष में फैसले के बाद देश में चर्चा छिड़ी हुई है। संविधान में आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक व शैक्षणिक के आधार पर दी गई है किन्तु केंद्र सरकार ने 103वां संविधान संशोधन विधेयक संसद में प्रस्ताव पारित कराकर आर्थिक आधार को जोड़ दिया सिर्फ सामान्य/सवर्ण वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण दे दिया। सुप्रीम कोर्ट मे अपील की गई थी। फैसला केंद्र सरकार के पक्ष में 3/2 से हो गई है।
केंद्र सरकार यह बताएं कि क्या गरीब सवर्णो की तर्ज पर ओबीसी एससी एसटी के गरीबों का हक़ आर्थिक आधार पर आरक्षण देगी या केंद्र सरकार के पास कोई जांच एजेंसी की रिपोर्ट है कि गरीब ओबीसी एससी/एसटी की आर्थिक स्थिति सुदृढ़/अच्छी हो गई है, इसलिए आर्थिक आरक्षण नहीं दे सकते हैं। उक्त रिपोर्ट को सार्वजनिक करें नहीं तो ओबीसी एससी एसटी के गरीबों को भी आर्थिक आधार पर लोकसभा के आगामी सत्र में संविधान संशोधन विधेयक लाकर ईडब्ल्यूएस की तर्ज पर आरक्षण की व्यवस्था करें अगर ओबीसी एससी एसटी के गरीबों को आरक्षण देने से कतरायेगी तो इसका स्पष्ट जवाब केंद्र सरकार को आज नहीं तो कल चुनावों में देना पड़ेगा। स्मरण रहे कि केंद्र सरकारों द्वारा आरक्षण की जो व्यवस्था की गई है, उसमें कितने प्रतिशत ओबीसी, एससी एसटी को वर्तमान समय में आरक्षण प्राप्त हुआ हैं इनका %प्रतिशत क्या है और सवर्णो मे किस जाति का प्रतिशत कितना है, सिर्फ केन्द्रीय सचिवालय का रिकॉर्ड सार्वजनिक कर दें।
आरक्षण की सही तस्वीर उजागर हो जायेगी। केंद्र सरकार के पक्ष मे मंजूरी सुप्रीम कोर्ट के 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने 3/2 बहुमत से मुहर लगा दी किंतु सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को हटाकर 59.5% आरक्षण कर दिया इसके दूरगामी परिणाम दिखाई देंगे। इसके पूर्व आरक्षण के संबंध में कई बार केन्द्र सरकार का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कई संगठनों द्वारा किया गया किन्तु केन्द्र सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया। केंद्र सरकारों द्वारा वर्तमान आरक्षण की व्यवस्था में ओबीसी एससी एसटी के साथ अन्याय किया जा रहा है। खासकर पिछड़ों के साथ तो घोर अन्याय केंद्र सरकार कर रही है, इसका छोटा सा उदाहरण यह है कि आज की परिस्थितियों में केंद्र सरकार को 200 आईएएस की नियुक्ति करना है तो सवर्ण 101 आईएएस नियुक्तियां करती है। पिछड़े 54 आईएएस और 45 आईएएस एससी एसटी के नियुक्तियां करती है। दूसरा उदाहरण केंद्र सरकार के पास एक सौ रोटी है।
पिछड़ों को आधी रोटी एससी/एसटी को एक रोटी, सवर्णों को दो रोटी। सवर्णों के एक खास वर्ग कमजोर सवर्ण समाज की भी रोटी भी खिला दे रही है, इसीलिए जाति-आधारित जनगणना की मांग जोर पकड़ रही है जबकि पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों की जनसंख्या लगभग पचासी प्रतिशत से ज्यादा है, फिर भी आरक्षण का लाभांश आधे से भी कम मिलता। इसके बावजूद भी सवर्णों के गरीबों को ईडब्ल्यूएस के माध्यम से 10 प्रतिशत आरक्षण दे दिया। टीवी चैनलों में डिबेट के समय एवं प्रिंट मीडिया के अखबारों मे कई बुद्धिजीवियों ने अपने लेखों में विस्तार से वर्णन करते हुए मत प्रगट किया है। भाजपा स्वर्णों के हितों इस बात की ओर ध्यान आकर्षित देती है। एक पक्ष यह भी है। पिछड़ों के पक्ष में जब प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मंडल कमीशन लाकर पिछड़ों के हित में कार्य किया किन्तु चुनाव में पिछड़ों ने वीपी सिंह के पक्ष में मतदान नहीं किया भाजपा को सत्ता में ला दिया जिसके कारण वीपी सरकार चुनाव में हार गई थी, इसीलिए पिछड़ों को अपना हक देने के लिए अनेक प्रकार से जुझना पड़ रहा है और हक़ नहीं मिल रहा है, इसीलिए शायद केन्द्र सरकार ओबीसी, एससी/एसटी के गरीबों के लिए ईडब्ल्यूएस के माध्यम से आरक्षण नहीं दिया किन्तु परिस्थितियों बदली है। आगामी चुनावों में पिछड़े पुनः भाजपा के पक्ष में मतदान करेंगे या विरोध में मतदान करेगा भविष्य गर्त में छिपा है।
देश के अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनलों पर आरक्षण पर डिबेट हो रहा है और प्रिंट मीडिया में समाचार पत्रों मे तमाम लेख बुद्धिजीवियों व सामाजिक संगठनों के लोगों का लेख प्रकाशित हो रहा है। कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं की तरफ ध्यान आकर्षित कराने का प्रयास है कि आरक्षण काफी दिनों से मिल रहा है किंतु आज तक 1. उच्च शिक्षण संस्थानों में दलित पिछड़ों आदिवासियों की संख्या नगण्य के बराबर है वहां कोई आरक्षण का नियम लागू नहीं किया गया है आखिर क्यों, 2. केंद्रीय सचिवालय में आरक्षण का लाभ पिछड़े दलित आदिवासियों को संविधान के अनुसार आरक्षण क्यों नहीं दिया गया, 3. कार्यपालिका और न्याय पालिका में आज तक पिछड़ों दलितों आदिवासियों की संख्या नगण्य क्यों है? इसका मूल कारण क्या है, इस पर गहन चिंतन मनन करने की आवश्यकता है। जिस दिन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पिछड़ों, दलितों व आदिवासियों की जनसंख्या के अनुपात तक पहुंचाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है किन्तु ईमानदारी किसके साथ केन्द्र सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग हर सेक्टर में संविधान के अनुसार आरक्षण को लागू कर दें तो समानता बहुत हद तक देश के अंदर आ जाएगी और आरक्षण समाप्त करने में कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं होगा आरक्षण को समाप्त किया जा सकता है।
ध्रुवचन्द जायसवाल
प्रदेश अध्यक्ष
अखिल भारतीय जायसवाल सर्ववर्गीय महासभा उत्तर प्रदेश
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