आगरा में महिला का पोस्टमार्टम लेडी डाक्टर ही करेंगी

आगरा में महिला का पोस्टमार्टम लेडी डाक्टर ही करेंगी

कोर्ट ने आगरा सीएमओ को आदेश दिया
अब तक पुरुष डाक्टर और फार्मासिस्ट ही करते आए
मोहित शर्मा
आगरा। जिले में महिलाओं की डेडबॉडी का पोस्टमार्टम अब पुरुष डाक्टर्स और स्टाफ नहीं कर सकेंगे। कोर्ट ने इस बारे में सीएमओ को आदेश जारी कर दिए हैं। आदेश में कहा गया है कि किसी भी महिला की डेडबॉडी का पोस्ट मॉर्टम लेडी डॉक्टर्स द्वारा किया जाएगा। मामले में सामाजिक कार्यकर्ता प्रमिला शर्मा द्वारा कोर्ट में पत्र प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा कि आगरा में मृत महिलाओं के शव का पोस्टमार्टम पुरुष डॉक्टर्स और उनके पुरुष स्टाफ द्वारा किया जाता है, जो कि महिलाओं की आबरू को देखते हुए आपत्तिजनक है।

मामले को गम्भीरता से लेते हुए अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने सीएमओ आदेश जारी किए हैं कि किसी भी महिला का पोस्टमार्टम अब पुरुष डॉक्टर्स द्वारा न कराया जाए। लेडी डाक्टर्स ही महिलाओं के मृत शरीर का पोस्टमार्टम करें। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने आदेश में कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा परमानन्द कटारा प्रति भारत संघ एआईआर 1989 एससी 2033 में यह स्पष्ट किया गया है कि अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार मात्र जीवित व्यक्तियों को ही प्राप्त नहीं है बल्कि यह मृत व्यक्तियों के शव के सम्बन्ध में भी लागू है।

कोरोना काल में शवों के साथ अपमानजनक व्यवहार पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा भी इसी आधार पर एडवाइजरी जारी की गई थी जो कि 14 मई 2021 के एफएनआर 18/18/2020 पीआरपी पी (आरयू-1) में दर्ज है। दरअसल पोस्टमार्टम की कार्यवाही में शव को सर्वप्रथम निर्वस्त्र किया जाता है। इसके बाद विच्छेदन की प्रक्रिया सम्पन्न होती है। इस कार्यवाही में पोस्टमार्टम गृह में केवल पुरुष वर्ग के डाक्टर्स की उपस्थिति होती है, उनके साथ एक भी महिला नहीं होती है। यह संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का उल्लंघन है।

जीवित रहते जो कृत्य एक महिला के साथ सम्भव नहीं है, वह कृत्य मृत्यु के बाद उसके शव के साथ भी न्यायोचित नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग के पास चिकित्सा सेवा संवर्ग की महिला चिकित्सक, फार्मासिस्ट आदि स्टाफ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। आगे से आगरा में महिलाओं के पोस्टमॉर्टम में पुरुषों की संलिप्तता नहीं होनी चाहिए। केवल महिला चिकित्सक व उनके महिला स्टाफ की देखरेख में ही कार्यवाही की जाए।

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