पी.एफ.आई. प्रवर्तन निदेशालय की रडार पर
पी.एफ.आई. प्रवर्तन निदेशालय की रडार पर
बैडले विन्सन ने एक बार कहा था कि पैसा एक ऐसा उपकरण है। यदि इसका ठीक से उपयोग किया जाता है तो यह कुछ सुंदर बनाता है और इसका गलत इस्तेमाल गड़बड़ी करता है। इस कथन का दूसरे पहलू की महत्ता तब बढ़ जाती है जब पी.एफ.आई के संदर्भ में इसकी बात की जाए एंटी सी.ए.ए विरोध प्रदर्शन में धन की व्यवस्था से लेकर फरवरी 2020 में दिल्ली दंगे भड़काने तक में पी. एफ.आई का ही नाम उभर के सामने आया है। जब भी किसी बड़े स्तर पर हिंसा और राष्ट्रविरोधी घटनाएँ होती हैं। वहाँ पी.एफ.आई का नाम ही सामने आता है।
जैसा कि केरल के कंडकुलम विरोध प्रदर्शन की जाँच से यह उजागर होता है कि बड़े स्तर पर राज्य के खिलाफ होने वाले आंदोलन बिना पर्याप्त धन के प्रवाह के कारण जीवित नहीं रह सकता है। पिछले कुछ सालों में पी. एफ.आई पूरी शक्ति के साथ अपना जाल फैलाकर पूरे देश की शांति और भाईचारे को हिंसा, चरमपंथ और आतंक के माध्यम से अशांत किया है। प्रवर्तन निदेशालय के शिकंजे के बाद भी पी.एफ.आई समय-समय पर क्लेश भडकाने का काम कर रहा है। यह प्रवर्तन निदेशालय को पी.एफ.आई के धन प्रवाह के जाँच के लिए मजबूर कर दिया।
प्रवर्तन निदेशालय ने पी.एफ.आई के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत विभिन्न जगहों पर दायर मामले जिनमें एफ.आई.आर नम्बर-आर.सी. -05/2013/एन.आई.ए/के.ओ.सी. एन.आई.ए कोच्ची द्वारा एर्नाकुलम, केरल में 2013 में दायर किया गया था और 199/2020 जो पुलिस केन्द्र मान्त, मथुरा, उत्तर प्रदेश के आधार पर जॉच प्रारंभ किया है। पहला मामला पी.एफ.आई कार्यकर्त्ता के खिलाफ था जो आपराधिक षडयंत्र रचकर अपने कैडरों को हथियार मुहैया कराता था और विस्फोटक संबंधित प्रशिक्षण देता था एवं केरल के कन्नूर जिले के नारथ नामक जगह पर आतंकवादी शिविर लगाता था जिसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न धर्मों के बीच शत्रुता बढ़ाना एवं उन्हें आतंक गतिविधि के लिए प्रेरित किया जाता था जिससे देश में भाईचारे एवं एकता का महौल खतरे में पड़ सकता है।
दूसरा मामला पी.एफ.आई कार्यकर्त्ता का था। जब वह हथरस, उत्तर प्रदेश जा रहे थे उनका मुख्य उद्देश्य सांप्रदायिक सौहार्द को भंग करना था एवं हथरस रेप एवं मर्डर केस के आड़ में आतंक फैलना था। यह केवल दो मामले थे जिससे पी.एफ.आई द्वारा अंजाम दिए गए अपराधों को गंभीरता का आंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे सैकड़ों मामले हैं जिससे पी.एफ.आई द्वारा धन पोषित आपराधिक एवं हिंसक प्रकृति के घटना का परिमाण बताता है। प्रवर्तन निदेशालय द्वारा किए गए पी.एम.एल.ए जाँच ने यह साबित कर दिया कि पी. एफ.आई देश के अंदर और देश से बाहर विभिन्न माध्यमों से धन उगाही करता है जिसे सुसंगठित तरीके से अंजाम दिया जाता है। इस प्रक्रिया में बेहिसाब राशि का स्थानांतरण और एकीकृत कर इसे विभिन्न खाते में किया जाता था. इसे वैध करार दिया जाता था और इन धनों का उपयोग विभिन्न गैर कानूनी गतिविधि जिसमें दिल्ली दंगे, जबरन धर्मांतरण लालच देकर एवं लक्ष्य बनाकर हत्या करना शामिल है।
हादिया और शाफिन जहाँ के धार्मिक धर्मातरण के मामले में पी.एफ.आई ने वकील कपिल सिब्बल को महज एक सुनवाई के लिए एक करोड़ की राशि का भुगतान किया था। यह एक आधिकारिक आंकड़ा है। अन्य खर्च भी लगभग एक करोड़ का है। पी.एफ.आई के पदाधिकारियों के उनके विभिन्न कामों से मामूली आय से इतने बड़े भारतीय स्तर के संगठन को चलाना संभव नहीं है। जन सहयोगी एक मुमकिन व्याख्या हो सकता है जबकि प्रवर्तन निदेशालय के आय के श्रोतों के सवालों पर पी.एफ.आई का जवाब संतोषजनक नहीं रहा था।
पी.एफ.आई के वित्तीय लेनदेन संधारण करने वाले इसके लेखापाल ने पूछतताछ के दौरान बताया कि पी.एफ.आई के दिल्ली मुख्यालय में दिल्ली दंगे के समय करोड़ों रूपए कैश के रूप में रखे गए जिसका कोई हिसाब नहीं है। यह जरूरी है कि इन श्रोतों का और इसके खर्च के उद्देश्य का पत्ता लगाया जाए। भारत एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहाँ इसके एक गलत कदम इसे पी.एफ.आई द्वारा बनाए गए रास्ते पर ले जा सकता है जो भारत के बढ़ते वैभव में बाधा पहुँचा रहा है। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते आइए सरकार के पी.एफ.आई के राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध को समर्थन दिया जाए।
सूफी कौसर हसन मजिदी
राष्ट्रीय अध्यक्ष, सूफी खानकाह एसोसिएशन
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