रासायनिक उर्वरक का विकल्प जैविक खेती

रासायनिक उर्वरक का विकल्प जैविक खेती

डा. अमरकान्त वर्मा
डीएसटी नई दिल्ली
कृषि में रासायनिक उर्वरक के अधिक उपयोग का होना एक चिन्ता का विषय है। यह चिन्ता प्रमुख रूप से रासायनिक उर्वरकों के कारण भूमि पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभावों को लेकर व्यक्त की गई है। मृदा के साथ यह समस्या किसानों से भी प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी है। हमारे देश में हजारों किसान हर साल आत्महत्या करते हैं। वर्ष 1990 से अब तक लगभग 3 लाख से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इस समस्या का कारण महंगे उर्वरक, महंगे बीज, रासायनिकों का अधिक महंगा होना एवं नकारात्मक प्रभाव मृदा का क्षरण तथा जनजीवन के लिये खतरनाक रासायनिक उर्वरक व कीटनाशक और साथ ही 70 हजार करोड़ रूपये से अधिक की सरकार समर्थित रासायनिक उर्वरक सब्सिडी है।


1966-67 में हरित क्रान्ति ने तीव्र कृषि उत्पादन, विशेष रूप से खाद्यान्न उत्पादन के एक नये युग का सूत्रपात किया। इस क्रान्ति का एक प्रमुख उत्प्रेरक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग रहा। भारत तब खाद्यान्न की अत्यन्त कमी से जूझ रहा था और कृषि में इन रासायनिक उर्वरकों ने सहयोगी भूमिका निभाई। रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और सिंचाई में भारी निवेश ने उच्च फसल उत्पादन का लक्ष्य पूरा किया। निश्चित ही हरित क्रान्ति ने तात्कालिक संकट का समाधान किया किन्तु भविष्य के लिये एक हानिकारक पद्धति का सूत्रपात कर दिया। जैविक खेती कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जिसमें भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है।

सूखा ऋणग्रस्तता और मृदा की घटती उत्पादकता के दुष्चक्र से बाहर निकलने के लिये जैविक खेती एक उपयोगी विकल्प हो सकती है। जैविक खेती से निम्न लाभ होते हैं- भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होती है, फसलों की उत्पादकता में वृद्धि रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है, भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है एवं फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि होती है।
विश्व के सभी देशों के किसानों का अनुभव रहा है कि रासायनिक खेती को तत्काल छोड़कर जैविक खेती अपनाने वाले किसानों को पहले तीन सालों तक आर्थिक रूप से घाटा हुआ, चौथे साल से लाभ मिलना प्रारम्भ हो जाता है। भारत में जैविक खेती की संभावनाएँ तभी सफल हो सकती हैं जब भारत सरकार जैविक खेती करने वालों को स्वयं के संस्थानों से प्रमाणीकृत खाद सब्सिडी पर उपलब्ध करवाये तथा 4 साल की अवधि के लिये गारंटी युक्त आमदनी हेतु बीमा की व्यवस्था प्रारम्भिक सालों में होने वाले घाटे की क्षतिपूर्ति करें।

सरकार को पशुपालन को बढ़ावा देना चाहिए जिससे किसान जैविक खाद के लिये पूरी तरह बाजार पर आश्रित न रहे। वर्तमान समय की आवश्यकता यह है कि प्राथमिकताओं में परिवर्तन लाया जाये और सब्सिडी को रासायनिक कृषि से जैविक कृषि की ओर मोड़ा जाय। जैसा कि सिक्किम राज्य ने किया सिक्किम को विश्व के प्रथम जैविक राज्य के रूप में चुना गया और यह यूएन फ्यूचर पॉलिसी अवार्ड का स्वर्ण पदक विजेता रहा जबकि डेनमार्क को रजत पदक मिला। पिछले वर्ष आन्ध्र प्रदेश द्वारा शून्य बजट प्राकृतिक खेती परियोजना की शुरुआत की गयी और वर्ष 2024 तक रसायन के प्रयोग को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। सरकार को रासायनिक कृषि क्षेत्र को प्रदत्त अवांछित सब्सिडी को जैविक कृषि क्षेत्र की ओर मोड़ देना चाहिये और देश भर में कृषकों को प्रोत्साहित व प्रशिक्षित करना चाहिये कि वे जैविक कृषि अभ्यासों की ओर आगे बढ़े तथा इस प्रकार अपनी आजीविका में वृद्धि करें एवं रासायनिकों के खतरे से जनजीवन की रक्षा करें जिससे हमारा आने वाला कल सुरक्षित रहे।

 

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