समग्र ग्राम दर्शन विषय में ऑनलाइन वेबिनार आयोजित

समग्र ग्राम दर्शन विषय में ऑनलाइन वेबिनार आयोजित

रूपा गोयल
बांदा। मंगल भूमि फाउंडेशन ने समग्र ग्राम दर्शन विषय में आनलाइन बैठक हुई जिसमें मुख्य वक्ता पद्मश्री सम्मान से सम्मानित बाबू लाल दहिया ने गाँव से सम्बंधित वर्तमान और प्राचीन खेती, पशुधन, परम्परागत अनाज के बारे में बात की। साथ ही कहा कि आजादी के समय और 70 के दशक में गांव एक आत्मनिर्भर इकाई होती थी। गांव के लोग पेट कि खेती करते थे अब वर्तमान में सेठ की खेती होने लगी है। सेठ की खेती का मतलब, डीजल, बीज, खाद, पानी, बिजली, इंस्ट्रूमेंट, सेठ के हैं। गांव समृद्ध तभी होगा जब किसान समृद्ध होगा। किसान में समृद्धि लाने के लिए परंपरागत तरीके से ही खेती करने की आवश्यकता है।

आज डीजल, पेस्टिसाइड, फर्टिलाइजर, बीज महंगे होने से किसान की लागत अधिक हो रही है एवं किसान को उत्पादन कम हो रहा है। किसान जो लाभ पाता है, वह सारा खर्च बाजार में करके आ जाता है। पहले के गांव अपने आपमें आत्मनिर्भर रहते थे। कपड़े का उत्पादन करना, रजाई गद्दे का उत्पादन करना, फर्नीचर बनाना, सब्जियों का उत्पादन करना, गांव में ही लोहार, बढ़ई, नाई, तेली, कुम्हार, कृषक, मजदूर सतीहो जाति रहती थी। यह सब एक—दूसरे के लिए कार्य करते थे। अब गांव बाजार में निर्भर हो गया है, जिस वजह से गांव के लोगों मे कर्ज का बोझ बढ़ रहा है। गांव में जैविक खेती,मोटे अनाज, अपने परंपरागत बीजों को सुरक्षित कर खेती करना, फूड प्रोसेसिंग, डेरी उद्योग लगाकर गांव को आत्मनिर्भर करने की आवश्यकता है। गांव के लोगो का पालायन क्यो? हो रहा है, इस विषय को जानना होगा। पलायन किस कारण से हो रहे हैं? उन कारणों को पता कर समाधान गांव में ही करना होगा जिससे गांव से पलायन को रोका जा सके। गांव पर्यावरण अनुकूल और जैव विविधता के मामले में संपन्न रहा है लेकिन वर्तमान समय में गांव के पर्यावरण और जैव विविधता में भी खतरा मंडराने लगा है।
अरविंद शुक्ला वरिष्ठ ग्रामीण पत्रकार ने कहा कि वर्तमान में युवाओं को रोजगार के अवसर अपने गांव में ही तलाशने होंगे तभी गांव समृद्ध और खुशहाल रहेगा। युवा रोजगार की तलाश में गांव से पलायन कर शहरों की ओर भाग रहे हैं जिससे गांव खाली हो रहे है। बहुत से किसानों ने अपने गांव में स्वरोजगार की शुरुआत की है। युवाओं को भी चाहिए कि अपने गांव में खेती से संबंधित इंडस्ट्री की शुरुआत कर अपने आपको समृद्ध कर गांव को समृद्ध करें। कार्यक्रम संयोजक रामबाबू तिवारी ने कहा कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग के चलते आपदाएं बढ़ रही हैं, तालाब सूख रहे हैं, छोटी नदियां विलुप्त हो रही हैं, मौसम में बदलाव आ रहा है। इन सबके चलते किसानों को बाढ़-सूखा, अतिवृष्टि, ओलावृष्टि जैसे समस्या से सामना करते हैं। किसान के पास खुद का पानी नहीं है, खुद की बिजली नहीं है जिस वजह से किसान बाजार पर निर्भर होता चला जा रहा है। किसानों को चाहिए कि खुद का पानी का प्रबंध करें खेत तालाब बनाकर गौ आधारित प्राकृतिक खेती का कार्य करना होगा जिससे पेस्टिसाइड फर्टिलाइजर का प्रयोग नहीं होगा जिससे खेती में लागत कम आएगी और किसानों की आमदनी बढ़ेगी।
कार्यक्रम का संचालन अपर्णा उपाध्याय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन, डा.पीयूष ने किया। इस अवसर पर सुरेश रैकवार, डा. रघुराज, नेपाल सिंह, संदीप झा, शालिनी नेगी, नंद लाल, नीरज, आदित्य प्रकाश, विधाशंकर पांडेय, देवेंद्र, रजनीश अवस्थी, सुजीत, उदित आदि
उपस्थित रहे।

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