जौनपुर में अब थाना व चौकी चला रहे आरक्षी, निरीक्षक एवं उपनिरीक्षक बने महज गुलदस्ता
जौनपुर में अब थाना व चौकी चला रहे आरक्षी, निरीक्षक एवं उपनिरीक्षक बने महज गुलदस्ता
प्रदेश सरकार की अपराध व भ्रष्टाचार मुक्त का दावा खोखला नजर आ रहा
‘बाप बड़ा न भइया, सबसे बड़ा रूपइया’ की तर्ज पर कार्य कर रहे सिपाही
जौनपुर। वर्तमान की योगी सरकार में समाज की सुरक्षा, भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यवाही करने, भ्रष्टाचारियों को दण्डित कराने, अतिक्रमण हटाने, सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किये व्यक्तियों के विरूद्ध कार्यवाही करने का नगाड़ा बजाया जा रहा है जिसके बाबत पुलिस को समाज में महत्वपूर्ण अंग के रूप में स्थापित किया गया है। इनके हाथ में कानून का इतना बड़ा हथकण्डा दे दिया गया है, ताकि वह समाज को सुरक्षित-सुसज्जित रख सके परन्तु ‘अंधे के हाथ बटेर’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। पुलिस जो करे, वह सही है, की पद्धति पर पुलिस विभाग कार्य कर रहा है। रहा सवाल सुविधा शुल्क लेने का तो उसमें आरक्षी तो पूर्ण रूप से दक्ष हैं।
दावों को मानें तो वर्तमान सरकार में कोई सुविधा शुल्क नहीं लेता परन्तु क्या करे, बाजार का भाव बढ़ रहा है! जैसे गैस सिलेण्डर सहित अन्य सामग्रियों के भाव तेजी बढ़ते जा रहे हैं। आवश्यकताएं पूरी कैसे होंगी, इसके लिये कुछ तो करना होगा। ऐसे में चौकी व थानों पर पुलिस से मदद लेने के लिये पीड़ित जब पहुंचता है तो हमराही के रूप में तैनात आरक्षी को व्यक्तिगत दरोगा नियुक्त कर दिया जाता है जो अपने हलके का इंचार्ज बनकर कार्य सम्भाल लेता है और अधिकारी भी वही करते हैं जो उनके द्वारा नियुक्त दरोगा अर्थात आरक्षी बताता है। चर्चाओं की मानें तो धनउगाही का कार्यक्रम जोरों पर है। यह कहने में कत्तई गुरेज नहीं होगा कि वर्तमान में चल रही पुलिसिया व्यवस्था से आम जनमानस त्रस्त है।
कहने में कत्तई गुरेज नहीं है कि इनके कारनामों पर अनुशासन का चादर बिछाने का कार्य इनके उच्चाधिकारी ही करते हैं। यदि जनपद के सभी 29 थानों में से किसी भी थाने या उनके अन्तर्गत आने वाले चौकी का औचक निरीक्षण गोपनीय ढंग से किया जाय तो मात्र 1 प्रतिशत स्वाभिमानी, सत्य और नौकरी को ज्वाइन करते समय लिया गया शपथ का पालन कोई करता मिलेगा। फिर भी समाज में फैलती कुरीतियों, विवादों, भ्रष्टाचार आदि को जड़ से उखाड़ने का दावा प्रदेश सरकार करती है। फिलहाल लोगों की मानें तो प्रदेश सरकार के सभी दावों को खोखला साबित करने में लगे हैं शासकीय व प्रशासनिक व्यवस्थाओं के पुरोधा।
ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार की दृष्टि क्यों नहीं उनकी कृत्यों पर जाती? उच्चाधिकारी के कान पर जूं क्यों नहीं रेंगते? क्यों नहीं न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों का पालन पुलिस करा पाती? क्यों नहीं अपने उच्चाधिकारियों के आदेशों पर स्थानीय पुलिस कार्य करती है? क्यों दोनों पक्षों को सुलह कराने के नाम पर धनउगाही का कार्य करती है? क्यों सरकारी सम्पत्ति पर अतिक्रमण करने वालों से सुविधा शुल्क लेकर उन्हें सुरक्षित करने का कार्य करती है? आखिर इन सवालों का जवाब जनता को कैसे मिलेगा? इनकी समस्याओं का हल सुव्यवस्थित ढंग से कैसे व किस प्रकार मिलेगा? क्या प्रत्येक थानों पर केन्द्र व प्रदेश सरकार बैठकर अपने नेतृत्व में कार्य करायेगी? क्या इनके इस रवैये पर जांच नहीं होनी चाहिये? क्या सरकार की सम्पत्ति पर अतिक्रमण किये जाने वालों या उसके विरोध में कार्य करने वालों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही नहीं होनी चाहिये?
सरकार के ही अनुषांगिक शाखा पुलिस, राजस्व विभाग या अन्य विभाग के उच्च अधिकारी क्या जिम्मेदार नहीं? इस बात का निर्णय कैसे होगा जो पुलिस के नाम पर चल रहे अनैतिक कार्य, पुलिस द्वारा अतिक्रमण कराये जाने का कार्य कब बंद होगा? क्या जिलाधिकारी, आरक्षी अधीक्षक सहित अन्य प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी का दायित्व नहीं है कि गड़बड़झाला करने वाले अधिकारी या कर्मचारियों की जांच कराकर उनके विरुद्ध विधिक कार्यवाही कर सके, क्योंकि अब जनपद में राजस्व एवं पुलिस विभाग के ऊपर से जनता का विश्वास उठता नजर जा रहा है। अब तो न्यायालय के आदेश भी ‘ढाक के तीन पात’ वाली कहावत साबित हो रहे हैं। सरकार को इस पर विचार कर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि अब जनपद सहित प्रदेश में भी चरितार्थ हो रहा है कि ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’।
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