न कोई नियम न कोई कायदा, आंवला की सड़कों पर बस डग्गामार वाहन ही एकमात्र रास्ता
समाचारपत्र में लगातार खबरें प्रकाशन के बाद भी नहीं चेत रहा प्रशासन, शायद कर रहा बड़ी सड़क दुर्घटना का इन्तजार
नीरज यादव
आंवला, बरेली। सरकारें सड़क दुर्घटनाओं से यात्रियों को बचाने के लिये लाख नियम कायदे कानून बना ले पर इन कानून का पालन कराने वाले जब तक इन नियमों को कायदे से लागू न कराये तब तक भला इन नियमों का क्या फायदा। बड़ी अजीब बात है कि एक दोपहिया वाहन पर कभी मजबूरी में दो की जगह तीन सवारियों को बैठाकर वाहन दौड़ाने वाले वाहन चालक पर पुलिसिया डण्डा इतनी जोर से चलता है कि उसके मुंह से ऊफ तक नही निकलती। वहीं दूसरी तरफ बरेली की सड़को पर रोज दौड़ने वाले डग्गामार वाहनों मे ठूंस-ठूंस कर भरी हुई सवारिया न तो स्थानीय पुलिस को दिखाई देती है और न ही यातायात नियमों का पालन करवाने के लिये गठित ट्रैफिक पुलिस को।
अब बरेली की तहसील आंवला को ही ले लीजिये कहने को तो आंवला सर्किल होने की वजह से यहां पुलिस क्षेत्राधिकारी की तैनाती है, इस हिसाब से आंवला सर्किल में पांच थाने आते है। बाबजूद इसके आंवला पुलिस को अवैध तरीके से बिना परमिट रोजाना बड़ी संख्या में सड़कों पर दौड़ते डग्गामार वाहन दिखाई नहीं देते। आलम यह है कि आंवला कोतवाली के सामने से ही रोजाना दिन में न जाने कितने ही ऐसे वाहन सवारियां ठंूस-ठंूस कर रोज निकलते है, जो कोतवाली पुलिस को दिखाई ही नहीं देते। यही नही सवारियों को ठंूस-ठंूस कर अपने वाहन में भर उनकी जान जोखिम में डालकर अवैध तरीके से संचालन करने वालों पर कार्यवाही तो छोड़िये स्थानीय प्रशासन उनसे पूछने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाता है।
सिर्फ छोटे ही नही बड़े वाहन भी रोजाना होते है संचालित
जानकारों की माने आंवला मे ऐसी एक जगह नही है जहां से ये डग्गामार वाहनो का संचालन होता है। वजीरगंज बस स्टैण्ड, बिसौली स्टैण्ड, अलीगंज बस स्टैण्ड आदि जगहो से रोजना ऐसे वाहनो का संचालन बडी मात्रा मे होता है। यही नही इनके अलावा आंवला से दिल्ली, चण्डीगढ़ जैसे लम्बे लम्बे रुटो पर बडी बडी बसो का संचालन भी रोजना होता है। सूत्रो की माने तो रोजाना चलने वाले इस अवैध धंधे को स्टैण्ड पर यूनियन बनाकर वाहनो से वसूली करने वालो के साथ ही इन बसो के ठेकोदार आंवला मे जगह जगह इन अवैध चलने वाली बसो से मोटी उगाही करते है।
मिठाई के नाम पर ठेकेदारों को पहंुचाना पड़ता है महीना
जानकारी यहां तक मिली है कि डग्गामार वाहनो को संचालन के इस बडे खेल मे आंवला मे इन वाहनो के ठेकेदारो द्वारा जिम्मेदारो के यहां मिठाई के नाम पर मोटी रकम हर महीने भिजवाना पडती है। खैर यहां बडा सवाल है कि केवल अपनी जेव भारी करने के लिये आंवला प्रशासन इन डग्गामार वाहनो के संचालन मे अपनी भूमिका निभाकर लोगो की जान से खिलबाड कैसे कर सकता है? क्या ऐसा करने से यातायात नियमो का सख्ती से पालन कराने हेतु सरकारो द्वारा तमाम तरीके से लोगों को जागरुक करने के प्रयासों को पलीता लगाना नही है। अब देखना दिलचस्प होगा कि सड़कों पर बेधड़क दौड़ते इन डग्गामार वाहनो पर आंवला प्रशासन क्या कार्यवाही करता है?
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