राष्ट्र ध्वज-गीत
ज्ञान सुधा (भाग-48)
भारत वीरों की धरती, फहरे शुचि सुयश तिरंगा
युग-युग तक अमर रहे यह, जैसे जग पावनि गंगा
दो सौ वर्षों की गुलामी, पर मिली मुझे आजादी
सन् सत्तावन से हीं यह, वीरों ने क्रान्ती ला दी
गोरों के जुल्म सहे पर, वीरो ने हार न मानी
हंसते हंसते चरणों में, दे दी अपनी कुर्बानी
देकर हमको आजादी,हो गये अमर बलिदानी
हो राष्ट्र सुखी यह अपना, नहिं हो भूखा कोई नंगा
भारत वीरों की धरती……
भारत की गौरव गाथा, वीरो की अमर कहानी
यह देश ऋणी है, उनका जो हुये अमर बलिदानी
अशफाक तिलक गुरु मंगल, ओढ़ी थी चादर धानी
आजाद भगत सिंह नेहरू, गांधी पटेल गुरु ज्ञानी
जय हो भारत माता की, था देश भक्ति का नारा
हिल गये फिरंगी इनसे, फिर झूम उठा जग सारा
सन् उन्निस सौ सैंतालिस, पन्द्रह अगस्त दिन आया
नेहरू ने लाल किले से, फिर राष्ट् ध्वजा फहराया
मिल गयी हमें आजादी, फिर बन्द हो गया दंगा
भारत वीरों की धरती……
सब सुखी रहें इस जग में, सब में हो भाई चारा
अपना महान यह भारत, जग में हो सबसे न्यारा
समतामूलक हो भारत, शिक्षित हो देश के वासी
नहिं ऊंच नीच हो कोई, घर घर हो मथुरा काशी
प्रवहतु यश धारा निर्मल, सब चले साथ इक संगा
भारत वीरों की धरती ……
रचनाकार—— डाॅ. प्रदीप दूबे
साहित्य शिरोमणि) शिक्षक/पत्रकार
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