Jaunpur News : प्रभु कृपा प्राप्ति का सुगम साधन है निश्छल प्रेमः योगी बाबा

Jaunpur News : प्रभु कृपा प्राप्ति का सुगम साधन है निश्छल प्रेमः योगी बाबा

  •  Jaunpur News : Unconditional love is an easy way to get God’s grace: Yogi Baba

सौरभ सिंह
सिकरारा, जौनपुरा। प्रभु कृपा प्राप्ति के लिए निश्छल प्रेम आवश्यक है। यदि आप अपने को प्रभु के सहारे छोड़ दोगे तो वे वे सदैव आपके लिए खड़े रहेंगे। यह उद्गार हैं योगी बाबा परमहंस महराज के जिसे उन्होंने क्षेत्र के भुआ कला (खपरहा) स्थित जटाधारी महादेव धाम पर आयोजित 11 कुण्डीय श्री महाविद्या स्तोत्रम महायज्ञ एवं संगीतमय श्री राम कथा कार्यक्रम में शनिवार को देर शाम में श्रद्धालु कथा प्रेमियों को भजन की प्रभुता से परिचित कराते हुए कथामृत रसधारा से रसासिक्त करते हुए व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि भजन की प्रभुता का वर्णन करना कठिन है। इसके द्वारा मानव इस माया रूपी अथाह सागर को पार कर जीवन केअंतिम लक्ष्य(मोक्ष)को प्राप्त कर सकता है। भजन ही एक मात्र अमोघ अस्त्र है जिससे जीवन के सारे दुखों का शमन हो जाता है। बिना इसके जीव का कल्याण असम्भव है।

राम भजन की महिमा का वर्णन करते हुए श्रीराम चरित मानस में गोस्वामी जी ने कागभुसुंडि महराज के श्री मुख से कहलवाया है- राम भजन बिनु सुनहु खगेसा, मिटहि न जीवन केरि कलेसा। यह हाथों की सुंदर ताली जैसा है जिस के प्रयोग से जीवन के संसय रूपी पक्षी उड़ जाते हैं। यथा-राम नाम सुन्दर करतारी,संसय विहग उड़ावन हारी। इतना ही नहीं, इसके द्वारा राम को अपने वश में करने का प्रमाण भी मिलता है। उन्होंने लिखा है- सुमिरि पवन सुत पावन नामू,अपने बस करी राखेउ रामू। इसके लिए सन्तो, श्रेष्ठ जनों के साथ संगत करना आवश्यक है लेकिन यह दुर्लभ उपलब्द्धि बिना हरि कृपा के सम्भव नहीं है। दृष्टांत स्वरूप गोस्वामी जी ने कहा है बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई। कहा कि भजन और दुःख का कोई मेल नहीं है इसलिए हम भजन में रहकर सुखवर्धन करे। सुन्दर सोच मन मे विकसित करें जिसके अन्तर्मन मे श्रृंगार है, वहीं दूसरे का दिव्य श्रृंगार कर सकता है। विवेकी व्यक्ति कार्य को प्रारम्भ करने के पहले विचार करता है।

मंथन करके कार्य का शुभारम्भ करना आवश्यक है। जब सकारात्मक सोच के साथ कार्य आरम्भ हो गया तो उसके पूर्ण होने में कोई संदेह नही रह जाता। छल कपट छोड़कर जो प्रभु का गुणगान करता है वही भगत है। वही प्रभु को प्रिय है। गोस्वामी जी ने प्रभु के श्री मुख से कहलवाया है -निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा। जो मनुष्य जितना सहज अवस्था मे रहता है उसके कर्म उतनी ही श्रेष्ठता को प्राप्त होते हैं। जीवन में अहार-विचार शुद्ध होगा तो संस्कार स्वतरू ही आ जाएगा। प्रारम्भ में कार्यक्रम के मुख्य यजमान राज नाथ चौबे ने व्यास महराज व मानस ग्रन्थ की पूजा आरती किया। इस अवसर पर अमरनाथ चौबे, रोहित सिंह, पंकज कुमार एडवोकेट, सन्त प्रसाद सिंह, आनन्द चौबे, शिवा सिंह सहित बड़ी संख्या में कथा प्रेमी उपस्थित रहे।

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