JAUNPUR NEWS : मानवता की सेवा रक्षा करना सबसे बड़ा धर्म: कथा वाचक
विपिन सैनी
चौकियां धाम, जौनपुर। स्थानीय क्षेत्र में स्थित शीतला चौकियां धाम में चल रही 7 दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन प्रवचन के दौरान सुल्तानपुर से पधारे कथा वाचक आचार्य मनीष चंद्र त्रिपाठी महराज ने प्रवचन के दौरान बताया कि मानवता की सेवा रक्षा करना ही सबसे बड़ा धर्म है जो सभी धर्मों में श्रेष्ठ है। दीन-दुखियों की सेवा, असहाय की सहायता, पीड़ित का उपचार, गरीब बहन-बेटियों की शादी में सहयोग करना चाहिए। जीवन में ऐसे सत्कर्म करने वाले लोगों पर परमात्मा की कृपा दृष्टि हमेशा बनी रहती है।
जो किसी पीड़ित, परेशान, बीमार को देखकर अपनी पीड़ा समझकर उसकी सेवा रक्षा करता है, ऐसे मनुष्य को जीवन में कोई भी कठिनाई परेशानी नहीं होती। ऐसे लोगों के जीवन में परमात्मा की कृपा दृष्टि सदैव बनी रहती है। सभी जीव, जंतु, पेड़-पौधे, सृष्टि परमात्मा की बनाई हुई है। सभी जगह उनका निवास है। परमात्मा ब्रम्हाण्ड के कड़-कड़ में विराजमान है। भागवत कथा संवाद प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि एक दिन राजा परीक्षित समिक मुनि से उनके आश्रम गये जहां उन्होंने आवाज लगाई लेकिन तप में लीन होने से मुनि ने प्रति उत्तर नहीं दिया।
राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को समिक मुनि के गले में डालकर चले गये। अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है, उसकी मृत्यु 7 दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया और उनसे राय मांगी। उस समय विद्वानों ने उन्हें सुखदेव मुनि जी का नाम सुझाया।
इस प्रकार सुखदेव मुनि जी का आगमन हुआ जिन्होंने राजा परिक्षित को मृत्यु से मोक्ष प्राप्त कर भागवत कथा श्रवण का मार्ग दर्शन बताया। संगीतमय कथा विस्तार करते हुए महाराज जी ने श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध कर दिया। कथा के मुख्य यजमान कौशल दुबे रहे। सीताराम शरण महाराज, हनुमान त्रिपाठी, राधारमन त्रिपाठी, रंजन दुबे, पवन दुबे, महिला, पुरुष, बच्चे समेत अनेक लोग कथा पंडाल में मौजूद रहे। 7 दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा प्रतिदिन शाम 3 बजे से साय 7 बजे तक चल रही है।
आधुनिक तकनीक से करायें प्रचार, बिजनेस बढ़ाने पर करें विचार
हमारे न्यूज पोर्टल पर करायें सस्ते दर पर प्रचार प्रसार।