श्रद्धा उत्साह के साथ मनाया गया गुरू हरगोविन्द साहिब का प्रकाश पर्व

श्रद्धा उत्साह के साथ मनाया गया गुरू हरगोविन्द साहिब का प्रकाश पर्व

जयेश बादल
ललितपुर। श्री गुरु सिंह सभा द्वारा परम्परागत तरीके से सिख पंथ के 6 वे गुरु श्री गुरु हरगोबिंद साहिब का जन्म दिवस गुरु की संगत द्वारा बड़े ही उत्साह के साथ गुरूद्वरा साहिब में मनाया गया। इस मौके पर सरदार कुलदीप सिंह अरोरा, हरमीत सिंह अरोरा परिवार द्वारा श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के सहज पाठ साहिब की समाप्ति एवं मिस्सी रोटी, कच्ची लस्सी व प्याज के लँगर का गुरु की संगत द्वरा लँगर प्रसाद ग्रहड़ कर आनन्द लिया गया।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए महामंत्री सुरजीत सिंह सलूजा सभी सिख संगत को पर्व की बधाई दी। गुरुद्वारा में मुख्य ग्रन्थि ज्ञानी हरविंदर सिंह व ग्यानी आदेश सिंह द्वारा गुरुबानी के मनोहर कीर्तन किये गए।सर्व प्रथम श्री सहज पाठ साहिब की समाप्ति सरदार कुलदीप सिंह, हरमीत सिंह अरोरा परिवार की ओर से हुई। श्रीगुरूद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अध्यक्ष ओंकार सिंह सलूजा ने गुरुजी की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरु हरगोबिंद साहिब का जन्म बडाली अमृतसर पंजाब में हुआ था। वे सिखों के 5वें गुरु गुरु अर्जुनदेव के पुत्र थे। उनकी माता का नाम गंगा था। इस वर्ष 15 जून को श्री गुरु हरगोबिंद साहिब का प्रकाशपर्व गुरु द्वारा लक्ष्मीपुरा में मनाया गया। गुरुजी ने अपना ज्यादातर समय युद्ध प्रशिक्षण एवं युद्ध कला में लगाया तथा बाद में वे कुशल तलवारबाज, कुश्ती व घुड़सवारी में माहिर हो गए। उन्होंने ही सिखों को अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया व सिख पंथ को योद्धा चरित्र प्रदान किया। गुरु हर गोविंद एक परोपकारी एवं क्रांतिकारी योद्धा थे। उनका जीवन-दर्शन जन-साधारण के कल्याण से जुड़ा हुआ था।

गुरु हर गोविंद सिंह ने अकाल तख्त का निर्माण किया था। मीरी पीरी तथा कीरतपुर साहिब की स्थापनाएं की थीं। उन्होंने रोहिला की लड़ाई, कीरतपुर की लड़ाई, हरगोविंदपुर, करतारपुर, गुरुसर तथा अमृतसर- इन लड़ाइयों में प्रमुखता से भागीदारी निभाई थी। वे युद्ध में शामिल होने वाले पहले गुरु थे। उन्होंने सिखों को युद्ध कलाएं सिखाने तथा सैन्य परीक्षण के लिए भी प्रेरित किया था। वरिष्ठ उपाध्यक्ष हरविंदर सिंह सलूजा ने कहा कि हरगोविंद जी ने मुगलों के अत्याचारों से पीड़ित अनुयायियों में इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास पैदा किया। मुगलों के विरोध में गुरु हर गोविंद सिंह ने अपनी सेना संगठित की और अपने शहरों की किलेबंदी की। उन्होंने श्अकाल बुंगेश् की स्थापना की। श्बुंगेश् का अर्थ होता है एक बड़ा भवन जिसके ऊपर गुंबज हो। उन्होंने अमृतसर में अकाल तख्त (ईश्वर का सिंहासन, स्वर्ण मंदिर के सम्मुख) का निर्माण किया। इसी भवन में। इनमें जो निर्णय होते थे उन्हें गुरुमतां अर्थात् गुरु का आदेश नाम दिया गया। इस कालावधि में उन्होंने अमृतसर के निकट एक किला बनवाया तथा उसका नाम लौहगढ़ रखा। दिनोंदिन सिखों की मजबूत होती स्थिति को खतरा मानकर मुगल बादशाह जहांगीर ने उनको ग्वालियर किले में कैद कर लियाजहाँ आज भी दाता बन्दी छोड़ गुरूद्वरा स्थित है ओर हजारों की संख्या में श्रद्धालु वहां माथा टेकने जाते है। मंत्री मनजीत सिंह एड. ने कहा गुरु हर गोविंद साहिब 12 वर्षों तक कैद में रहे। इस दौरान उनके प्रति सिखों की आस्था और अधिक मजबूत होती गई। वे लगातार मुगलों से लोहा लेते रहे। रिहा होने पर उन्होंने शाहजहां के खिलाफ बगावत कर दी और संग्राम में शाही फौज को हरा दिया। वह अपने साथ सदैव मीरी तथा पीरी नाम की दो तलवारें धारण करते थे।

एक तलवार धर्म के लिए तथा दूसरी तलवार धर्म की रक्षा के लिए। मुगल शासक जहांगीर के आदेश पर गुरु अर्जुन सिंह को फांसी दे दी गई तब गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने सिखों का नेतृत्घ्व संभालावे लगातार मुगलों से लोहा लेते रहे। रिहा होने पर उन्होंने शाहजहां के खिलाफ बगावत कर दी और संग्राम में शाही फौज को हरा दिया। अंत में उन्होंने कश्मीर के पहाड़ों में शरण ली जहां सन् 1644 ई. में कीरतपुर (पंजाब) में उनकी मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु से ठीक पहले गुरु हर गोविंद ने अपने पोते गुरु हरराय को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस अवसर पर लँगर की सेवा भी सरदार कुलदीप सिंह हरमीत सिंह अरोरा परिवार की ओर से हुई। इस अवसर पर अध्यक्ष ओंकार सिंह सलूजा, संरक्षक जितेंद्र सिंह सलूजा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष हरविंदर सिंह सलूजा, उपाध्यक्ष डा0 सुरेंद्र कौर वालिया, कोषाध्यक्ष परमजीत सिंह छतवाल, सुरजीत सिंह सलूजा, मनजीत सिंह सलूजा, वीरेंद्र सिंह बीके, पर्सन सिंह, हरजीत सिंह, गुरबचन सिंह बिल्ले, सुरजीत सिंह खालसा, गुनबीर सिंह, गुरमुख सिंह, सतनाम सिंह दैलवारा, सन्तोष कालरा, सतनाम सिंह भाटिया, मनिंदर सिंह, अवतार सिंह, अरविंदर सिंह सागरी, मनजीत सिंह परमार, तरनदीप सिंह गोलू, जगजीत सिंह, कृपाल सिंह परमार, श्रीमती बिंदु कालरा, डा. हरजीत कौर, गुरदीप कौर, पूजा कालरा, अमरजीत कौर, रविंद्र सिंह छाबड़ा, सुरजीत सिंह काके, कन्हैया लाल सिंधी, आनंद सिंह, महेंद्र अरोरा, मैनेजर केदार सिंह पिंटू आदि उपस्थित थे।

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