गंगा का बनारस भाग-२

गंगा का बनारस भाग-२

ब्रह्मा, विष्णु सदा विराजें,
करता है गुणगान बनारस।
बँधती गँठरी पुण्य की देखो,
सुख की है खान बनारस।

दोष-पाप सब दूर है करता,
ऐसा है वो घाट बनारस।
खल-कामी, लोभी-अज्ञानी,
इन सबका है काट बनारस।

गंगा की लहरों में जीवन,
शीतल-मंद-सुगंध बनारस।
कल्-वृक्ष के जैसा है वो,
ऋषि, मुनि का मंत्र बनारस।

पुत्र सगर की तारी गंगा,
मुक्ति का वो धाम बनारस।
जो पीता राम-रस प्याला,
उसका है वो जाम बनारस।

कर्म-सुकर्म की गंगा बहती,
तत्व-ज्ञान का नाम बनारस।
राग-द्वेष, पाखंडों को,
करे दूर वो धाम बनारस।

शांत-चित्त, करे मन निर्मल,
भव-भय भंजन करे बनारस।
त्याग-बलिदान की देता शिक्षा,
कितना है वेदज्ञ बनारस।

हिचकोले नित्य गंगा में खा,
स्वयंभू का दिव्य बनारस।
राम-लखन-सीता-हनुमंत,
जपे नाम जो नित्य बनारस।

दानी राजा हरिश्चंद्र का,
अटल सत्य शहर बनारस।
सूर्य टले, टल जाए चंदा,
नहीं डिगता कभी बनारस।

रखो हिसाब तू कर्मों का,
मुक्ति का वो द्वार बनारस।
कर कामना मोक्ष की तू भी,
है त्रिशूल पे टिका बनारस।

दूध का धुला कहीं न कोई,
फिर भी होश में है बनारस।
जो न जीता उसूल-ए-जिन्दगी,
वो कहता बकवास बनारस।

ज्ञानी नहीं वो ध्यानी नहीं,
रास न आता उसे बनारस।
एकमत दुनिया रही न कभी,
कुछ कहते हैं झूठ बनारस।

कामी, क्रोधी लंपट-लबारी,
उनकी न वो डगर बनारस।
अलख निरंजन की साया में,
नहा लो चौका घाट बनारस।

रामकेश एम. यादव, मुम्बई

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