यह सत्य है कि…
रात में बिस्तर पर जाकर
लेटा हुआ हर व्यक्ति
दिन भर के अपने कर्मों का
लेखा-जोखा तैयार कर….
उसका मूल्यांकन करता है,
गुण-दोष केआधार पर
परीक्षण करता है…
अपने निर्णयों का….!
मन में ही लड़ता है
अपने सिद्धांतों से और
हृदय के भावों से…
मन और मस्तिष्क के बीच
रूठने-मनाने का
सिलसिला भी चलता रहता है
और फिर धीरे से
सुधार की संभावनाएं तलाशते हुए
मन को सांत्वना देकर,
समझा कर वह सो जाता है
यही आत्ममंथन है….!
यह आत्ममंथन जरूरी भी है
परिवार के लिए भी और
समाज के लिए भी….
मन यहीं सोचता है कि
विश्वास क्या है……?
विश्वासघात क्या है…?
छल क्या है..? छलावा क्या है…?
साथ ही…… छलता कौन है…?
राज क्या है..? राजदार कौन है..?
अपनापन क्या है..? और…
परायापन क्या है….?
इसी समय…
हर एक पन्ना खुलता है
एक नए सबक के साथ…!
कोई अच्छा तो कोई बुरा..!
यहीं से…..
स्वयं के अस्तित्व एवं
अस्मिता को बचाने की,
भावनाओं का उदय होता है…और
तलाश शुरू होती है,
एक नई डगर की……!
साथ ही..मन मे पैदा होती है
एक नई जिजीविषा…!
इस धारणा के साथ कि…..
रास्ते कभी बंद नहीं होते
एक के बंद होते ही
दूसरे खुलने लगते हैं ….
रास्ते कभी बंद नहीं होते
एक के बंद होते ही
दूसरे खुलने लगते हैं….
रचनाकार- जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी नगर, जनपद जौनपुर।
आधुनिक तकनीक से करायें प्रचार, बिजनेस बढ़ाने पर करें विचार
हमारे न्यूज पोर्टल पर करायें सस्ते दर पर प्रचार प्रसार।