सत्य केवल नैतिक गुण ही नहीं, बल्कि धर्म का आधार भी है: आचार्य रणधीर

सत्य केवल नैतिक गुण ही नहीं, बल्कि धर्म का आधार भी है: आचार्य रणधीर

सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन सत्य का महत्व और परीक्षित जन्म की हुई कथा
तेजस टूडे ब्यूरो
राजेश चौबे
बक्सर, बिहार। राजपुर प्रखंड अंतर्गत भरखरा गांव में चल रहे सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन मामा जी के कृपापात्र आचार्य श्री रणधीर ओझा ने ‘सत्य का महत्व और राजा परीक्षित के जन्म से जुड़ी कथा का रसपान कराई। आचार्य जी ने अपने प्रवचन में सत्य के आदर्श और जीवन में इसकी आवश्यकता पर गहराई से प्रकाश डाला। साथ ही कहा कि सत्य केवल एक नैतिक गुण ही नहीं, बल्कि धर्म का आधार भी है। सत्य के बिना समाज का संतुलन असंभव है। परिस्थितियाँ कैसी भी रही हों, भगवान ने स्वयं हमेशा सत्य का पक्ष लिया।
आचार्य जी ने राजा परीक्षित के जन्म की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि उनका जन्म एक महत्वपूर्ण घटना थी जो सत्य और धर्म की रक्षा के लिए परमात्मा के लीला का एक अंग रही। भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध में पांडवों को विजय का आशीर्वाद देने के बाद परीक्षित जी के रूप में अपने वंश को आगे बढ़ाने का वरदान दिया। यह उनकी कृपा का परिणाम था कि परीक्षित जी जैसे धर्मपरायण और सत्यनिष्ठ शासक ने राज्य का भार संभाला। परीक्षित जी का जन्म सत्य और धर्म की पुनर्स्थापना का प्रतीक था। आचार्य जी ने बताया कि किस प्रकार परीक्षित जी ने बाल्यकाल से ही सत्य के मार्ग को अपनाया और जीवनभर धर्म का पालन किया। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्चे हृदय से यदि सत्य का पालन किया जाय तो हर बाधा को पार कर सुख और शांति पाई जा सकती है।
आचार्य जी ने रविवार की कथा का समापन सामूहिक भजन और आरती के साथ किया। इस दौरान उपस्थित श्रद्धालु भक्ति भाव से ओतप्रोत होकर भगवान श्रीकृष्ण का संकीर्तन किये। इस अवसर पर राधेश्याम दुबे, कामेश्वर चौबे, मिंटू उपाध्याय सहित तमाम भक्तों ने श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण किया।

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