जिला श्रम अधिकारी की कार्यशैली भी है बेहद संदिग्ध, उठ रहे सवालों पर सवाल

जिला श्रम अधिकारी की कार्यशैली भी है बेहद संदिग्ध, उठ रहे सवालों पर सवाल

विशाल रस्तोगी
सीतापुर। इस समय जिले का श्रम विभाग बेहद चर्चाओं से गुजर रहा है। श्रम विभाग के कर्मचारी से लेकर अधिकारी केवल खाऊ नीति को अंजाम दे रहे हैं। जिला श्रम अधिकारी व उनके स्टाफ की पोल पट्टी खुल चुकी है। व्यापारी से लेकर कारोबारी सभी जान चुके हैं। श्रम विभाग की छापामार कार्यवाही का मतलब लिफाफा है। कार्यवाही प्रतिष्ठान पर की जाती है और लिफाफा लेने के लिये श्रम विभाग के अधिकारियों ने एक विशेष प्रक्रिया तैनात कर रही है। जिस तरह से जिला श्रम अधिकारी कार्यवाही कर रही हैं, उससे वह सवालों के घेरे में आ गये हैं।

जिला श्रम अधिकारी सहित अन्य विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली को देखकर अब सवाल दागे जाने लगे हैं कि जिला श्रम अधिकारी पहले तो बालक श्रमिक की परिभाषा बतायें, फिर गरीब बाल श्रमिकों को लिये सरकार द्वारा कौन सी योजनाएं बनाई गयी हैं और उनका कहां हुआ है? इस तरह से कई सवाल उठ खड़े हुए हैं जो श्रम विभाग के अधिकारियों को कठघरे में लाकर खड़ा कर रहे हैं। नौनिहालों के भविष्य की चिन्ता मे रात-दिन घुले जा रहे श्रम विभाग को बाल मजदूरों की कितनी फिक्र है। यह कूड़े-कचरे के ढेर मे अपना भविष्य (रोजी-रोटी) तलाश रहे अनपढ़ मासूमों के परिवार वालों की माली हालत से लगाया जा सकता है। कूड़े कचरे के ढेर से प्लास्टिक, लोहा, गत्ता आदि बीन करके जब यह बच्चे कबाड़ी की दुकान पर बेचते हैं तब इनके घर का चूल्हा जलता है लेकिन इनके पुनरुत्थान के लिए बनाए गए विभाग के अधिकारी से लेकर बाबू और ड्राइवर से लेकर चपरासी तक कि माली हालत मे दिन प्रतिदिन इजाफा हो रहा है।

उल्लेखनीय है कि श्रम विभाग के पास बाल मजदूरों की शिक्षा, स्वास्थ्य और भरण-पोषण की कोई कार्ययोजना नहीं है। यह जांच का विषय है कि इस विभाग का अदना सा अधिकारी इतने कम समय में इतनी अकूत सम्पत्ति का मालिक कैसे बन गया? कहा जाता है कि उक्त अधिकारी का अपने गृह जनपद सहित राजधानी में भी आलीशान मकान है। अपने परिजनों सहित कई परिचितों के नाम भी बेनामी सम्पत्ति अर्जित की गयी है। वहीं दूसरी तरफ बाल श्रमिक आज भी खोंचे, ढाबे, ईंट भट्ठों और कारखानों मे काम करके आपने घरवालों की दो जून की रोटी का इंतजाम कर रहे हैं। मेहनत मशक्कत करने वाले बच्चे तो किसी तरह के काम करके या कूड़े-कचरे से कबाड़ बीन करके अपना पेट पाल रहे हैं। वहीं बहुत से बच्चे रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन या बाजारों मे भीख मांग करके पेट भर लेते हैं।

इन बाल मजदूरों के नाम पर श्रम विभाग के अधिकारी से लेकर चपरासी तक मलाई काट रहे हैं। बाल श्रमिकों की धरपकड़ अभियान मे विभाग के कर्मचारियों के साथ मामले को रफादफा कराने का ठेका लेने वाले बिचौलिए और दलाल भी मालामाल हो रहे हैं। ऐसे हालातों में श्रम विभाग न शासन की मंशा को पूरा कर सता है और न ही पीएम मोदी तथा सीएम योगी के सपनों को पूरा कर सकता है, क्योंकि वर्तमान में श्रम विभाग अपने अपने मकसद से ही भटक चुका है। जिस विभाग का मकसद केवल कथित तौर पर धन कमाना रह गया हो तो वह शासन की मंशा पर खरा कैसे उतर सकता है? यह सवाल भी इस समय अहम सवालों में ही गिना जा रहा है। जिला श्रम अधिकारी की वसूली की नीतियों को लेकर आये दिन कारोबारियों और श्रम विभाग के अधिकारियों के बीच तू-तू मै-मै हुआ करती है।

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