’गन्धर्व और देवता भी जिसकी स्तुति करते हैं, वह होता है गुरू’
’गन्धर्व और देवता भी जिसकी स्तुति करते हैं, वह होता है गुरू’
अजय जायसवाल
गोरखपुर। मनुष्य को धर्म के बारे में बताने वाला ही सच्चा गुरू होता है। यह अज्ञान रूपी अंधकार दूर करके ज्ञान रूपी प्रकाश को हमारे अंदर भरता है। गुरु की स्तुति गन्धर्व और देवता भी को करते हैं। गुरु ज्ञान का परिमार्जन करता है। उक्त उद्बोधन दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के संस्कृत विभाग की सहायक आचार्य डा. लक्ष्मी मिश्रा ने दिया जो चन्द्रकान्ति रमावती देवी आर्य महिला पीजी कालेज में आयोजित गुरु पूर्णिमा समारोह में बतौर मुख्य अतिथि वर्तमान परिवेश में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की प्रासंगिकता विषय पर बोल रही थी।
उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में कन्याओं का भी उपनयन संस्कार होता था तथा उन्हें भी बद अध्ययन का अधिकार था। महाविद्यालय की प्रबंधक डा. विजयलक्ष्मी मिश्रा ने अतिथि स्वागत एवं परिचय के साथ अपने उद्बोधन में कहा कि लक्ष्य निर्धारण एवं लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु शिष्य को प्रेरित करना गुरु का परम कर्तव्य है। माता, पिता तथा आचार्य मनुष्य के तीन जन्मजात गुरु हैं। इसके पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ संगीत विभाग की छात्राओं द्वारा सरस्वती वन्दना एवं स्वागत गीत प्रस्तुत किया गया। साथ ही महाविद्यालय के विभिन्न विभागों की छात्राओं ने गुरू की महिमा का बखान प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य अरूणमणि पाण्डेय ने किया। आभार ज्ञापन प्राचार्या डा. सुमन सिंह ने किया। इस अवसर पर डा. रेखा श्रीवास्तव, डा. अपर्णा मिश्रा, स्वप्निल पाण्डेय, डा. वीरेन्द्र गुप्त, डा. प्रियतोष, डा. पवन, डा. रेखारानी शर्मा, निशा श्रीवास्तव, ऋचा दूबे, यशवंत सिंह समेत समस्त विभागों के प्रवक्तागण मौजूद रहे। कार्यक्रम का समापन वन्दे मातरम् के साथ हुआ।
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