कथा वाचक ने कथा के छठवें दिन धनुष यज्ञ का किया विस्तृत वर्णन
कथा वाचक ने कथा के छठवें दिन धनुष यज्ञ का किया विस्तृत वर्णन
बड़े लोगों का आशीर्वाद असम्भव को सम्भव कर देता है: राजन जी महराज
देवी प्रसाद शर्मा
आजमगढ़। प्रथम देव सिद्ध पीठ धाम तपस्थली संत शिरोमणि श्री श्री 1008 बाबा मुशई दास जी महाराज बाबा बहिरादेव के पवित्र स्थल पर रविवार को अमृत मयी कथा के छठवें दिन राजन जी महराज ने पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को विस्तारपूर्वक बताकर श्रोता बंधुओं को संस्कार की मर्यादा का पालन कैसे किया जाय, विधिवत वर्णन किया तभी तो वह कहते हैं कि जब एक ऐसा अवसर मिला कि अब धनुष नहीं टूट सकती है और राजा जनक जी की हताशा, निराशा और विवशता के बीच में यह शब्द सुनते हैं कि शायद जानकी का विवाह अब संभव न हो तब अपने गुरु जी द्वारा उनको आदेशित किया जाता है तो सबसे पहले अपने गुरु को प्रणाम करते हैं और फिर शंकर जी के उस धनुष को भी प्रणाम कर उसका भंजन करते हैं।
राजन जी महाराज बताते हैं कि जब भी आपको कोई महत्वपूर्ण कार्य करने का अवसर मिले तो सबसे पहले अपने श्रेष्ठ जनों को प्रणाम कर उस काम को करें तो निश्चित रूप से उनका आशीर्वाद आपके साथ रहता है और यही काम पुरुषोत्तम श्रीराम भी धनुष भंजन करने के पहले अपने श्रेष्ठ जनों की दुआएं आशीर्वाद ही असंभव को संभव कर देता है। जब कोई काम आपके द्वारा किया जाना हो तो यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि अपने से श्रेष्ठ जनों कि अनुमति लेकर ही करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब लंका में युद्ध चल रहा था तो हनुमान को प्यास इस लिए नहीं लगती थी, क्योंकि वह तो खुद प्रभु श्रीराम की क्षत्र छाया में रहते हैं तो उनको कहां से प्यास लग सकती है, क्योंकि रामनाम ही अमृत है।
इस अवसर पर आयोजक अखिलेश सिंह, अखण्ड प्रताप सिंह, सुरेन्द्र प्रताप सिंह, संजय सिंह, जगदीश गुप्ता, मनीष सिंह, राम अवतार जायसवाल, डॉ अनिल सिंह, राधेश्याम वर्मा, अंकुर सिंह, अमित सिंह, अजय राय, बहादुर चौबे सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।
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