गौ आश्रय स्थलों का हाल बेहाल, गायों की दिख रही पसलियां

गौ आश्रय स्थलों का हाल बेहाल, गायों की दिख रही पसलियां

गोशाला बनी वधशाला, मृत पशु को नोच रहे पशु-पक्षी, घायल का उपचार नही
अश्विनी सिंह चौहान
रोहनिया, वाराणसी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट की जिले में धज्जियां उड़ रही है। कहने को तो मवेशियो के स्वास्थ्य उनके भोजन पानी के बेहतर इंतजाम है लेकिन गोआश्रय स्थलों में बेजुबानों की हालत बदहाल है। गो आश्रय स्थल उनकी जिन्दगी नहीं कब्रगाह बनते जा रहे है, गो आश्रय स्थलों की पड़ताल में यह हकीकत स्वयं बयां हो रही है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक आराजी लाइन विकास खण्ड के ग्राम पंचायत नरसडा व जक्खिनी में बने गो आश्रय स्थल बेजुबानों की वधशाला बन चुका है।

गो आश्रय स्थल के परिसर में जगह जगह बिखरे बेजुबानों के कंकाल व मृत पड़ी गाय मौत की कहानी बयां कर रहे है। मौत के बाद गो वंशियों को दफनाने के लिए जिम्मेदार एक ढंग का गडढा तक नहीं खोद पाये जिसमें उन्हे मौत के बाद सुकून मिल सके बेजुबानो को थोड़े जमीन में दफना कर उबर से गोबर डाल दिया जा रहा है। जंगली जानवर सहित पशु पक्षी उनको नोच नोच कर खा रहे है।गो आश्रय स्थल में पाले जा रहे गो वंशियों की हालत देखकर उनके खाने पीने के इन्तजाम का अन्दाजा कोई भी लगा सकता हैं। हालत यह है कि परिसर में चरते हुए गो वंशियों की हड्डियां तक गिनी जा सकती है।पेयजल के लिए बनाये गये हौज में काई लगी है जिसमें जानवर मजबूरी में पानी पीते है गो वंशियों के लिए बने टीन शेड में एक तरफ बने नाद में चारे के नाम पर सूखा भूसा खिलाया जा रहा है।

हरा चारा तो छोडिये चूनी चोकर का नामो—निशान तक नही है ।गो वंशियों के स्वास्थ्य और उनकी मौत पर पूछने पर पहले तो जिम्मेदार चुप्पी साध लेते है लेकिन दबी जुबान में स्वीकार करते है कि गो वंशियों के देखभाल के लिए डाक्टर बहुत कम आते है।इसे देखकर लगता है कि सिर्फ कागजी खानापूर्ति की जाती है। मवेशियों के स्वास्थ्य और उनके चारे, पानी के इंतजाम की अनदेखी की जाती है। अस्थाई गो आश्रय स्थल में मवेशियों की बदहाली पर गो सेवा का दंभ भरने वालों की भी नजर नहीं है। शायद उनके ही सवाल खड़ा करने से यहां मवेशियों की बदतर हालत में सुधार हो जाता। सवाल यह भी है कि क्या इन गो आश्रय स्थलों की जिम्मेदारी केवल सरकार की है, गो भक्तों का वह तबका अब कहा है जो इन गायों के नाम पर अपनी रोटियां सेंकता है। बहरहाल में चल रहे गो आश्रय स्थलो के हालात कमोबेश ऐसे ही हैं।जक्खिनी सरैया निवासी ग्रामीण रामधनी बिंद का कहना रहा कि केयर टेकर बहुत कम आते है। दिन भर ताला बंद रहता है मृत पशुओं को परिसर में थोड़ा सा गड्ढा करके दफना कर उस पर गोबर डाल कर ढक दिया जाता है जिससे बदबूदार दुर्गंध आती रहती है।

नरसडा के केयर टेकर राजकुमार का कहना रहा कि एक पशुओ के देखभाल खाना पानी के लिए तीस रुपया मिलता है जिसमे कुछ भी खिलाना सही तरीके से सम्भव नही है। जमीन पर गिरकर तड़प रहे। घायल गाय के बारे में पूछने पर उनका कहना रहा कि इसका इलाज डॉक्टर साहब करेंगे उनका करना चाहिए।वही इस बाबत पशु चिकित्साधिकारी जक्खिनी डा. जमालुद्दीन का कहना रहा कि जानकारी नही था। जानकारी मिली है। मृत गाय को दफनावा दिया जायेगा और घायल पशु के इलाज के लिए डॉक्टरों की टीम भेज दी जाएगी और स्वयं मेरे उपस्थिति में उपचार किया जायेगा।

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