सनातन धर्म का मूल सिद्धान्त है- ज्ञान, योग, क्षेम: नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी
सनातन धर्म का मूल सिद्धान्त है- ज्ञान, योग, क्षेम: नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी
जितेन्द्र सिंह चौधरी/अजय पाण्डेय
वाराणसी। रामकृष्ण अद्वैत आश्रम रक्षा में रामकृष्ण मिशन द्वारा श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज की अध्यक्षता में “सनातन धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों के मध्य समन्वय और सौहार्द” विषय पर आयोजित सनातनधर्मी अन्तर सम्प्रदाय सम्मेलन में जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि सनातन धर्म का मूल सिद्धान्त है- ज्ञान, योग, क्षेम। ज्ञान-अर्थात् जो पता नहीं है उसे पता करो, शोध करो चाहे शिक्षा से, अनुभव से, चिन्तन से, मनन से या दर्शन से। योग का अर्थ है-जो अप्राप्य है, उसकी प्राप्ति करना, इसलिए सनातन धर्म आपको प्रश्न करने की अनुमति देता है। प्रश्न से ही ज्ञान का उदय होता है । सनातन धर्म कभी यह नहीं कहता कि जो लिखा है, वही करो। वह कहता है अपना मार्ग स्वयं खोजो, सबके मार्ग अलग हैं लेकिन लक्ष्य एक ही है। क्षेम का अर्थ है-जो ज्ञान से या योग से प्राप्त किया, उसकी रक्षा करना, अर्थात् उसे मिटने या नष्ट न होने दो। इसी क्षेम द्वारा शिक्षा का प्रचार-प्रसार निहित है, जिससे वह अमिट सदियों तक चलती है। इसी क्षेम द्वारा शास्त्रार्थ होते है जिससे ज्ञान को एक नयी चमक मिलती है।
शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि यद्यपि आज सनातन का पर्याय हिन्दू है परन्तु सिख, बौद्ध, जैन धर्मावलम्बी भी सनातन धर्म का ही हिस्सा हैं, क्योंकि बुद्ध भी अपने को सनातनी कहते हैं। यहाँ तक कि नास्तिक जो कि चार्वाक दर्शन को मानते हैं, वह भी सनातनी हैं। सनातन धर्मी के लिए किसी विशिष्ट पद्धति, कर्मकांड, वेशभूषा को मानना आवश्यक नहीं है। इन सभी के सिद्धान्तों, परम्पराओं, मान्यताओं, ऐतिहासिक जड़ों और पूजा शैलियों के आधार पर धार्मिक आस्थाओं में काफी समानताएं और भिन्नताएं हैं। धार्मिक मान्यताएँ, जिनमें हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म शामिल हैं, उन धर्मों का एक संग्रह है, जिनकी उत्पत्ति भारत में ही हुई है। हिन्दू धर्म चार धर्मों में सबसे पुराना है और इसकी कोई ज्ञात उत्पत्ति नहीं है, यह अनादि है। एक अरब से अधिक अनुयायियों के साथ हिन्दू धर्म दुनिया भर में तीसरा सबसे अधिक पालन किया जाने वाला धार्मिक धर्म है। 500 मिलियन से अधिक अनुयायियों के साथ, बौद्ध धर्म दूसरा सबसे पुराना धार्मिक धर्म है और चौथा सबसे व्यापक रूप से प्रचलित है। भारत के अग्रणी और तीसरे सबसे लोकप्रिय धार्मिक विश्वासों में से एक जैन धर्म है तथा गुरु नानकदेव ने लगभग 500 साल पहले सिख धर्म बनाया था।
हालाँकि अपनी सामान्य उत्पत्ति, साझा कालक्रम और समान प्रेरणाओं के कारण, ये धर्म कई सिद्धान्त, पूजा-पद्धति और दैनन्दिन के अनुष्ठान साझा करते हैं। आज आवश्यक है इन सभी के मध्य अटूट सौहार्द एवं समन्वय स्थापित करने की जो अद्वैत दर्शन से ही निर्मित हो सकता है परन्तु कुछ अद्वैतवादी समाज में भ्रम एवम् भ्रान्ति फैला रहे हैं। इसके लिए हम सभी के मध्य सतत् संवाद निश्चित रूप से आवश्यक है। श्रीराम कृष्ण अद्वैत आश्रम का यह प्रयास सराहनीय एवम् प्रशंसनीय है। इस अवसर पर श्री रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम वाराणसी के सचिव स्वामी भेदातीतानन्द पुरी जी, रामकृष्ण अद्वैत आश्रम वाराणसी के अध्यक्ष स्वामी विश्वात्मानन्द पुरी जी, श्री रामकृष्ण मठ राजकोट (गुजरात) के अध्यक्ष स्वामी निखिलेश्वरानन्द पुरी, सिद्धयोगाश्रम के महन्त दण्डी स्वामी आत्मानन्द तीर्थ जी, काठिया बाबा पीठाधिपति डा0 वृन्दावन बिहारी दास जी सहित सैकड़ों की संख्या में सन्यासी एवं सनातन धर्म के सभी सम्प्रदायों के अनुयायी उपस्थित थे।
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