तालिबान शासनः वैश्विक भाईचारे के लिये एक चुनौती

तालिबान शासनः वैश्विक भाईचारे के लिये एक चुनौती

अजय पाण्डेय
तालिबान का उभार अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों की वापसी के बाद 1000 के दशक की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ था। पश्तो भाषा में तालिबान का मतलब होता है। छात्र खासकर ऐसे छात्र जो कट्टर इस्लामी धार्मिक शिक्षा से प्रेरित हो। कहा जाता है कि कट्टर सुन्नी इस्लामी विद्वानों ने धार्मिक संस्थाओं के सहयोग से पाकिस्तान में इनकी बुनियाद खड़ी की थी। तालिबान पर देववंदी विचारधारा का पूरा प्रभाव है। तालिबान को खड़ा करने के पीछे सऊदी अरब से आ रही आर्थिक मदद को जिम्मेदार माना गया। शुरुआती तौर पर तालिबान नेऐलान किया कि इस्लामी इलाकों से विदेशी चासन खत्म करना, वहां शरिया कानून और इस्लामी राज्य स्थापित करना उनका मकसद है।

शुरू में सामंतों के अत्याचार अधिकारियों के करप्शन से आजीज जनता ने तालिबान में मसीहा देखा और कई इलाकों में कबाइली लोगों ने इनका स्वागत किया लेकिन बाद में कट्टरता ने तालिबान की यह लोकप्रियता भी खत्म कर दी लेकिन तब तक तालिबान इतना पावरफुल हो चुका था कि उससे निजात पाने की लोगों की उम्मीद खत्म हो गई।
शुरूआती दौर में अफगानिस्तान में रूसी प्रभाव खत्म करने के लिए तालिबान के पीछे अमेरिकी समर्थन भी माना गया लेकिन 9/11 के हमले ने अमेरिका को कट्टर विचारधारा की आंच महसूस कराई और वह खुद इसके खिलाफ जंग में उतर गया लेकिन काबुल, कंधार जैसे बड़े शहरों के बाद पहाड़ी और कबाइली इलाकों से तालिबान को खत्म करने में अमेरिकी और मित्र देशों की सेनाओं को पिछले 20 साल में भी सफलता नहीं मिली।

खासकर पाकिस्तान से सटे इलाकों में तालिबान को पाकिस्तानी समर्थन ने जिंदा रखा और आज अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान फिर से सर उठाकर खौफ का नाम बनकर उभरा है। 20 साल बाद प्रभाव में लौटे तालिबान को लेकर लोगों में खौफ क्यों है, यह जानने के लिए 23 साल पीछे चलना होगा।
1998 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर देश पर शासन शुरू किया तो कई फरमान जारी किए पूरे देश में शरिया कानून लागू कर दिया गया और न मानने वालों को सरेआम सजा देना शुरू किया। हत्या और यौन अपराधों से जुड़े मामलों में आरोपियों की सड़क पर हत्या की जाने लगी। चोरी करने के आरोप में पकड़े गए लोगों के शरीर के अंग काटना। लोगों को कोड़े मारने जैसे नजारे सड़कों पर आम हो गये।

मर्दों को तबी दाढ़ी रखना और महिलाओं को बुर्का पहनने और पूरा शरीर ढंककर निकलना अनिवार्य कर दिया गया। घरों की खिड़कियों के शीशे काले रंग से रंगवा दिये गये। टीवी, संगीत और सिनेमा प्रतिबंध कर दिये गये। 10 साल से अधिक उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी गई। भगवान बुद्ध की ऐतिहासिक मूर्ति को तोड़कर तालिवान ने धार्मिक कट्टरता भी दुनिया को दिखाई।
तालिबान का शासन में आना समाज के लिए एक गलत संदेश है और खासकर तालिबान जैसी विघटनकारी शक्तियों समाज के लिए पूर्णता सही नहीं है। खान अब्दुल गफ्फार खान के सपनों का अफगानिस्तान आज अपनी दुर्दशा पर रो रहा है। ऐसे समय में यह जरूरत है कि हिंदुस्तान के मुस्लिम अपनी जिम्मेदारियों को समझे और समाज के सामने भाईचारे की मिसाल पेश करें।

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