सूरज उगले से… (कजरी)

सूरज उगले से… (कजरी)

सूरज उगले से देखा अँजोर होला,
सुबह-सुबह भोर होला ना।

चिड़िया चहके डाली-डाली,
टपके होंठवा से लाली।
देखि-देखि सबकर मनवाँ विभोर होला,
सुबह-सुबह भोर होला ना।
सूरज उगले से देखा अँजोर होला,
सुबह-सुबह भोर होला ना।

जाले दुबक कहीं पे रात,
पवन लुटावेला खैरात।
भौंरा कलियन के सुना चित्तचोर होला,
सुबह-सुबह भोर होला ना।
सूरज उगले से देखा अँजोर होला,
सुबह-सुबह भोर होला ना।

ओस मोती जइसन चमके,
बगिया फूलोंवाली गमके।
उनके लहजा से जइसे कउनों शोर होला,
सुबह-सुबह भोर होला ना।
सूरज उगले से देखा अँजोर होला,
सुबह-सुबह भोर होला ना।

चाँद-तारन कै विदाई,
किरन रोशनी बिछाई।
पूरे गन्ना में रस पोर-पोर होला,
सुबह-सुबह भोर होला ना।
सूरज उगले से देखा अँजोर होला,
सुबह-सुबह भोर होला ना।

जइसे गदराइल ऊ हवा,
खाके लोग होने जवाँ।
दिन उगानी तक सोवे,बकलोल होला,
सुबह-सुबह भोर होला ना।
सूरज उगले से देखा अँजोर होला,
सुबह-सुबह भोर होला ना।

गीतकार— रामकेश एम. यादव, मुम्बई

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