उड़ीसा प्रवास के बाद बिहार पहुंचे शंकराचार्य जी महाराज
उड़ीसा प्रवास के बाद बिहार पहुंचे शंकराचार्य जी महाराज
आयोजकों सहित श्रद्धालुओं ने किया जोरदार स्वागत
स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती सहित तमाम लोगों की रही उपस्थिति
अजय पाण्डेय/डा. राकेश कुमार
बिहार। सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के अभियान पर उड़ीसा प्रवास के पश्चात् भुवनेश्वर हवाई अड्डे से वाराणसी होते हुए गया (बिहार) के पलाँकी में आयोजित श्री रूद्र यज्ञ एवं श्री शिवजी प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पधारे श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज का आयोजकों एवं श्रद्धालुओं ने स्वागत एवं पूजन किया|
इस मौके पर उपस्थित सनातन धर्मी श्रद्धालुओं को अपना आशीर्वचन प्रदान करते हुए पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि शिव की भूमिका ब्रह्माण्ड को फिर से बनाने के लिए नष्ट करने की है| विनाश और मनोरंजन की उनकी शक्तियों का उपयोग अब भी इस दुनिया के भ्रमों और त्रुटियों को नष्ट करने के लिए किया जाता है जिससे लाभकारी परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त होता है|
सनातनी मान्यता के अनुसार यह विनाश मनमाना नहीं, अपितु रचनात्मक है| भगवान शिव को संहार के देवता हैं| शिवजी सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों हैं| सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति भी शिवजी ही हैं| शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिष शास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है तथापि वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं| शिवजी सभी को समान दृष्टि से देखते है, इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है|
उन्होंने कहा कि शिवजी के कुछ प्रचलित नाम, महाकाल, आदिदेव, किरात, शंकर, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय [मृत्यु पर विजयी], त्रयम्बक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विषधर, नीलकण्ठ, महाशिव, उमापति [पार्वती के पति], काल भैरव, भूतनाथ, ईवान्यन [तीसरे नयन वाले], शशिभूषण आदि हैं| भगवान श्रीराम ने नारद जी से कहा है कि- “जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी| सो न पाव मुनि भगति हमारी||”
शिव और राम में अन्तर मानने वाला कभी भी भगवान शिव का या भगवान राम का प्रिय नहीं हो सकता| शुक्ल यजुर्वेद संहिता के अन्तर्गत रुद्र अष्टाध्याई के अनुसार सूर्य इन्द्र विराट पुरुष हरे वृक्ष, अन्न, जल, वायु एवं मनुष्य के कल्याण के सभी हेतु भगवान शिव के ही स्वरूप हैं| भगवान सूर्य के रूप में वह शिव भगवान मनुष्य के कर्मों को भली-भाँति निरीक्षण कर उन्हें वैसा ही फल देते हैं अर्थात् सार यह है कि सम्पूर्ण सृष्टि शिवमय है| मनुष्य अपने कर्मानुसार फल पाते हैं| स्वस्थ बुद्धि वालों को वृष्टि, जल अन्न आदि भगवान शिव प्रदान करते हैं और दुर्बुद्धि वालों को व्याधि, दुख एवं मृत्यु आदि का विधान भी शिवजी ही करते हैं|
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि शिव में परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है| शिव के मस्तक पर एक ओर चन्द्र है तो दूसरी ओर महा विषधर सर्प भी उनके गले का हार है| वे अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं| गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी एवं वीतरागी हैं| सौम्य, आशुतोष होते हुए भी भयंकर रुद्र हैं| शिव परिवार भी इससे अछूता नहीं हैं। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नन्दी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है| वे स्वयं द्वंद्वों से रहित सह-अस्तित्व के महान विचार का परिचायक हैं| यहाँ भगवान शिवजी की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, सभी यहाँ आकर भगवान शिवजी की पूजा-आराधना करें तो निश्चित रूप से आप सभी का कल्याण होगा|
इस अवसर पर आयोजक मण्डल के महानुभावों सहित स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती, सन्त लाल बाबा, बालेश्वर यादव, शशि यादव, योगेन्द्र यादव, पंकज यादव, शम्भू यादव, दया यादव, सुरीठ यादव, शम्भू सिंह, किरन सिंह, अयोध्या सिंह, नवीन मिश्र, ब्रजेश मिश्र, सुनील मिश्र सहित हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे|
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