निर्देशक Varadraj Swami की फिल्म में दिखा 1990 के दौर की फिल्मों का रोमांस

निर्देशक Varadraj Swami की फिल्म में दिखा 1990 के दौर की फिल्मों का रोमांस

Romanticc Tukde Movie Review: निर्देशक वरदराज स्वामी (Varadraj Swami) हिंदी सिनेमा के एक तेज़ी से उभरते हुये फिल्म निर्देशक हैं| ये बहुत अच्छे कथा, पटकथा, लेखक हैं| ये टेक्निकली काफी स्ट्रांग हैं| नई टेक्नोलॉजी को बखूबी समझते हैं, और उनका इस्तेमाल करना जानते हैं वरदराज स्वामी (Varadraj Swami) द्वारा निर्देशित कबाड़ द कॉइन भी बेहद उम्दा और एक अलग मिजाज़ की फिल्म थी| इस बार फिर वरदराज स्वामी ने रोमांटिक टुकड़े (Romanticc Tukde) नाम की फिल्म बनायी है| फिल्म रोमांटिक टुकड़े की कहानी कहने को तो बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित है, मगर वास्तव में कहानी में उन्होंने जिस समस्या को दर्शाया है| वो देश, काल, समय से परे जाकर हर जगह की कहानी है| वरदराज स्वामी (Varadraj Swami) ने अपनी फिल्म रोमांटिक टुकड़े के माध्यम से एक बार फिर से अपने डायरेक्शन की अमिट छाप दर्शकों के मष्तिष्क पर छोड़ने में सफलता प्राप्त की है।

भारत का अति पिछड़ा गाँव जो बिहार के राज्य में स्थित है, जो कि फिल्म रोमांटिक टुकड़े (Romanticc Tukde) की कहानी है| बेहद इमोशनल फिल्म है रोमांटिक टुकड़े| ये फिल्म अपनी कहानी के जरिये वुमेन इंपावरमेंट की बात करती है, औरतों पर हो रहे घरेलू उत्पीड़न आज भी हमारे देश की एक ज्वलंत समस्या है। दूसरी तरफ इस फिल्म की कहानी भारतीय सिनेमा की कथा यात्रा है| रोमांटिक टुकड़े 1990 के दशक के सिनेमा के सुनहरे दौर की कहानी है| जब टिकटें ब्लैक में बिकती थी, फिर भी सिनेमा के दर्शक फिल्म देखने से नहीं चुकते थे| 1990 से लेकर 2023 की एक लम्बी यात्रा वृतांत की कथा है फिल्म रोमांटिक टुकड़े।

आज हर दिन देश में सिनेमा हॉल बंद हो रहे हैं फिल्म रोमांटिक टुकड़े की कहानी सिनेमा हॉल की कहानी है| निर्देशक ने इस फिल्म के माध्यम से देश में बंद हो रहे सिनेमा हॉल के दर्द को बखूबी से दिखाने में सफलता प्राप्त किया है| एक समय आते आते फिल्म रोमांटिक टुकड़े की कहानी बेहद प्रेरक हो जाती है और दर्शकों को अपने आगोश में ले लेती है| फिल्म देखते हुये दर्शक कई बार रो पड़ते हैं और कई बार हँसते हँसते लोटपोट हो जाते हैं| इन दिनों रोमांटिक टुकड़े देश भर के सिनेमा हॉल के अंदर दर्शकों का मनोरंजन करती है और दर्शकों को बार बार ताली बजाने पर मजबूर कर देती है।

क्या सीख देती है?
फिल्म रोमांटिक टुकड़े अपने आप में एक लेसन है| यदि गलत व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाई जाए तो देर सबेर ही सही न्याय ज़रूर मिलता है| न्यायालय में आज लोगों की आस्था बढ़ी है| आपकी आवाज़ सरकार में बैठे लोगों तक पहुँचती है, और सरकारी मशीनरी आपके विषय में सोचना शुरू कर देती है| फिल्म रोमांटिक टुकड़े से एक और लेसन हमें सीखने को मिलती है कि किसी भी चीज़ को करने या सीखने की कोई उम्र नहीं होती| आपकी लगन, मेहनत और रूचि पर निर्भर करती है कि आप क्या कुछ सीख सकते हैं और कर सकते हैं|

कहानी के विषय में
रोमांटिक टुकड़े (Romanticc Tukde) की कहानी बिहार के गाँव की है, जहाँ एक लड़की अपने प्रेमी के झांसे में आकर अपना सर्वस्व समर्पित कर देती है, और शादी से पहले ही प्रेगनेंट हो जाती है| प्रेमी उसे स्वीकार करने से मना कर देता है, उल्टे प्रेमी के घर के लोग गाँववालों के साथ मिलकर लड़की को जान से मार देने की साजिश करते हैं और लड़की पर आक्रमण कर देते हैं| लड़की जैसे तैसे अपनी जान बचाकर गाँव से भाग निकलती है| वो शहर में आ जाती है| वहाँ वो रेलवे यार्ड के अंदर छुपकर रहती है और बच्चे को पैदा करती है| बाद में शहर के सिनेमा हॉल में झाड़ू पोछा का काम करती है| समय के साथ लड़की सिनेमा देखकर बहुत कुछ सीखती है और पढाई लिखाई करती है| वो सिनेमा हॉल में काम करते हुये ग्रेजुएशन करती है और बीस साल बाद अपने बच्चे को लेकर गाँव आती है और अपने पुराने प्रेमी को गाँव वालों के सामने साबित करती है कि ये बच्चा इसका है| और इसने मुझे धोखा दिया था| छल किया था| अंततः गाँववालों को मानना पड़ा की लड़की सच बोल रही है|

स्क्रीनप्ले के बारे में
कहानी बहुत खूबसूरती से लिखी गयी है| स्क्रीनप्ले के माध्यम से कहानी को बेहद ही नये अंदाज़ में प्रेजेंट करने की कोशिश किया गया है| रोमांटिक टुकड़े का स्क्रीनप्ले अपने आप में एक नायाब नमूना है| हर हाल में इस तरह के स्क्रीनप्ले को experimental script कही जायेगी| इस फिल्म के screen play की अपनी एक गति है जो कि फिल्म के शुरू से अन्त तक बनी रहती हैस्क्रीनप्ले को इतने लेयर में लिखा गया है कि कई बार लेयर स्टोरी को समझने में मूल कहानी पीछे छूटने लगती है| ये शायद इस फिल्म के स्क्रीनप्ले का drawback हो सकता है| पूरी फिल्म देखने के दौरान एक फिल्म समीक्षक के रूप में दो तीन जगहों पर मुझे भी कन्फ्यूजन हुई है| समझने में दिक्कत आयी हैं| मगर मैं फिल्म समीक्षक होने के नाते मानकर चलता हूँ कि जब कोई लेखक निर्देशक अपनी कहानी के साथ इतने बड़े पैमाने पर एक्सपेरिमेंट करता है तो इस तरह की छोटी मोटी गड़बड़ी पैदा होना लाज़मी हैA

स्क्रिप्ट के बारे में
स्क्रिप्ट शुरू से अंत तक दर्शकों के मनोरंजन करने में सक्षम है| पूरी फिल्म व्हाट happened next के आधार पर चलती है| लेखक की यही काबिलियत है| दर्शकों को फिल्म के अंत तक बांधे रखती है| कुल मिलाकर स्क्रीनप्ले 4 स्टार के लायक है|

अभिनय
बेशक ढेरों नये कलाकार हैं| इस फिल्म में एक पंकज बेरी को छोड़ दे तो, चूँकि पंकज बेरी एक सधे हुये कलाकार हैं| उन्होंने ने अपने किरदार को इतना रियल जीया है कि ये विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि पंकज बेरी फिल्म में अभिनय कर रहे हैं या अपने अपने चरित्र को रियल लाइफ में जी रहे हैं| बाकी नये पुराने कलाकारों ने अपने चरित्र के साथ सौ प्रतिशत न्याय किया है| कहीं ऐसा आपको आभास नहीं होता कि ये नये कलाकारों की फिल्म है| अलबत्ता एक दो जगह क्राउड की थोड़ी कमी अवश्य दिखती है| इस फिल्म की कमज़ोर कड़ी की बात करें तो क्राउड की कमी खलती है| क्राउड के आभाव में फिल्म के कुछ scene कमज़ोर दिखते हैं और कई सारे फ्रेम खालीपन का अहसास कराते हैं| अभिनेताओं का अभिनय बेशक सराहनीय है|

तकनीकी पक्ष
Cinematography बेहद सधी हुई है| Cinematographer गाँव से लेकर छोटे शहर को उनके नेचुरल कलर में फ्रेमिंग करने में कामयाब रहे हैं, फिर भी जगह जगह पर लाइट सोर्स की कमी खलती है| शायद ऐसा जानबूझकर किया गया है| कहानी के यथार्थ को बनाए रखने के लिये, मगर ये चीज़ें फिल्म के लिये माइनस पॉइंट कही जायेंगी|

एडिटिंग
फिल्म की एडिटिंग काबिले तारीफ है एडिटर ने इतने लेयर कहीं जाने वाली फिल्म के हर चरित्र को अपने एडिटिंग के ज़रिये पर्दे पर बनाए रखा है। एडिटर की मेहनत फिल्म में दिखती है।

संगीत
गीत और संगीत आले दर्ज़े का है| फिल्म के गाने पीयूष मिश्रा और केतन मेहता ने लिखा है| इस फिल्म का होली सॉंग, लव सॉंग, एजुकेशन सॉंग बेहद कर्णप्रिय हैं| बैकग्राउंड स्कोर तुतुल भट्टाचार्य का है, जिन्होंने राम गोपाल वर्मा की फिल्म एक हसीना थी, सरकार, भूत और खोसला का घोसला जैसी सुपरहिट फिल्मों को म्यूजिक तैयार किया है।

साउंड
साउंड डिजिटल डॉल्बी 5.1 है| इसका साउंड इफ़ेक्ट, एम्बिएंस, फोले बेहद नेचुरल तरीके से create किया गया है| फिल्म रोमांटिक टुकड़े का अच्छा साउंड भी दर्शकों को बांधे रखता है। फिल्म की coloring आज की तरह है, जो कि बहुत आकर्षक है, मगर एक बात समझ नहीं आती कि निर्देशक ने 1990 से 2023 का कलर एक जैसा ही क्यों रखा है| यहाँ समीक्षक के रूप में कहना चाहूँगा कि कलरिस्ट ने अपनी पूरी निष्ठां, ईमानदारी रखी है| मगर निर्देशक ने एक ही तरह का साधारण कलर पूरी फिल्म में रखा है| ये शायद उनकी गलती है या हो सकता है ये भी experiment का हिस्सा हो, मगर मेरे हिसाब से बहुत बड़ी कमी है| कुल मिलाकर फिल्म रोमांटिक टुकड़े (Romanticc Tukde) बहुत कम बजट में बनी निर्देशक वरदराज स्वामी (Varadraj Swami) की बेहद खुबसूरत फिल्म है, जिसे दर्शक देखना पसंद करेंगे|

फिल्म समीक्षा: Romanticc Tukde
कलाकार: पंकज बेरी, निकुंज मलिक, अमिया कश्यप, भक्ति पुन्जानी, धामा वर्मा, ब्रजेश झा, विवेकानंद झा
लेखक: शहज़ाद अहमद, वरदराज स्वामी
निर्देशक: वरदराज स्वामी
निर्माता: विजय बंसल, प्रिया बंसल
रिलीज: 3 नवम्बर 2023
रेटिंग: 4/5

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