निजीकरण के निर्णय के विरोध में 18 सितम्बर से प्रांतव्यापी विरोध सभाएँ | #TEJASTODAY
जौनपुर। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के आह्वान पर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के विरोध में 18 सितम्बर से राजधानी लखनऊ सहित प्रदेश के सभी जनपदों व परियोजनाओं में बिजली कर्मचारियों, संविदा कर्मियों, जूनियर इंजीनियरों और अभियंताओं की विरोध सभाएं प्रत्येक कार्य दिवस पर होंगी। ध्यान रहे कि निजीकरण के प्रस्ताव के विरोध में पूर्वांचल के सभी जनपदों में विगत 01 सितम्बर से विरोध सभाओं का क्रम चल रहा है जो 18 सितम्बर से प्रदेश भर में होगा। संघर्ष समिति ने सरकार से व्यापक जनहित में निजीकरण का प्रस्ताव निरस्त करने की माँग की है। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों वीपी सिंह, प्रभात सिंह, जीवी पटेल, जय प्रकाश, गिरीश पांडेय, सदरुद्दीन राना, सुहेल आबिद, राजेन्द्र घिल्डियाल, विनय शुक्ल, डीके मिश्र, महेंद्र राय, सुनील प्रकाश पाल, वीसी उपाध्याय, शशिकांत श्रीवास्तव, वीके सिंह कलहंस, परशुराम, विपिन वर्मा, मोहम्मद इलियास, भगवान मिश्र, पूसे लाल, शम्भू रत्न दीक्षित, एके श्रीवास्तव, पीएन तिवारी, पीएस बाजपेई ने चेतावनी दी है कि यदि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के विघटन व निजीकरण का फैसला वापस न लिया गया और इस दिशा में सरकार की ओर से कोई भी कदम उठाया गया तो ऊर्जा निगमों के तमाम बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर व अभियंता उसी समय बिना और कोई नोटिस दिए अनिश्चितकालीन आंदोलन प्रारंभ करने हेतु बाध्य होंगे जिसमें पूर्ण हड़ताल भी सम्मिलित है।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि वह प्रभावी हस्तक्षेप करने की कृपा करें जिससे निजीकरण का प्रस्ताव निरस्त हो सके और उनके कुशल नेतृत्व में बिजली कर्मी पूर्ववत पूर्ण निष्ठा से बिजली आपूर्ति और सुधार के कार्य में जुटे रह सकें। संघर्ष समिति ने यह भी कहा कि निजीकरण का निर्णय संघर्ष समिति और ऊर्जा मंत्री की उपस्थिति में विगत 5 अप्रैल 2018 को हुए समझौते का खुला उल्लंघन है जिसमें लिखा गया है कि बिजली कर्मचारियों को विश्वास में लिए बगैर प्रदेश में ऊर्जा क्षेत्र का कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा।
संघर्ष समिति ने प्रदेश सरकार और प्रबंधन से विगत में किए गए निजीकरण के प्रयोगों की विफलता की समीक्षा करने की अपील की किंतु प्रबंधन निजीकरण और फ्रेंचाइजीकरण की विफलता पर कोई समीक्षा करने को तैयार नहीं है। संघर्ष समिति के प्रतिनिधियों का कहना है कि दिसंबर 1993 में ग्रेटर नोएडा क्षेत्र का निजीकरण किया गया और अप्रैल 2010 में आगरा शहर की बिजली व्यवस्था टोरेन्ट फ्रेंचाइजी को दी गई और यह दोनों ही प्रयोग विफल रहे हैं। इन प्रयोगों के चलते पावर कार्पोरेशन को अरबों खरबों रुपए का घाटा हुआ है और हो रहा है। सरकार के प्रस्ताव के अनुसार पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम का विघटन कर तीन छोटे निगम बनाए जाएंगे और उनका निजीकरण किया जाएगा।
विघटन और निजीकरण दोनों की ही विफलता पर सवाल खड़ा करते हुए संघर्ष समिति का कहना है कि जब वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद का विघटन किया गया था तब सालाना घाटा मात्र 77 करोड़ रु था। विघटन के बाद कुप्रबंधन और सरकार की गलत नीतियों के चलते यह घाटा अब बढ़कर 95000 करोड़ रु से अधिक हो गया है। इसी प्रकार ग्रेटर नोएडा में निजीकरण और आगरा में फ्रेंचाइजीकरण के प्रयोग भी पूरी तरह विफल साबित हुए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इन्हीं विफल प्रयोगों को एक बार फिर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम पर क्यों थोपा जा रहा है?
संघर्ष समिति ने विघटन और निजी करण के बाद कर्मचारियों की सेवा शर्तों पर पढ़ने वाले प्रतिगामी प्रभाव और उपभोक्ताओं के लिए बेतहाशा महंगी बिजली के रूप में आने वाली कठिनाई की ओर भी सरकार व प्रबंधन का ध्यान आकर्षित किया है। संघर्ष समिति ने निर्णय लिया है कि निजीकरण के विरोध में अनिश्चितकालीन आंदोलन चलाया जाएगा जिसमें पूर्ण हड़ताल भी सम्मिलित होगी। निजीकरण के विरोध में व्यापक जन जागरण करने हेतु संघर्ष समिति के केंद्रीय पदाधिकारी 21 सितम्बर से 20 अक्टूबर तक पूरे प्रदेश में मंडल मुख्यालयों पर विरोध सभाएं कर कर्मचारियों और उपभोक्ताओं को जागरूक करेंगे। इसके साथ ही प्रदेश भर में जन प्रतिनिधियों को निजीकरण के विरोध में ज्ञापन दिए जाएंगे।
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Gepostet von Tejastoday.com am Samstag, 29. August 2020